पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए माइक्रो एक्शन प्लान तैयार

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विद्यार्थियों ने माता-पिता तथा ग्रामीणों को पराली जलाने से रोकने के लिए किया जागरूक

टीम गठित, सेटेलाईट से रखेंगे नजर

  • पिछले वर्ष असंध, निसिंग, नीलोखेड़ी व घरौंडा में जली अधिकतर पराली

करनाल(सच कहूँ/विजय शर्मा)। फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन एक्शन मोड में आ गया है। धान का सीजन शुरू होने से एक माह एडवांस ही प्रशासन ने माइक्रो एक्शन प्लान तैयार कर लिया है, जिसे धरातल पर उतारने के लिए पटवारी, ग्राम सचिव व संबंधित क्षेत्र के कृषि अधिकारी की एक संयुक्त टीम का ग्राम व जिलास्तर पर गठित की गई है। जोकि न केवल एडवांस में ही किसानों को पराली जलाने से होने वाली हानियों के बारे में जागरूक करेंगी बल्कि ऐसे किसानों पर भी कड़ी नजर रखेंगे जिन्होंने पिछले वर्ष पराली जलाने की घटनाओं को अंजाम दिया है। योजना को लेकर जिला उपायुक्त ने अनीश यादव ने स्थानीय पंचायत भवन में कृषि विभाग, राजस्व विभाग तथा पंचायत विभाग के उपमंडल, खंड व ग्राम स्तर पर कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों की बैठक भी ली।

‘‘जो व्यक्ति समझाने के बाद भी पराली जलाने की कोशिश करेगा, प्रशासन ऐसे लोगों से सख्ती से निपटेगा और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हिदायतों के अनुसार दंडनीय कार्यवाही भी करेगा।
-अनीश यादव, उपायुक्त करनाल।

702 कस्टम हेयरिंग सैंटर जिले बनाए गए

उप कृषि निदेशक डॉ. आदित्य प्रताप डबास ने बताया कि पिछले वर्ष जिला में पराली जलाने की घटना अधिकतर असंध, निसिंग, नीलोखेड़ी व घरौंडा क्षेत्र में हुई थी। इन क्षेत्रों पर और अधिक पैनी नजर रखने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि जिला में 702 कस्टम हेयरिंग सैंटर हैं, जोकि प्रदेश में सर्वाधिक हैं। इन सैंटरों पर फसल अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि उपकरण उपलब्ध हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इंडियन आॅयल कापोर्रेशन द्वारा पानीपत रिफाईनरी में पराली के समुचित प्रंबधन के लिए इथेनॉल प्लांट लगाया गया है जिसमें हर वर्ष 2 लाख मीट्रिक टन पराली की खपत रहेगी। कंपनी की ओर से जिला में 4 डिपो सैंटर बनाए गए हैं, जहां पर आसपास के क्षेत्रों से पराली स्टोर की जाएगी। यहां से कंपनी इथेनॉल प्लांट में लेकर जाएगी।

अच्छा काम किया तो होंगे सम्मानित, लापरवाही पर गिरेगी गाज

पराली जलाने की घटनाओं पर सैटेलाईट के माध्यम से भी नजर रखी जाएगी जिसकी सूचना तुरंत जिला प्रशासन के पास मिलेगी। अगर गांव स्तर पर पटवारी, ग्राम सचिव या कृषि अधिकारी की लापरवाही नजर आई तो उनके खिलाफ भी सख्त प्रशासनिक कार्यवाही अमल में लाई जाएगी। इसके अलावा अच्छा कार्य करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रशासन की ओर से सम्मानित भी किया जाएगा।

70 फीसदी माईक्रो न्यूट्रेन हो जाते हैं नष्ट

पराली को जलाने से सिर्फ पर्यावरण ही दूषित नही होता बल्कि जमीन के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। पराली को आग लगाने से एक एकड़ में 25 किलो पोटाश और पांच किलो नाइट्रोजन नष्ट हो जाती है। दो किलो फासफोरस की बबार्दी होती है। आग लगाने की वजह से जमीन के 70 फीसदी माईक्रो न्यूट्रेन के नुकसान की भरपाई तो किसी भी कीमत पर नही हो पाएगी। अगर लगातार तीन साल खेत में पराली को मर्ज किया जाए तो रासायनिक खादों की 45 फीसदी जरुरत कम हो जाएगी।

मनुष्य को भी जानलेवा नुक्सान

पराली के जलने से मीथेन और कार्बन मोनो आॅक्साइड जैसे गैसों का उत्सर्जन होना है। जहरीले धुएं की वजह से फेफड़े की समस्या, सांस लेने में तकलीफ, कैंसर समेत अन्य रोग के होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसके साथ ही अस्थमा, श्वांस की बीमारी होने की संभावनाएं भी काफी हद तक बढ़ जाती है।

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