कविता : किसान का बेटा हूँ…
किसान का बेटा हूँ ,
खेतों में किस्मत बोता हूँ।
खून पसीने से सींचता हूँ,
कुदरत की मार भी सहता हूँ ।
किसान का बेटा हूँ...
खेतों में अपनी किस्मत खोते देखा हूँ।
कभी सुखाड़ में तो कभी बाढ़ में,
पिता के आँखों मे आँसू देखा हूँ।
किसान का बेटा हूँ...
अ...
वो जलाकर बस्ती…
वो जलाकर बस्ती आशियानें की बात करते हैं,
मिटाकर हाथों की लकीरें मुक्कदर की बात करते हैं।
नादान थे हम चालाकियाँ समझ ही ना पाए,
अपना बनाकर हमें वो गैरों की बात करते हैं।
छुपाते रहें उम्र भर जिनकी गलतियों को हम,
वो महफ़िल में मेरी कमियों की बात...
हुआ उजाला
अंधकार की काली चादर,
धरती पर से सरकी।
हुआ उजाला जग में कोई,
बात नहीं है डर की।
चींची चींचीं चिड़िया बोली,
डाली पर कीकर की।
कामकाज बस शुरू हो गया,
सबने खटर-पटर की।
लाया है अख़बार ख़बर सब,
बाहर की, भीतर की।
घंटी बजी, दूध मिलने में,
दे...
बड़ो की डांट भी दुलार
पापा: ये क्या है। दादाजी ने सारे आॅफिस के सामने आपको डांटा और आप चुपचाप सुनते रहे। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। आप भी कंपनी में सारे कामकाज देखते हैं, क्या हुआ जो गलती से आर्डर इधर-उधर हो गया। आॅफिस में सभी आपका सम्मान करते हैं। ऐसे सबके सामने वो आपक...
संघर्ष भरे जीवन की अजीब दास्तां
‘‘भविष्य की तो कौन जानता है, पर किशोरवय की चंचलता के कारण उन्हें कई बार मां की ही नहीं, पिता की भी डांट खानी पड़ती। मां-पिता भविष्य देखते थे और वे किशोरियां वर्तमान, जिसमें भरे होते सपने-ही-सपने। असत्य तो उन सपनों के बीच समाता ही न था। हर लड़का राजा, ह...
लघुकथा: सब कुछ तुम्हारे हाथ में है!
एक आदमी रेगिस्तान से गुजरते वक्त बुदबुदा रहा था, कितनी बेकार जगह है ये, बिलकुल भी हरियाली नहीं है और हो भी कैसे सकती है। यहां तो पानी का नामो-निशान भी नहीं है। तपती रेत में वो जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था उसका गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था। अंत में वो आसमान की...
सुनाओ एक ऐसी कहानी
उनकी दयनीय दशा देखकर मणिपाल ने बुद्धराम की पत्नी से हंसते हुए पूछा-अब बताओ मामी कि तुम्हारी कहानी वाली शर्त पूरी हुई कि नहीं? जो कहानी मैंने चलाई है, वह तुमने कभी सुनी नहीं होगी। इसके शुरू होने के पहले मैं भी इसके बारे में कुछ नहीं जानता था।
माता कभी कुमाता नहीं होती
मां! पता नहीं क्यों, तू हर समय मुझे डांटती रहती है। अब मैं बड़ा हो गया हूं। तेरी प्रताड़ना मुझे अखरती है। हां रे सोहन? मंै तो भूल गयी थी...अच्छा याद दिलाया। अब तो तू बड़ा हो गया है। मैं तो शायद उतनी की उतनी ही हूं । ...तेरे और मेरे में अन्तर जरूर घट गया...
मोह
पिताजी अब नहीं रहे। बस, अस्सी साल की बूढ़ी माँ है। उसे यह घर छोड़ना होगा। हफ्ते भर से बेटा आया हुआ है। माँ को ले जाने से पहले उसे सारा सामान ठिकाने लगाना है, लेकिन कैसे लगाए? जिस अलमारी को खेलों, वहीं पर सामान मुंबई की लोकल ट्रेन की तरह ठुंसा पड़ा है। ब...
कहानी : बाग का माली
लेखक: आंनद बिल्थरे
वैभव ने, बी.एस.सी. की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी। वह आगे पढ़ना चाहता था, किंतु वीनू से घर की स्थिति और केशव का टूटता स्वास्थ्य छिपा नहीं था। वीनू, चाहती थी कि वैभव, अब कहीं भी छोटी-मोटी नौकरी कर केशव का हाथ बंटाए। वीनू की...