नई दिल्ली (सच कहूँ न्यूज)। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ 3 जनवरी (मंगलवार) को कानून निमार्ताओं की बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी पर फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मंत्रियों, सांसदों/विधायकों और उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों के बोलने की आजादी के मौलिक अधिकार पर अधिक प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिसमें जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बी वी नागरथना भी शामिल हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने कहा कि इसके लिए पहले ही संविधान के आर्टिकल 19(2) में जरूरी प्रावधान मौजूद हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी भी आपत्तिजनक बयान के लिए उसे जारी करने वाले मंत्री को ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं होनी चाहिए।
क्या है मामला
न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने 15 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था कि क्या संविधान के तहत गरिमा के अधिकार से सार्वजनिक कार्यालयों में स्वतंत्र भाषण और व्यक्तियों की अभिव्यक्ति के अधिकार को कम किया जा सकता है। मामले के अनुसार 29 जुलाई, 2016 को राष्ट्रीय राजमार्ग 91 पर एक युवा लड़की और उसकी मां के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया था।
जब गैंगरेप की पीड़िता ने प्राथमिकी दर्ज की, तो उत्तर प्रदेश के मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने कथित तौर पर इसे ‘उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ राजनीतिक साजिशह्व करार दिया। अगस्त 2016 में, पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और एक रिट याचिका दायर कर घटना के बारे में ऐसी टिप्पणी करने के लिए मंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उत्तर प्रदेश में निष्पक्ष जांच न होने के डर से, उन्होंने अदालत से मामले को दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया।
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