देश में बढ़ता नैतिक पतन

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आज हमारा समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसका चित्रण प्रत्येक दिन अखबारों एवं टीवी के समाचारों द्वारा दिखाया जा रहा है। लोग ईमानदारी और सदाचार का मार्ग छोड़कर छोटे-छोटे लालचों में फंसे दिखते हैं। लालच प्रमुखत: धन प्राप्ति का है परंतु साथ ही कामचोरी का भी दिखाई देता है। धन प्राप्ति के लिए लालच, घूस, भ्रष्टाचार, लूट के मामले सामने आते हैं।

छोटे व्यक्तियों की बात तो क्या ऊंचे पदों पर आसीन व्यक्ति भी नियम-कायदों की घोर उपेक्षा कर मन-माफिक धन संचय के लिए कुछ भी गलत करने में नहीं हिचकते। बड़ों में राजनेता और उच्च पदस्थ वे अधिकारी भी हैं, जिन्हें समाज को मार्गदर्शन देना चाहिए और आदर्श उदाहरण बनकर देश की प्रगति के लिए सहायक बनना चाहिए। चूंकि बड़ों का अनुसरण समाज प्राचीन काल से करता आया है इसलिए आज समाज का छोटा वर्ग भी इसी चारित्रिक गिरावट में दिखाई देता है।

भ्रष्टाचार हर जगह सामान्य हो चला है। जिसे जहां मौका मिलता है वहीं वह घोटाला कर बैठता है। घूंस स्वीकार कर नियमविरुद्ध कार्य करने को हर कोई तैयार है। अपने कर्त्तव्य और अपने उत्तरदायित्वों के प्रति लोगों की निष्ठा जैसे समाप्त हो चली है। आये दिन खबरें छपती हैं कि शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षित करने में रुचि न लेकर कार्यस्थल से ड्यूटी की अवधि में अनुपस्थित रहते हैं।

डाक्टर समय पर अस्पतालों में नहीं पहुंचते, मरीजों के दुख-तकलीफों को दूर करने में रुचि नहीं लेते। ध्यान केवल पैसों पर और अपनी कमाई पर रखते हंै। अधिकारी तक जो ऊंचे तनख्वाह पाते हैं कर्त्तव्य के प्रति लापरवाह हैं। धन के अपव्यय या घोटाले के प्रसंग उजागर होने पर जांच कमीशन नि:युक्त कर दिये जाते हैं जो समय और धन के व्यय के बाद भी शायद वांछित परिणाम विभिन्न कारणों से नहीं दे पाते हैं।

निरीह जन साधारण अपने अधिकारों से वंचित किये जा रहे हैं। बेरहमी देश में ताण्डव नृत्य कर रही है। इन सबका सबसे बड़ा कारण धार्मिक मान्यताओं की घोर उपेक्षा और शासन के कानूनों की अवहेलना है। धार्मिक मान्यतायें ही नैतिक चरित्र का निर्माण और परिपालन कराती है। जिनसे मनुष्य स्वानुशासित होता है। समाज में शांति सुरक्षा और व्यवस्था स्वत: ही बनी रहती है। किंतु आज प्राचीन तानाबाना विभिन्न कारणों से छिन्न-भिन्न हो गया है।

 

 

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