दौर ई-एजुकेशन और ई-गवर्नेंस का

e-education

महामारी के इस कालखंड में शिक्षा बहुत बड़ी मुश्किल का सामना कर रही है और इससे निपटने के लिए स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों ने डिजिटल अर्थात ई-शिक्षा का रास्ता चुना। आॅनलाइन कक्षाएं तो किसी तरह पहले और दूसरी लहर में भी जारी रहीं मगर कोरोना के कहर ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा को रद्द करने के अलावा कोई विकल्प नहीं छोड़ा। जाहिर है पढ़ाई और परीक्षा दोनों दृष्टि से कोरोना बहुत भारी कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया। गौरतलब है कि जब 2006 में ई-गवर्नेंस आंदोलन मूर्त रूप लिया था तब से देश में डिजिटलीकरण का प्रभाव तेजी से बढ़ा।

हालांकि ई-शिक्षा दुनिया में नई विधा नहीं है मगर वर्तमान में इसका विस्तार व्यापक रूप ले रहा है। स्टडी ऐट होम की अवधारणा से युक्त ई-शिक्षा एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरी है। कक्षा से लेकर परीक्षा तक इसकी उपादेयता देखी जा सकती है। कोरोनावायरस का प्रभाव हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर न पड़े ऐसा कोई कारण नहीं दिखाई देता और न ही शिक्षा व्यवस्था के पहले जैसे होने की स्थिति दिखती है। बहुत से लोग जब पीछे मुड़ कर देखेंगे तो पाएंगे कि उनके जीवन की कई चीजें बदल गई हैं।

स्कूल का विद्यार्थी हो या विश्वविद्यालय का शोधार्थी या फिर सिविल सेवा परीक्षा का प्रतियोगी सभी मोबाइल स्टडी की जकड़न में आ चुके हैं। गौरतलब है कि भारत समेत दुनिया के अनेक देशों और जाने-माने शिक्षण संस्थाएं क्लासरूम टीचिंग से डिजिटल शिक्षा की ओर तेजी से कदम बढ़ा चुकी है। दुनिया समय भारत का शैक्षणिक वातावरण आॅनलाइन पर इन दिनों टिक गया है। यूनेस्को की मानें तो पिछले साल 14 अप्रैल 2020 तक जब भारत का पहला 21 दिन का लॉकडाउन समाप्त हुआ था तब तक दुनिया के डेढ़ अरब से अधिक छात्र-छात्राओं की शिक्षा प्रभावित हो चुकी थी। रूस, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी सहित ग्रीनलैंड व भारत आदि देश लंबे समय तक लॉकडाउन में रहे जिनका सीधा और प्रत्यक्ष प्रभाव शिक्षा पर भी देखा जा सकता है।

जब कभी देश में ई-गवर्नेंस की बात होती थी तब नए डिजाइन और सिंगल विंडो संस्कृति प्रखर होती थी। नागरिक केंद्रित व्यवस्था के लिए सुशासन प्राप्त करना एक लंबे समय की दरकार रही है। ऐसे में ई-गवर्नेंस इसका बहुत बड़ा आधार है। गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र है और एक ऐसा साधन भी जिसके चलते नौकरशाही तंत्र का समुचित प्रयोग करके व्याप्त व्यवस्था की कठिनाइयों को समाप्त किया जा सकता है। देखा जाए तो नागरिकों को सरकारी सेवाओं की बेहतर आपूर्ति, प्रशासन में पारदर्शिता की वृद्धि के साथ ही सुशासन प्रक्रिया में व्यापक नागरिक भागीदारी मनमाफिक पाने हेतु ई- गवर्नेंस कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है।

