राज्यों के सीमा विवाद पर केंद्र व सुप्रीम कोर्ट को निभानी होगी भूमिका

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट का आदेश, दिल्ली-एनसीआर में सभी पटाखों पर प्रतिबंध

असम-मेघालय सीमा पर हिंसा होना आम बात है। पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्यों में सीमा विवाद चल रहा है, किन्तु भौगोलिक सीमा और क्षेत्रों की दावेदारी को लेकर जितना खूनी संघर्ष पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ है, उतना कहीं नहीं हुआ। राज्य विवादित क्षेत्र के निपटारे के लिए कानूनी या लोकतांत्रिक तरीका अपनाने के बजाय दुश्मनों की तरह जंग छेड़े हुए हैं। इससे यही प्रतीत होता है कि ये अखंड भारत का नहीं बल्कि किसी पड़ोसी मुल्क का हिस्सा हैं। ऐसी स्थिति में जब देश कई चुनौतियों से जूझ रहा है, राज्यों द्वारा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के बजाय निहित स्वार्थों के वशीभूत होकर की गई कार्रवाई से एकता और अखंडता को लेकर गलत संदेश जा रहा है।

देश में करीब दस राज्य ऐसे हैं, जिनमें सीमा को लेकर विवाद जारी हंै। इनमें पूर्वोत्तर राज्यों में सर्वाधिक फसाद है। राज्यों के विवादों को उकसाने से स्थानीय लोग हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जिन क्षेत्रों की दावेदारी को लेकर विवाद या हिंसक कार्रवाई हो रही है, उनका कोई विशेष वाणिज्यिक या दूसरा महत्वपूर्ण उपयोग नहीं है, जिससे राज्यों को किसी तरह का भारी नुकसान हो रहा हो। इसके बावजूद राज्यों की सरकारें क्षेत्रवाद के नाम पर उकसावे भरी कार्रवाई से लोगों को हिंसा की तरफ धकेल रही हैं। सीमा विवाद को लेकर असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों की कई दौर की बैठकों के बावजूद कोई हल नहीं निकल पाया। सीमा विवाद को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों का इतिहास रक्तरंजित रहा है। साल 2021 में एक दंपति कछार (असम) जिले के रास्ते मिजोरम आ रहे थे। जिस समय वह लौट रहे थे तो उनकी गाड़ी में तोड़फोड़ हुई।

बवाल इतना बढ़ गया कि नौबत फायरिंग तक जा पहुंची। इससे पहले साल 2020 में अक्तूबर में भी दो बार असम और मिजोरम की सीमा पर आगजनी और हिंसा हुई थी। इन दोनों राज्यों के अलावा असम-मिजोरम, हरियाणा-पंजाब, लद्दाख-हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र-कर्नाटक, असम-अरुणाचल प्रदेश और असम-नगालैंड के बीच सीमा विवाद है। यहां सीमांकन और क्षेत्रों के दावों के बीच विवाद है। इनमें महाराष्ट्र और कर्नाटक में सीमा के दावों को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र के 40 गांवों पर अपना दावा किया है। ऐसे मामलों में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट पहल करके महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। विवादों को सिर्फ राज्यों के भरोसे छोड़े जाने से हिंसक घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।

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