इलाज की विभिन्न प्रणालियों में टकराव किसलिए और क्यों

ramdev baba sachkahoon

वक्त की जितनी बर्बादी भारतीय करते हैं, उतनी शायद ही किसी अन्य देश के लोग करते हों। यही कारण है कि हम पिछड़े हुए हैं। तीन माह के काम में साल भर लग जाता है और बेतुके कारणों के चलते लोग बिना वजह गुमराह होकर नुक्सान उठाते हैं। इससे सरकारों का ध्यान भी विकास पर से भटक जाता है। ताजा मामला योग विशेषज्ञ रामदेव का है, जिन्होंने एलोपैथी दवाओं पर भ्रमित करने वाली विवादास्पद की।

आखिर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के विरोध और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने अपना ब्यान वापिस ले लिया। इस वक्त यदि किसी पेशे से जुड़े लोग सबसे ज्यादा खतरा उठा रहे हैं, तो वह डॉक्टर ही हैं, जो दिन में कई-कई घंटे कोरोना मरीजों के उपचार में जुटे रहते हैं। देश भर से कई सौ डॉक्टरों की कोरोना से मौत की खबरें आई हैं, बल्कि दुनिया भर में इस महामारी से बहुत से डॉक्टर जान गंवा चुके हैं।

ऐसी स्थिति में उनके या उनके काम के बारें में विवादास्पद बातें करने से दूर रहना चाहिए। ऐसी बातें करना न सिर्फ डॉक्टरों के मनोबल को गिराना है, बल्कि मरीजों के मन में भी संदेह पैदा होता है। महामारी के चलते देश में करोड़ों लोगों का उपचार अंग्रेजी दवाओं से हो रहा है। एलोपैथी में उपचार करवाने से ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और दवाओं से करोड़ों मरीजों की जिंदगीयां बची हैं।

आयुर्वेद का अपना महत्व है जिसे गलत नहीं कहा जा सकता। आयुर्वैदिक काढ़ा, प्राणायाम और ध्यान से मरीजों को हिम्मत और हौसला मिला है। लेकिन दो उपचार प्रणालियों को एक-दूसरे के विरोध में खड़ा करना भारतीय दर्शन, विचारधारा, इतिहास और सिद्धांत के विपरीत है। किसी भी उपचार प्रणाली का अपना महत्व है। उपचार शब्द अपने आप में मानवीय जीवन के बचाव से जुड़ा हुआ है, कोई भी दवा किसी रोगी को मारने के लिए तैयार नहीं की जाती बल्कि हर दवा का उद्देश्य मरीज की जान बचाना रहता है।

इन परिस्थितियों में उपचार प्रणालियों संबंधी अवैज्ञानिक, असंतुलित व गैर-जिम्मेवारी वाली टिप्पणियां मरीजों का मनोबल तोड़ देती हैं। मनोबल और आत्मबल मरीज की तंदरुस्ती के लिए बेहद आवश्यक हैं। पहले भी अफवाहों के कारण लोग कोरोना पीड़ित मरीजों का उपचार अस्पताल में करवाने से मरीज स्वयं व उनके परिवारिक जन झिझकते थे। आम तौर पर गांवों के लोग कहते सुने गए कि कोरोना मरीज अस्पताल जाएगा तो मरकर ही आएगा।

ऐसे माहौल में एलोपैथी विरोधी टिप्पणी समस्या को जटिल बनाती है, जबकि वास्तविक्ता यह है कि करोड़ों लोग अस्पताल से ठीक हो चुके हैं, इसीलिए आवश्यक है कि जब मानवीय जिंदगीयों का सवाल हो तब संवेदनशीलता दिखाई जानी चाहिए और बेबुनियाद टिप्पणियों से किनारा किया जाए, यही देश एवं जनता के हित में है।

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