अलविदा 2021: मानवता को रहा समर्पित

जितनी आप सेवा करेंगे, जितना परमार्थ करेंगे वो आपके ही भाग्य को चमकाएगा। ये सोचकर आप सेवा न छोड़ देना कि फलां आदमी टोंट कसता है, बुरा कहता है, गलत बोलता है। उसका क्या जाएगा, आपने सेवा छोड़ दी, सुमिरन छोड़ दिया, सबकुछ आपका बर्बाद होगा, उनको तो मजा आएगा। इसलिए अपने दिमाग का इस्तेमाल करो। सेवा-परमार्थ का हिस्सा कोई दूसरा बंटा नहीं सकता। तन-मन और धन से सेवा और ख्यालों व जीभा से किया गया सुमिरन कभी भी खाली नहीं जाता है, बल्कि उसकी खुशिया ताउम्र आपकी झोली में आती रहेंगी।

शरीरदान ( अमर सेवा ) –

     माह           शरीरदान
  • जनवरी: ——12
  • फरवरी: ——12
  • मार्च: ———03
  • अप्रैल:——–06
  • जून: ———02
  • जुलाई: ——-02
  • अगस्त: ——06
  • सितम्बर: —–10
  • अक्तूबर: —–08
  • नवम्बर: ——14
  • दिसम्बर: —–14
  • कुल: ——–89

 

एक डेड बॉडी पर 20 मेडिकल छात्र कर सकते हैं प्रेक्टिकल

एक डेड बॉडी पर एक बार में 20 मेडिकल छात्रों को प्रेक्टिकल ज्ञान दिया जाता है। डॉ. मलिक कहना है कि कोरोना महामारी के समय में तो डेड बॉडी कम डोनेट हुई हैं, लेकिन इससे पहले 10 बॉडी डोनेशन की सालाना औसतन रही है। वैसे साल में 20 डेड बॉडी अकेले चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय रोहतक को दान मिलें तो मेडिकल के विद्यार्थियों को बेहतरी से पढ़ाया, सिखाया जा सकता है। इंसान की डेड बॉडी ज्यादा होती हैं तो रिसर्च (शोध) अच्छा हो सकता है। अगर डेड बॉडी कम होती हैं तो पढ़ाने पर अधिक मेहनत करनी पड़ती है।

इंसान की मृत देह वर्षों तक रखी जा सकती हैं सुरक्षित

संजय कुमार मेहरा (गुरुग्राम)। पंडित भवगत दयाल शर्मा चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय रोहतक (हरियाणा) के एनॉटमी विभाग के डॉ. (प्रोफेसर) विवेक सिंह मलिक ने सच कहूँ से विशेष बातचीत में बताया कि यह मेडिकल कॉलेज बनने के समय दान में मिले मृत शरीर अब तक सुरक्षित रखे हैं। सामान्य तौर पर मृत शरीर को अगर सही संभाल कर रखा जाए तो उसकी उम्र 100 साल से भी अधिक हो सकती है। मानव शरीर का उपयोग छात्रों को शरीर की संरचना और यह कैसे काम करता है, इसके बारे में सिखाने के लिए किया जाता है।

डेरा सच्चा सौदा की शरीरदानी मुहिम से आई जागरूकता

डॉ. (प्रो.) विवेक सिंह मलिक का कहना है कि वर्ष 2005 में जब उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई की तो डेरा सच्चा सौदा सरसा से डेड बॉडी डोनेशन में आती थी। अब तक भी आ रही हैं। उन्होंने कहा कि डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा चलाई गई ‘शरीरदान’ मुहिम के कारण आज जनता में जागरुकता आई है वहीं जो भ्रांतियां समाज में फैली हैं, वे भी धीरे-धीरे दूर होने लगी हैं।

महिला एवं पुरुष दोनों की डेड बॉडी छात्रों के लिए जरूरी

महिला एवं पुरुष दोनों की डेड बॉडी डोनेट करनी चाहिए। क्योंकि दोनों के शरीर की संरचना अलग-अलग होती है। एक्सपर्ट डॉक्टर बनाने के लिए छात्रों को दोनों के ही शरीर के बारे में ज्ञान दिया जाता है। उनका कहना है कि मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दी गई डेड बॉडी का कहीं दूसरी जगह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। हां, जिन्होंने आंखें व अन्य शरीर के अंग दान देने को आवेदन किया होता है। मेडिकल टीम निधन होने के तुरंत बाद ही उनके अंगों को निकाल लेती हैं।

 

 

 

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।