तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ, 26 नवंबर को दिल्ली सीमाओं पर जुटेंगे किसान

Farmers Protest

जींद (सच कहूँ न्यूज)। तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन का एक वर्ष पूरा होने पर 26 नवंबर को ज्यादा से ज्यादा किसान सीमाओं पर पहुंचेंगे। यह निर्णय जाट धर्मशाला में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रदेशस्तरीय सम्मेलन में किया गया। सम्मेलन में किसान आंदोलन को मजबूत करने और विस्तार देकर चरम पर ले जाने के लिए प्रदेशभर में पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर व अन्य वाहनों से यात्रा निकालने का निर्णय लिया गया। राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा के खिलाफ मामला दर्ज करने की मांग पर जोर देने के लिए सम्मेलन में 19 नवंबर को हांसी एसपी कार्यालय के बाहर ज्यादा से ज्यादा संख्या में जुटने का आह्वान भी किया गया।

500 किसानों के जत्थे संसद कूच करने का निर्णय

सम्मेलन में 24 नवंबर को छोटूराम जयंती को किसान-मजदूर संघर्ष दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। वहीं 26 नवंबर को दिल्ली सीमाओं पर प्रदर्शनकारी किसानों की संख्या बढ़ाने तथा संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन 29 नवंबर को लगातार 500 किसानों के जत्थे संसद कूच करने का निर्णय भी लिया गया। सम्मेलन में विभिन्न किसान संगठनों के 20 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीयध्यक्ष इंद्रजीत, भाकियू के प्रदेशाध्यक्ष रतनमान, सुरेश कोथ, अभिमन्यु कुहाड तथा खेड़ा खाप के सतबीर पहलवान आदि शामिल थे।

पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी के किसानों का ही ज्यादा विरोध क्यों?

एमएसपी मुख्यत गेहूं और चावल सहित सिर्फ 23 उपज पर ही मिलता है। फल, फूल, पशु, डेयरी उत्पादों पर यह नहीं मिलता। यानी एमएसपी का फायदा उन्हीं किसानों को ज्यादा मिलता है जिनके खेतों में गेहूं और चावल ज्यादा उगाए जाते हैं। यही वजह है कि इस आंदोलन में ज्यादा पंजाब और हरियाणा के किसान ज्यादा शामिल हो रहे हैं। किसान कहते हैं कि गारंटी लिख कर दो कि एमएसपी नहीं हटाई जाएगी। सरकार का कहना है कि कृषि कानूनों में एमएसपी का जिक्र ही नहीं फिर किसानों को यह गलतफहमी क्यों है कि हम एमएसपी हटाने जा रहे हैं।

लेकिन व्यावहारिक तौर पर होता यह है कि छोटा किसान जब अपनी उपज लेकर एपीएमसी मार्केट में पहुंचता है तो उसे ‘कल आना या परसों आना’ कह कर वापस भेज दिया जाता है। इसलिए छोटे किसानों को एमएसपी प्राइस का फायदा मिलता ही नहीं है। यह फायदा उठाते हैं बड़े किसान जिनका एपीएमसी मार्केट में दबदबा होता है और जो छोटे किसानों से कम रेट में उपज खरीद कर एपीएमसी में वो माल बेचते हैं। भ्रष्टाचार इतना ज्यादा है कि जो खराब अनाज हैं उसकी खरीदारी हो जाती है और अच्छे अनाजों को खुले मार्केट में बेच दिया जाता है और उससे मिलने वाली रेवड़ियां थोक व्यापारी, एफसीआई के सरकारी अधिकारी, कमीशन एजेंटों और दबंग किसानों में बंट जाती हैं। नए कृषि कानूनों में इस शोषण से ही छोटे किसानों को बचाने की कोशिश की जा रही है।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।