ऐसा चिकित्सालय जहां इंसानों से बढ़कर होती है बेजुबानों की देखभाल

Shri Krishna Gau Seva Samiti

सरकारों की अनदेखी, जन सहयोग से चल रही राज्य स्तरीय श्री कृष्णा गऊ सेवा समिति दौलतपुरा (Shri Krishna Gau Seva Samiti)

सच कहूँ/सुधीर अरोड़ा।
अबोहर। इंसान का दर्द समझने और उनके उपचार करने के लिए तो जगह-जगह अस्पताल और अन्य स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध हैं, दूसरी तरफ बेसहारा बेजुबान जानवरों का दर्द समझने का दावा तो हर कोई करता है। लेकिन वास्तविक्ता यह है कि दर्द में राहत देने वाले बहुत कम हैं। इन सबके बीच बीमार व घायल बेजुबानों की देखभाल-सेवा के लिए जिला फाजिल्का व तहसील अबोहर के गांव दौलतपुरा में अबोहर-श्रीगँगानगर मुख्य सड़क मार्ग पर स्थित पंजाब स्तरीय श्रीकृष्णा गऊ सेवा समिति जहां छोटे बड़े गौवंश व सभी तरह के बेजुबानों के लिए संवेदना के साथ कर्तव्य और वो भी बिना किसी पैसे के किया जाता है।इसे जन सहयोग से चलाया जा रहा है।

तीन राज्यों के बेजुबानों की मदद के लिए दिन-रात चल रही सेवा

पंजाब की विगत अकाली-भाजपा सरकार के एक मंत्री ने और अब कांग्रेस में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी इस गौ चिकित्सालय का अवलोकन कर चुके हैं जिन्हें आश्वासन दिया गया था कि जल्द ही गौशाला को सरकारी डॉक्टर गौशाला की चारदीवारी और अन्य जरूरतों के लिए फंड मुहैया करवाएंगे। मगर इतना समय बीत जाने के बाद भी अभी तक न तो डॉक्टर मिला है और न ही कोई फंड। कोरोना की मार पड़ी, घटाया इलाज करने का दायरा: गौशाला के सेवादारों ने जानकारी देते हुए बताया कि यहां पांच एकड़ जगह में करीबन 8 वर्ष पूर्व जन सहयोग से प्रोजेक्ट शुरू किया गया। यहां सभी प्रकार के गोवंश, कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, नीलगाय, खच्चर, बैल, ऊंट व अन्य सभी किश्म के जानवरों का नि:शुल्क इलाज व छोटे बड़े आॅपरेशन भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम द्वारा किए जा रहे है।

उन्होंने बताया कि कोरोना की मार ने उन्हें भी प्रभावित किया। जन सहयोग कम मिलने के कारण इस गौ चिकित्सालय में भी बेसहारा पशुओं की संख्या घटी है। सीमित बजट होने के चलते जिस प्रकार से पहले वह आसपास के 100 किलोमीटर के दायरे में आते बेसहारा घायलों को रेस्क्यू करते थे। अब उनका दायरा घटकर 50-60 किलोमीटर रह चुका है।

इतने डॉक्टर व स्टॉफ दे रहा सेवाएं: राजस्थान हरियाणा सीमा के साथ लगने के चलते वहां से भी लोगों के द्वारा जैसे ही खबर मिलती है कि कोई आवारा पशु बीमार है या कहीं कोई पशु घायलावस्था में पड़ा हुआ है, वे तुरंत मदद करने के लिए पहुंच जाते हैं। जानवरों की मदद के लिए 24 घंटे उनकी टीम तैयार रहती हैं। इसके लिए उनके पास 2 एंबुलैंस खुद की व एक किराए की दिन रात चलती है। हमेशा फील्ड में तीन डाक्टरर्स जिनमें अबोहर रोड़ के गांवों, दूसरा श्रीगंगानगर रोड़ व एक लोकल फाजिल्का सड़क मार्ग के गांवों में और यहां एक नाईट में डॉक्टर व 5 डाक्टरर्स दिन में घायल गोवंश के उपचार हेतू गौशाला में मरहम पट्टी के लिए तैनात रहते है। इसके अलावा स्टॉफ व डॉक्टर के प्रशिक्षण हेतु भी सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए भी नवयुवक यहां सेवाएं देते रहते है।

सरकार ने फंड देने की मांग 

सर्दियों में इनके बचाव हेतु लकड़ियों से अलाव जलाए जाते है। 30 क्विंटल प्रतिदिन इनके लिए हरे चारे की खपत होती है। जिसके लिए साल में 8 माह तो दानी सज्जनों का सहयोग रहता है जबकि 4 महीने उनके द्वारा मूल्य अदा कर हरे चारे की व्यवस्था करनी पड़ती है। हर महीने दस लाख रुपये का खर्चा होना स्वभाविक है। उन्होंने दानी सज्जनों से अपील करते हुए कहा है कि सरकार द्वारा कोई सहयोग नहीं मिल पाता इसलिए यदि उन्हें फंड मुहैया करवाया जाए तो कई सुविधाओं को सुच्चजित किया जा सकता है।

शैड, पंखों व कूलरों की भी व्यवस्था

फंड की कमी के चलते जहां पहले 700 से ऊपर गोवंश थे। लेकिन अब 400 के करीबन रह चुके है। इनमें से ठीक हुए गोवंश को अन्य गौशाला में भी शिफ्ट किया गया। भीषण गर्मी के चलते यहां शैड के नीचे 65 पंखे व 12 कूलरों का भी विशेष प्रबन्ध किया गया है। साथ ही स्पेशल मेट ओर रेती भी इनके बिछोने पर लगाए जाते है। बालू रेत सूरतगढ़ के मानकसर से ट्रकों द्वारा स्पेशल मंगवाया जाता है। कोरोना महामारी के चलते जनसहयोग कम हो गया है जिसके चलते जहां रेत हर महीने लाया जाता था अब तीन महीने बाद मंगवाया जाता है।

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