सुख आए, तो खुश रहो, दु:ख आए, तो हाय-तौबा मत करो : पूज्य गुरु जी

पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि भगवान के रास्ते पर ओवर स्मार्ट कभी न बनो। दुनियावी तौर पर तो आप बनते ही रहते हो, किसी को क्या टोकना! ओवरस्मार्ट का मतलब है कि अपने-आपको बहुत होशियार समझना और सामने वाले को बेइंतहा मूर्ख। यह गलत बात है। ऐसा नहीं होना चाहिए। एक लेवल होना चाहिए कि मैं अपने सतगुरु, मौला से इश्क करता हूं। आपका आत्मबल आपके अंदर बेइंतहा है, जिसमें आप बेइंतहा इंजॉय कर सकते हो। लेकिन सिर्फ और सिर्फ दुनियावी चीजों में खोकर आप आत्मबल की तरफ ध्यान न देकर दु:खी परेशान हो जाते हो।

इसलिए मालिक की खुशियों से वंचित रह जाते हो। अपने आत्मबल पर कायम रहो। न कभी हद से ज्यादा नीचे गिरो और न कभी मन के हत्थे ज्यादा ऊपर चढ़ो। एक लेवल मेंटेन रखो। सुख आए, तो खुश रहो, इंजॉय करो। लेकिन दु:ख आए, तो हाय-तौबा मत करो। तब भी इंजॉय ही करते रहो, कि मालिक, कोई बात नहीं! दु:ख आ गया, तो ले भी तू ही जाएगा। तू मेरा दाता है! अगर आप ऐसा करते हो, तो यकीन मानिये दु:ख के आने का पता भी नहीं चलने देगा।

रूहानियत से दूर हो जाते हैं उम्मीद छोड़ने वाले

पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। जिस दिन आदमी अपनी उम्मीद छोड़ देता है, उस दिन समझिये वो रूहानियत से दूर हो जाता है। रूहानियत, सूफियत कहती है कि अल्लाह, वाहेगुरु, राम पूर्ण है। कभी खत्म नहीं हुआ, कभी खत्म नहीं होगा। वो अजर-अमर जर्रे-जर्रे में रहने वाला है। लेकिन वो नजर तो उसे ही आएगा, जो उसकी याद में तड़पता है, याद में समय लगाता है। जरा सोचिए, जब आपको दु:ख, तकलीफ आती है, तो आप कैसे रोते हैं! मां-बाप बच्चे के लिए कैसे तड़पते हैं! कभी आप ऐसा अपने सतगुरु, राम के लिए तड़पे हो?

सुमिरन करते रहो, रहमत लाजमी बरसेगी

आप जी फरमाते हैं कि जब इन्सान के पास खुशियां आती हैं तब थोड़ी देर के लिए मालिक याद रहता है। भूल जाता है अपने पिछोकड़ (बीता समय) में क्या था? क्या मेरा होता, अगर सतगुरु न होता। वो सब चीजें भूल जाता है। मस्त मलंग हो जाता है, नहीं मैंने जो किया खुद किया, जो बनाया मैंने बनाया। और जब बकरी की तरह मैं-मैं होती है तो कसाई की छुरी जल्दी गले पर आ जाती है। और जब उस मालिक की तू ही तू होती है तो कोई बाल भी बांका नहीं कर पाता, इसलिए हौंसले बुलंद होने चाहिए हमेशा, दृढ़ यकीन होना चाहिए। लोग मजाजी इश्क में दृढ़ यकीन रखते थे तो हकीकी इश्क में कितना यकीन होना चाहिए ? पारे की तरह ऊपर नीचे नहीं होना चाहिए।

आप छोड़ देते हो मालिक को, पर मालिक अपको कभी नहीं छोड़ता

पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि सतगुरु, मालिक आपको कभी नहीं छोड़ता, लेकिन आप छोड़ देते हो कई बार। फिर पकड़ लेते हो, फिर छोड़ देते हो। आप रूठ जाते हो। सतगुरु फिर मना लेता है। कईयों के तो मुंह बड़े जल्दी टेढेÞ हो जाते हैं। कई किस्म के लोग होते हैं। एक होते हैं कि छाती के वार को सह जाते हैं और सामने वाले को पता भी नहीं चलता कि छाती पर वार भी हो गया। और एक होते हैं कि छोटा-सा कांटा भी लग जाए तो चीखने लगते हैं। ये जज्बा इश्क का होता है जो मालिक के प्यार में चलते हैं, कैसा गम, दु:ख, दर्द, चिंता, परेशानी आ जाए अगर वो नहीं छोड़ते तो यकीन मानो वो सतगुरु उसके सारे गम चिंता को आग लगा देता है, खुशियों से मालामाल कर देता है।

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