एशिया में भारत का अब तक का बेहतरीन प्रदर्शन

India's best performance ever in Asia

इंडोनेशिया में18वीं एशियाई खेलों में 45 देशों के लगभग 10 हजार से अधिक खिलाड़ियों के बीच 15 दिन तक पदकों के हुई जद्दोजहद हुई। खेल इतिहास में अब तक के भारत के लिए यह सबसे सफल खेल रहे हैं। भारतीय खिलाड़ियों ने एशियाई खेल के 18वें सीजन में दमदार प्रदर्शन करते हुए कुल 15 स्वर्ण पदक प्राप्त किए। 572 खिलाड़ियों के साथ खेलों में भाग लेने पहुंचे भारतीय दल ने राष्ट्रमंडल की सफलता के बाद एशिया खेलों में भी अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दोहराया। भारतीय दल ने 15 स्वर्ण, 24 रजत व 30 कांस्य पदकों सहित कुल 69 पदक प्राप्त किए। भारत ने 2010 में चीन के गवांगझु में हुई 16वीं एशियाई खेलों में 65 पदक प्राप्त करने के अपने रिकार्ड को भी तोड़ा। इस बार के खेलों में सबसे ज्यादा युवा खिलाड़ियों ने ध्यान खींचा जोकि भारत के खेल भविष्य के लिए उम्मीद बंधी है। मुक्केबाजी में पदक तगमा जीतने वाले अमित के पास किसी समय गलाऊज के लिए भी पैसे नहीं थे और लगभग 6 महीने बिना गलवज के प्रशिक्षण कर अपने हुनर को तराशा। एक रिक्शा चालक की लड़की सवपना ने हैपटाथलान में स्वर्ण पद जीता, पब्लिक सैक्टर कंपनी ने बेहतर प्रदर्शन की गुंजाईश न कहकर नौकरी से निकाले जाने के बाद हिम्मत छोड़ने की बजाय लगातार दो साल सख्त मेहनत कर अपने नवजात बच्चे को पांच माह तक मुंह तक न देखने वाला 800 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक विजेता मनजीत, यह केवल कुछ ही मिसाले हैं, जिन्होंने अपने जज्बे के सामने रूकावटों का डटकर सामना किया। एशियाड में हीरो बनकर उभरे व नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत बने पंजाब के जिला मोगा के 23 वर्षीय तजिन्द्र सिंह तूर ने कैंसर से जंग लड़ रहे अपने पिता के पुत्र को पदक जीतता देखने के सपने को पूरा किया। तजिन्दर ने न केवल राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ा बल्कि 2010 में बने एशियाई खेल के रिकार्ड को भी तोड़ा। हालांकि पंजाब सरकार का ढीला रवैया बहुत दुखदाई है जहां दूसरे राज्यों ने स्वर्ण पदक जीतने वाले अपने खिलाड़ियों को करोड़ों के नकद पुरस्कार देने का ऐलान किया वहीं पंजाब सरकार ने एशियाई रिकार्ड तोड़ने वाले अपने एक मात्र एथलीट के लिए अच्छी नौकरी तक का वायदा अभी तक नहीं पूरा किया। भारत के युवाओं में खेल प्रति बढ़ता रुझान एक अच्छी पहल है। कुछ उम्रदराज खिलाड़ियों ने भी साबित किया कि व्यक्ति के इरादों व इच्छा के सामने उम्र कोई रुकावट नहीं बन सकती। हालांकि भारतीय पुरुष हाकी व कबड्डी महिला व पुरुष टीमों की कबुड्डी टीम के हाथ निराशा ही लगी लेकिन यह भी टीमों के लिए एक नया अनुभव कहा जा सकता है। पिछली बार चैंपियन रहने के बावजूद भारतीय पुरूष टीम व हॉकी टीम को इस बार कांस्य पदक तक सीमित रह गई। कुल मिलाकर भारत के लिए यह खेल शानदार व ऐतिहासिक रहे।

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