जख्मों पर बरसात का नमक: ग्वार की फसल खत्म, मजबूर किसानों ने चलाया हल

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अन्नदाता बोले, लगता है इस बार ईश्वर नाराज है…

ओढां(सच कहूँ/राजू)। इस बार खरीफ की फसल वैसे ही कमजोर थी ऊपर से बेमौसमी बरसात ने जख्मों पर नमक का काम किया है। ग्वार की फसल खराब (Crop Damage) होने के बाद थोड़ी बहुत उम्मीद नरमे की फसल से थी, लेकिन बेमौसमी बरसात ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। भीषण गर्मी के चलते किसानों ने कई-कई बार बिजाई कर जुगत बिठाने की कोशिश की, लेकिन फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी। सबसे ज्यादा विकट स्थिति उन किसानों की है जिन्होंने ऊंचे दामों पर भूमि ठेके पर लेकर काश्त की हुई थी। उन किसानों को आमदन तो दूर बुआई-बिजाई व बीज का खर्च भी पूरा नहीं हो पाया। अधिकांश जगहों पर निराश किसानों को मजबूरन फसल पर हल चलाना पड़ा। इस बार नरमे व ग्वार दोनों ही फसल बेहद कमजोर साबित हुई है। इस बारे जब कुछ किसानों से चर्चा की गई तो उन्होंने अपनी स्थिति को दु:खी मन से कु छ इस तरह बयान किया।

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‘‘मैं ठेके पर भूमि लेकर काश्त करता हूं। मैंने इस बार 7 एकड़ भूमि ठेके पर ली थी। विगत वर्ष की बजाए इस बार ठेके के रेट अधिक थे। नरमे की 4-4 बार बिजाई कर वैसे ही कमर टूट चुकी थी और ऊपर से खाद व कीटनाशकों सहित अन्य खर्च अलग से। विगत वर्ष भाव ठीक होने के चलते इस बार पूरी भूमि में नरमे की ही बिजाई की थी। नरमे ने न ही तो कद किया और बीमारी का प्रकोप भी ज्यादा रहा। कीटनाशकों पर मोटी राशि खर्च करने के बाद भी फसल पल्ले नहीं पड़ी। 2 एकड़ फसल पर मजबूरन हल चलाना पड़ा। बाकी 5 एकड़ भूमि में मात्र 5 से 7 क्विंटल नरमा ही हो पाएगा। इससे लागत खर्च भी पूरा नहीं होगा।
-चेतराम दारदवाल (नुहियांवाली)।

इस बार जैसी हालत पहले नहीं हुई। न तो नरमा है और न ही ग्वार। किसान कैसे काम चलाएगा। समझ में नहीं आ रहा कि होगा क्या। इस बेमौसमी बरसात ने किसान को कहीं का नहीं छोड़ा। मैंने 7 एकड़ भूमि में ग्वार व 8 एकड़ भूमि में नरमे की बिजाई की थी। ग्वार की फसल खत्म हो चुकी है, जबकि नरमा भी विगत वर्ष की बजाए आधा भी नहीं रहा। रही सही कसर बेमौसमी बरसात ने पूरी कर दी। सरकार से मांग है कि सर्वे करवाकर उचित मुआवजा दिया जाए।
-सेवक सिंह सिधु (चोरमार खेड़ा)।

‘‘ इस बार तो हालत ऐसी है कि न तो नरमा और न ही ग्वार। हां, नरमे के भाव ठीक हैं, लेकिन जब फसल ही नहीं तो अकेले भाव किस काम के। मैंने इस बार 45 हजार रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से 4 एकड़ भूमि ठेके पर लेकर नरमे की बिजाई की थी। सोचा तो ये था कि इस बार नरमे का भाव ठीक है फसल बेचकर ट्रैक्टर खरीदेंगे। मैंने कीटनाशकों पर करीब 50 हजार रुपये खर्च कर दिए। इसके अलावा बुआई-बिजाई व अन्य खर्च अलग। स्थिति ये है कि 4 एकड़ में मात्र डेढ़ क्विंटल नरमा ही हो पाएगा। सरकार से मांग है कि किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा।
– नायब सिंह (बीरूवालागुढ़ा)।

‘‘ किसान कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। इस बार नरमे व ग्वार की फसल से किसान का लागत खर्च भी नहीं पूरा हुआ। बात वहीं पर है भाव ठीक हैं तो फसल नहीं। मैंने इस बार 8 एकड़ भूमि में ग्वार की बिजाई की थी। लागत खर्च भी पूरा न होने पर मजबूरन हल चलाना पड़ा। विगत वर्ष 6 एकड़ में 30 क्विंटल ग्वार हुआ था, लेकिन इस बार 30 किलोग्राम भी नहीं। नरमा अगर प्रति एकड़ एक क्विंटल ही हो जाए तो भी गनीमत है। कुछ नहीं किसान की कमर पूरी तरह से टूट चुकी है।
– सतपाल बड़जाती (नुहियांवाली)।

‘‘इस बार मैंने 8 एकड़ में नरमा व 4 एकड़ में ग्वार की बिजाई की थी। 2 एकड़ ग्वार पर मजबूरन हल चलाना पड़ा, जबकि जो 2 एकड़ बचा है वो एक क्विंटल के आसपास ही होगा। नरमा 2 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाए तो गनीमत है। इस बार जैसी हालत किसानों की पहले कभी नहीं हुई। समझ नहीं आ रहा कि इस बार ये हो क्या रहा है। खेतों में फसल नहीं और गोवंश बीमारी से मर रहा है। पिछले दिनों हुई बेमौसमी बरसात ने जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है।
– रामपाल भाकर (रत्ताखेड़ा)।

‘‘मेरी 13 एकड़ में ग्वार की फसल थी। 13 किलो भी न होती देख पूरी फसल पर हल चलाना पड़ा। 14 एकड़ में नरमा बोया था जिस पर कीटनाशकों का छिड़काव कर पहले ही कमर टूट चुकी है। रही-सही कसर इस बेमौसमी बरसात ने पूरी कर दी। समझ नहीं आ रहा कि खर्च कैसे पूरे होंगे। ये सोचकर मन को समझा रहे हैं कि उन लोगों की हालत का क्या होगा जिन्होंने जमीन ठेके पर लेकर काश्त की हुई है। लगता है कि इस बार ईश्वर ही नाराज है।
– रणवीर सिहाग (रत्ताखेड़ा)।

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