खेल को तो बख्श दो

टी-20 क्रिकेट में पाकिस्तान की भारत पर जीत के बाद दोनों देशों में जिस प्रकार खुशी या रोष का प्रदर्शन देखा गया, उससे ऐसा लगता है कि अभी भी लोग खेल की भावना से बिल्कुल अनजान हैं। क्रिकेट को भारत और पाकिस्तान तो कहा जाता था लेकिन अब इसे धर्म के साथ जोड़ने की गंदी हरकत सामने आ रही है। कुछ बिगड़ी मानसिकता वाले लोगों ने भारतीय खिलाड़ी शमी के खिलाफ भी जहर उगला, जो सरासर गलत है। इसी प्रकार कुछ कट्टरवादी लोगों ने संगरूर में एक धर्म विशेष के विद्यार्थियों पर हमला किया। यही हाल पाकिस्तान में देखने को मिला जहां बिगड़ैल किस्म के लोगों ने जीत की खुशी में फायरिंग की, जिससे कई लोग घायल हो गए। इस प्रकार की भद्दी हरकतें किसी भी खेल का अपमान है।

जीत-हार मैदान में होती है, खेल की हार को धर्मों की जीत-हार का रूप दिया जा रहा है जो बेहद बचकाना व कायराना हरकत है। ऐसे लोगों को खेल की उन शख्सियतों से सबक लेना चाहिए जो दूसरे देशों के खिलाड़ियों की भावना की प्रशंसा करते हुए नहीं थकते। पाकिस्तान के सैकड़ों क्रिकेट प्रशंसकों ने विराट कोहली और महेन्द्र सिंह धोनी के रवैये और खेल भावना को एतिहासिक करार दिया है। खेल अपने-आप में ही दोस्ती और भाईचारे का प्रतीक है। विजेता टीम के खिलाड़ी पराजित टीम के खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाकर जाते हैं। इस बार महिला हॉकी ओलम्पिक में मैच जीतने के बाद जर्मनी की खिलाड़ियों ने भारतीय टीम की रो रही लड़कियों को चुप करवाकर उनका हौंसला बढ़ाया। ओलंपियन नीरज चोपड़ा ने कट्टर लोगों को चुप करवाने की मिसाल कायम की।

भारत-पाक के बीच भले ही रिश्ते जैसे भी रहे हों, लेकिन खेल के माध्यम से कड़वाहट को कम किया जा सकता है। खेल केवल खेल मैदान तक सीमित होते हैं। खिलाड़ी के हाथ में बल्ला या गेंद होती है, कोई मिसाइल नहीं। यह देशों के बीच जंग नहीं होती। भारत-पाक के मुद्दे दो देशों के मुद्दे हैं उन्हें कभी भी धार्मिक मुद्दे के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। खेलों का संबंध किसी भी धर्म/जाति के साथ नहीं। दरअसल सस्ती शोहरत की चाहत में कुछ लोग नफरत के अंगारे हाथों में लेकर समाज को दांव पर लगाने की कोशिश करते हैं लेकिन हासिल कुछ भी नहीं होता। उनका खेल से दूर का भी संबंध नहीं होता। सरकारों को ऐसे तत्वों पर सख्ती से कार्यवाही करनी चाहिए।

 

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