एनआईए अधिनियम में संशोधन होना जरूरी

#NIA Amendment in NIA Act is necessary

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण जिसको एनआईए के नाम से भी जानते हैं। एनआईए संशोधन अधिनियम 2019 इन दिनों देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। एनआईए पिछले वर्षों में एक शक्तिशाली संघीय जांच एजेंसी के रूप में उभरी है। विशेषज्ञों की माने तो एनआईए अधिनियम में किए गए संशोधन एनआईए को एक विश्व स्तरीय संघीय जांच एजेंसी की श्रेणी में स्थापित करते है। जिनमें अमेरिका की एफबीआई शामिल है यह संशोधन एनआईए को सीबीआई से ज्यादा शक्तिशाली भी बनाता है। एनआईए समवर्ती क्षेत्राधिकार के सिद्धांत के अंतर्गत कार्य करता है। भारत के संघीय व्यवस्था में प्रारंभिक जांच राज्य पुलिस का विषय होता है।

लेकिन भारत सरकार ने एनआईए को 2008 में समवर्ती क्षेत्राधिकार के अंतर्गत गठित किया। जिसका अर्थ है यदि राज्य सरकार एनआईए जांच का निवेदन करती है। तभी केंद्र सरकार एनआईए को आदेशित कर सकती है अन्यथा राज्य सरकार को अपने स्तर से जांच कराने की स्वायत्तता है। मौजूदा हुए परिवर्तनों की बात करें तो इसमें केंद्र सरकार ने एनआईए जांच अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया है। पहले एनआईए उन्हीं आतंक के मामलों को देख सकती थी। जो एनआईए अधिनियम में शामिल थे। जिनमें परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1962 और गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 शामिल था।

नए संशोधन अधिनियम के द्वारा अब एनआईए मानव तस्करी , नकली नोटों के व्यापार , साइबर आतंकवाद , अवैध हथियारों के व्यापार की भी जांच कर सकती है। इसके अतिरिक्त विस्फोटक सामग्री अधिनियम 1908 के अंतर्गत आने वाले मामलों की भी जांच अब एनआईए कर सकती है। इन सबके अतिरिक्त जो सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है , वह यह है कि अब एनआईए को यह अधिकार है कि वह अनुसूचित अपराधों की जांच भारतीय सीमा क्षेत्र से बाहर अर्थात विदेशों में भी कर सकती है। इसके लिए उसे अंतरराष्ट्रीय संधियों और संबंधित देश के घरेलू कानून के तहत जांच करने का अधिकार मिलेगा। भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी भारतीय जांच एजेंसी को विदेशों में भी जांच करने का अधिकार मिला है। इससे निश्चित तौर पर भारत को अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

यह परिवर्तन संविधान के जानकारों के मध्य चर्चा का विषय बन गया है। अधिकांश संविधान के जानकारों का कहना है की यह परिवर्तन भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करता है। इसके साथ राज्य पुलिस की भूमिका को भी कम करता है। जिन बिंदुओं पर इस संशोधन अधिनियम की आलोचना ज्यादा होती है वह यह है कि संघीय व्यवस्था में राज्य पुलिस की एक महत्वपूर्ण भूमिका कानून व्यवस्था को लेकर होती है। जिसके तीन चरण होते हैं, जिनमें अपराध को रोकना, अपराध की जांच और अभियोजन शामिल हैं। अब एनआईए अधिनियम में परिवर्तन के बाद मानव तस्करी , नकली नोटों का व्यापार , साइबर आतंकवाद , अवैध हथियारों का व्यापार आदि मामले एनआईए जांच के अंतर्गत आएंगे। इनसे राज्य की स्वायत्तता प्रभावित होती है। जिससे यह परिवर्तन संघीय व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालता है। हमें राष्ट्रीय सुरक्षा और संघीय ढांचे दोनों में सामंजस्य बनाकर चलने की आवश्यकता है।

एनआईए की कार्यकुशलता की बात करें तो एनआईए ने गठन से लेकर वर्ष 2019 के प्रारंभ तक 207 मामलों को देखा है। जिनमें 199 मामले में चार्ज शीट दाखिल हो चुकी है और इनमें से एक चौथाई मामले में दोषियों को दंडित भी किया जा चुका है। यह आंकड़ा एनआईए की कार्यकुशलता को बयां करता है। हमें यह आशंका है कि जब एनआईए के कार्यक्षेत्र का विस्तार किया जाएगा और यदि हम उस संस्था का और उसकी संरचना का विस्तार आवश्यकता अनुसार नहीं कर पाए। तो जांच में देरी होगी जिससे एनआईए की सफलता के आंकड़ों में कमी आएगी साथ-साथ प्रभाव भी घटता जाएगा।

निश्चित तौर पर सुरक्षा की दृष्टि से जो खतरा भारत में है , और भारत जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है। उसको देखते हुए हमें आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति की आवश्यकता है। हमें अपने सुरक्षा उपायों की गहन समीक्षा की भी जरूरत है। सीमाओं को सुरक्षित करने की जरूरत है। लेकिन यह भी ध्यान रखना है की जांच एजेंसी की सफलता की उच्च दर भी बनी रहे। हमें आवश्यकता है एनआईए को शक्तिशाली बनाने की उसके कार्य क्षेत्र में विस्तार करने की। लेकिन इसके लिए हमें कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए जो भारत के संघीय ढांचे पर चोट करें और भविष्य में इस संस्था की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए जाएं। इस तरह के परिवर्तनों से केंद्र और राज्य में संघर्ष बढ़ेगा। संवैधानिक विशेषज्ञ हाल के वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए ज्यादातर संवैधानिक परिवर्तनों को केंद्र का राज्यों पर बढ़ते प्रभुत्व के रूप में देखते हैं। हमें इन सब में सामंजस्य बैठाने की आवश्यकता है।

कुलिन्दर सिंह यादव

 

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