57 साल की उम्र में राजवंती ने जीते कई मेडल

1985-86 में स्कूल टाइम में खेलती थीं कबड्डी

  • अपने पोते को भी खेलों के लिए करती हैं प्रेरित

गुरुग्राम। (सच कहूँ/संजय कुमार मेहरा) कहते हैं प्रतिभा दिखाने की कोई उम्र नहीं होती। कोई बचपन से ही प्रतिभाशाली होता है तो कोई बुजुर्ग अवस्था में पहुंचकर भी नाम कमा जाता है। ऐसी ही प्रतिभा की धनी हैं 7वीं कक्षा तक पढ़ीं 57 वर्षीय राजवंती देवी। झज्जर जिला के गांव मातनहेल की रहने वाली राजवंती देवी का विवाह रेवाड़ी जिला में कृष्ण कुमार के साथ हुआ था। करीब 20 साल पहले वे गुरुग्राम में आकर रहने लगे। यहां पटेल नगर में परिवार के साथ रह रही राजवंती देवी ने करीब पांच महीने पहले खेलों का अभ्यास करना शुरू किया।

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यानी अब 55 साल की उम्र में उनके खेलों के प्रति फिर से दीवानगी जगी। यहां देवीलाल स्टेडियम में गुरुग्राम मास्टर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित 31वीं राज्य स्तरीय एथलीट चैंपियनशिप में राजवंती देवी ने हिस्सा लिया। बुजुर्गों की इस स्पर्धा में राजवंती ने पूरे जोश और जुनून के साथ अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। चैंपियनशिप में उन्होंने शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन कर तीनों प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान हासिल करके मेडल जीते।

राजवंती देवी का कहना है कि उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान कबड्डी की प्रतियोगिताओं में भाग लिया था। वर्ष 1985-86 में उन्होंने रोहतक में हुई प्रतियोगिताओं में प्रथम व द्वितीय स्थान हासिल किया था। इसके बाद उनकी शादी हो गई और अपने खेल को आगे जारी नहीं रख पाई। वे हर उम्र के बच्चों को खेलों के लिए प्रेरित करती हैं। उनका कहना है कि खेलों में बच्चों को जरूर भाग लेना चाहिए। खेल सिर्फ मेडल के लिए नहीं होते, शारीरिक रूप से भी बच्चे मजबूत होते हैं। हर माता-पिता को बच्चों को खेलों में जरूर लगाना चाहिए। खेलों में बच्चे बेहतर प्रस्तुति करते हैं तो वे खेलों में अपना भविष्य भी बना सकते हैं।

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