ई गवर्नेंस ने ही स्मार्ट एजुकेशन और शिक्षा को रास्ता दिया है जो शिक्षा में सुशासन का एक चौड़ा मार्ग है। शिक्षा को बढ़ावा देने में आज इसकी भूमिका बढ़े हुए कल के साथ देखी जा सकती है। एक दर्जन शिक्षा से संबंधित चैनल का निर्माण किया जाना पठन-पाठन को सशक्त बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। जबकि करोड़ों छात्र-छात्राएं छात्रवृत्ति हेतु ई-पोर्टल से बरसों पहले ही जुड़ चुके हैं। डिजिटल साक्षरता को भी खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। ई-बैंकिंग को भी बढ़त के तौर पर देखा जा सकता है मगर कोरोना के वर्तमान दौर में डिजिटल लेनदेन घटा है और नगद निकासी में तेजी आई है यह कहीं ना कहीं आर्थिक असुरक्षा के चलते है।

ई-लर्निंग एक ऐसी व्यवस्था जिससे घर बैठे सुविधा तो मिलती है मगर इसमें कई तकनीकी और इंटरनेट तक सभी का पहुंच न होना इसकी प्रमुख बाधाएं हैं। भारत एक विकासशील देश है यहां साइबरी जाल पूरी तरह अभी मुमकिन नहीं हैऔर ना सबकी पहुंच में है। भारत में साढे छ: लाख गांव, ढाई लाख पंचायतें और लगभग 7 सौ जिले हैं जहां व्यापक आर्थिक असमानता विद्यमान है। फलस्वरुप सभी की पहुंच इलेक्ट्रॉनिक विधायक तक हो अभी संभव नहीं। ऐसे में ई-शिक्षा बड़े और मझोले शहर तक सीमित है। आॅडिट एंड मार्केटिंग की शीर्ष एजेंसी केपीएमजी और गूगल ने भारत में आॅनलाइन शिक्षा 2021 शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें 2016 से 2021 की अवधि के बीच की शिक्षा कारोबार 8 गुना वृद्धि करने की बात है। साल 2016 में यह 25 करोड़ डॉलर का था और 2021 में दो अरब डॉलर की संभावना बताई गई है।

सुशासन लोक सशक्तिकरण की एक अवधारणा है भारत में उदारीकरण के बाद यह परिलक्षित हुई जबकि इंग्लैंड दुनिया का पहला देश है जिसमें 1992 में इसे अपनाया। फिलहाल ई गवर्नेंस के चलते न केवल समावेशी विकास को प्राप्त किया जा सकता है बल्कि आत्मनिर्भर भारत की कोशिश को भी मजबूती मिल सकती है। सरकार के समस्त कार्यों में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई गवर्नेंस कहलाता है। जबकि न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन सुशासन का परिप्रेक्ष्य है। जहां नैतिकता जवाबदेही उत्तरदायित्व की भावना के साथ संवेदनशीलता को बल मिलता है। इन दिनों मोबाइल शासन का दौर भारत में देखा जा सकता है और इसी के चलते ही ई-व्यवस्था की बाढ़ आई है तथा इससे ई-शिक्षा को भी बल मिल रहा है।

गौरतलब है कि कोरोना जैसे संकट के लिए शायद ही कोई देश तैयार रहा हो ऐसे में जहां की ई-व्यवस्थाएं पहले से व्यापकता लिए रही उन्हें काफी मदद मिल रही है। भारत के शानदार आईटी उद्योग ने डिजिटलीकरण को जिस प्रकार से आगे बढ़ाया है उसी ने ई गवर्नेंस के माध्यम से गुड गवर्नेंस का भी नक्शा बदला है। ई-गवर्नेंस के कारण ही नौकरशाही का कठोर ढांचा नरम हुआ है और स्कूल,कॉलेज और विश्वविद्यालय की महामारी में भी कुछ हद तक शिक्षा से लोगों को जोड़ने का काम किया है। फिलहाल ई-गवर्नेंस का विस्तार शिक्षा के लिए वरदान हो सकता है और न्यू इंडिया के लिए भी कारगर सिद्ध होगा। भारत बीते डेढ़ दशकों से यह ई-लोकतंत्र के ताना-बाना से भी युक्त है। जाहिर है कि शासन, प्रशासन और व्यवस्था जिस अनुपात में गति लेगी उसी अनुपात में शिक्षा स्वास्थ्य व तमाम सुविधाएं प्रसार करेंगी।

-डॉ. सुशील कुमार सिंह

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