सरकारी चुप्पी ले रही बेरोजगार युवाओं की जान!
जो समय के अनुरूप होता नजर आता नहीं। पूर्ण बहुमत की सरकार के अपवाद भी हैं। कुछ राज्य ऐसे भी हैं। जहां पर पूरा एक दशक से अधिक समय बीत गए एक ही सरकार के सत्ता में रहने के।
खुद से हारेगी दिल्ली में भाजपा ?
दिल्ली की झुग्गी झौपड़ियां और दिल्ली की कच्ची कालोनियों में रहने वाली आबादी के सबंध में इनकी जानकारी ही नहीं है, ये सिर्फ मीडिया में ही धमाल मचा पाते हैं, इनकी प्राथमिकता में एयर कंडिशन की संस्कृति हैं, पेज थ्री की संस्कृति हैं। प्रोफेशनल लोग वोट कहां डालते हैं, प्रोफेशनल लोगो के पास वोट डालने का समय कहां होता हैं|
उदारवादी इस्लाम के पक्ष में हैं तारिक फतेह
होटल के अंदर और बाहर सुरक्षाकर्मियों का पहरेदारी हो गई। मुझे आदेश मिला था कि मैं बिना किसी सुरक्षाकर्मी के बाहर न निकलूं और न ही किसी सार्वजनिक समारोह में भाग लूं। तब मैंने सोचा कि ऐसा क्या कर दिया मैंने जो इतना बवाल कट गया। लेकिन उसके बाद ऐसे वाक्या होते ही गए, इसलिए अब मैं आदी हो चुका हूं।
दिल्ली ‘आप’, भाजपा व कांग्रेस के लिए बनी चुनौती
दिल्ली में कांग्रेस अपनी स्थिति सुधार सकती है, वह भाजपा को तो पछाड़ सकती है परन्तु आम आदमी पार्टी ने जिस तरह की राजनीतिक विचारधारा चलाई है उसके चलते अभी कांग्रेस को बहुत मेहनत की जरूरत है। दिल्ली चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी यदि अच्छा बहुमत हासिल कर लेती है
प्रेरणास्त्रोत: सफल वही होता है जो लक्ष्य पर अडिग रहता है!
राजा के इस निर्णय से राज्य के प्रधानमंत्री ने रोष जताते हुए राजा से कहा, ‘महाराज, आपसे मिलने तो बहुत से लोग आएंगे और यदि सभी को उनका भाग देंगे तो राज्य के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे। ऐसा अव्यावहारिक काम न करें।’
सशक्तिकरण में युवाओं की भूमिका
उसे स्व्यं से प्रश्न करना होगा कि भारतीय खेती और खेतिहर की आज दुर्दशा क्यों है ? उसे मंथन करना होगा कि यदि खेती सचमुच घाटे का सौदा है, तो फिर कई कंपनियां खेती के काम में क्यों उतर रही हैं ? कमी हमारी खेती में है या विपणन व्यवस्था में ? ऊंची पसंद वाले देसी, जैविक और हर्बल को अन्य से उत्तम समझ रहे हैं।
प्रेरणास्त्रोत: जिंदगी बीत जाती है, अपनों को अपना बनाने में
वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान लौट आया। चाचा ने पूछा, हार नहीं लाए? उसने कहा, वह तो नकली था। चाचा ने कहा- जब तुम पहली बार हार लेकर आये थे, तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त आया तो चाचाजी हमारी चीज? को भी नकली बताने लगे।
राष्ट्रीय कलाकारों की दुर्दशा क्यों
यह भी बात नहीं कि देश में कला की संभाल के लिए कोई मार्गदर्शक इतिहास नहीं है। प्राचीन से लेकर मध्यकाल तक कलाकारों/साहित्यकारों को समय के शासकों द्वारा जागीरें देकर सम्मान देने की परंपरा रही है तब पुरुस्कार कम व आवश्यकता की वस्तु जैसे पैसे व जायदाद को अधिक महत्व दिया जाता था।


























