कोविड में भी रफ्तार पकड़ता कृृषि कारोबार

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देश में कोविड के दौरान भी नई कंपनियों की आमद दर्ज की गई है। हालांकि सबसे ज्यादा कंपनियों एग्री बिजनेस की आरे रूख कर रही हैं। यही वजह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल इससे जुड़ी करीब 53 फीसदी नई कंपनियां आई हैं। जबकि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भी बढ़ोतरी देखी गई है, यहां पर 36 फीसदी नई कंपनियां आई हैं। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि कोविड ने भी भारतीय कारोबारियों को निराश नहीं किया है।

कोरोना महामारी ने बाजार को नए सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि कारोबरी सर्जिस सेक्टर को छोड़कर एग्री बिजनेस की आरे रूख कर रहे हैं। कृषि कारोबार से जुड़ी नई कंपनियों में करीब 53 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। जबकि सर्विस सेक्टर की कंपनियों मे करीब चार फीसदी की गिरावट दर्ज हुई हैं। हालांकि इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह कृषि कारोबार में संभावित बढ़त को माना जा रहा है। माना जा रहा है कि 2022 तक देश में कृषि कारोबार 25 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा।

कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कोविड के दौरान भी नई कंपनियों की आमद दर्ज की गई है। हालांकि सबसे ज्यादा कंपनियां एग्री बिजनेस की ओर रूख कर रही हैं। यही वजह है कि पिछले साल की तुलना में इस साल इससे जुड़ी करीब 53 फीसदी नई कंपनियां आई हैं। जबकि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भी बढ़ोतरी देखी गई है, यहां पर 36 फीसदी नई कंपनियां आई हैं।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि कोविड ने भी भारतीय कारोबारियों को निराश नहीं किया है। पिछले साल के मुकाबले इस साल नवंबर तक आठ फीसदी ज्यादा कंपनियां रजिस्टर्ड हुई हैं, जो उत्पादन और कृषि के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। एक लाख 61589 कंपनी व लिमिटेड लाइबेलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के तहत पंजीकरण की औसत ग्रोथ थी। देश के पांच राज्य महाराष्टÑ, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना में आई सबसे ज्यादा कंपनियां। 27073 उत्पादन कंपनियों ने 11 महीनों में पंजीकरण कराया हैं। 77 प्रतिशत की सबसे अधिक वृद्धि खाद्य उत्पादों के क्षेत्र में हुई। अब कंपनियां कर रही हैं। खेती से जुड़े धंधों की ओर रूख। इस साल बाजार में उतरी कुल कंपनियों में 35 फीसदी कृषि क्षेत्र में हैं।

फलों-सब्जियों की खेती के लिए टॉप टू टोटल योजना-

आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरी, भंडारण-विपणन में बिचौलियों की भरमार, महंगी ढुलाई जैसे कारणों से कभी आलू-प्याज सड़कों पर फेंकने की नौबत आती है तो कभी उनकी महंगाई आंसू निकाल देती है। इसका एक परिणाम यह भी होता है कि वैश्विक कृषि बाजार में भारत एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता नहीं बन पाता। इस समय जिस आलू-प्याज का भूटान, अफगानिस्तान, तुर्की, मिश्र में आयात किया जा रहा है, उसी आलू-प्याज का चार महीने पहले तक निर्यात किया जा रहा था। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जून 2020 तक आठ लाख टन प्याज और सवा लाख टन आलू का निर्यात किया गया था, लेकिन महंगाई बढ़ते ही जैसे निर्यात पर प्रतिबंध लगा, वैसे ही सभी आॅर्डर कैंसिल हो गए।

सब्जियों का भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन-

विश्व का 12.6 फीसद फल और 14 फीसद सब्जी उत्पादित करने वाले भारत का फलों व सब्जियों के कुल वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी क्रमश: 0.5 और 1.7 फीसद ही है। आलू, प्याज, टमाटर के साथ हर साल घटित होने वाली इस स्थिति से निजात दिलाने के लिए 2018-19 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आॅप्रेशन ग्रीन के तहत टॉप योजना शुरू की थी। इसके तहत टमाटर, प्याज और आलू के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 500 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन योजना के तीन साल बाद भी इसमें से पांच फीसद अर्थात 25 करोड़ रूपये भी नहीं खर्च हुए।

कृषि उपजों का कारोबार पकड़ रहा रफ्तार-

मोदी सरकार द्वारा अंतरराज्यीय कृषि कारोबार को अनुमति देने वाले कानून लागू करने के बाद कृषि उपजों का कारोबार रफ्तार पकड़ रहा है। उत्पादक और उपभोक्ता मंडियों के बीच किसान रेल शुरू होने से किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है तो उपभोक्ताओं को महंगाई से राहत। उदाहरण के लिए दिल्ली में टमाटर की कीमतें 80 रूपये प्रति किलो पहुंच गई थीं, लेकिन आंधप्रदेश से दो किसान रेल में आए 500 टन से ज्यादा टमाटर के मंडियों में पहुंचते ही कीमतें काबू में आ गई।

किसान रेल को मिली कामयाबी-

पहली किसान रेल महाराष्टÑ के देवलाली से बिहार के दानापुर के बीच साप्ताहिक तौर शुरू की गई थी, लेकिन किसानों की मांग को देखते हुए इसे सप्ताह में तीन दिन करते हुए इसके रूट में विस्तार किय गया है। किसानों की मांग पर देश के दूसरे हिस्सों में भी किसान रेल चलाई जा रही हैं। किसान रेल को मिली कामयाबी को देखते हुए मोदी सरकार मालवाहक विमानों से सब्जियों और फलों की ढुलाई की योजना बनाई है।

ढुलाई की लागत का आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी-

ढुलाई की लागत का आधा हिस्सा सरकार वहन करेगी, ताकि उपभोक्ताओं तक पहुंचते-पहुंचते उनके भाव बहुत अधिक न बढ़ जाए। इसके लिए 41 फलों और सब्जियों की सूची जारी की गई है। पहले चरण में इस योजना को पूर्वोत्तर और हिमालय के राज्यों के लिए शुरू किया गया है। आगे चलकर देश के सभी हिस्सों में विमानों के जरिये फलों-सब्जियों की ढुलाई होने लगेगी। इसमें सबसे कारगर हथियार हैं बागवानी फसलें। देश के महज 805 फीसद क्षेत्र में फलों-सब्जियों की खेती होती है, लेकिन इनसे कृषिगत सकल घरेलू उत्पाद का 30 फीसद हिस्सा प्राप्त होता है। इतना ही नहीं फलों और सब्जियों की खेती अन्य फसलों के मुकाबले चार से दस गुना ज्यादा रिटर्न देती है।

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