विडंबना मानवीय जीवन की सच्चाई है। यह भी एक विडंबना है कि जिस समय मानवीय सभ्यता के अब तक के इतिहास में सबसे अधिक ‘संवाद’ के साधन उपलब्ध हों, लोग यह शिकायत कर रहे हैं कि उनके घरों में आपसी संवाद कम हो रहा है। मध्यवर्गीय अभिभावकों की यह चिंता है कि उनके किशोर और व्यस्क बच्चे मोबाइल व कंप्यूटर के साथ अधिक समय गुजार रहे हैं और पारिवारिक-सामाजिक समारोहों में जाने से कतरा रहे हैं।
विगत वर्ष में राजस्थान के राजसमंद में गेम खेलने के जुनून में नाबालिग ने अपने दोस्त की हत्या कर दी। गेम खेलने के लिए जब दोस्त ने फोन नहीं दिया तो नाबालिग ने पत्थर से कई वार करके उसे मार दिया था। मेरठ जिले में एक युवक ने पिता द्वारा गेम खेलने से मना करने पर चाकू से उनका गला रेत दिया था। इसी तरह लखनऊ के ठाकुरगंज के एकता नगर में मोबाइल में गेम खेलने से मना करने पर गुस्साई छात्रा दिव्यांशी (14) ने फांसी लगा ली। दरअसल, इंटरनेट की दुनिया में विचार और पसंद के मोर्चे पर यूजर्स की उपस्थिति का यह पहलू वास्तविक दुनिया के व्यवहार से भी जुड़ा है। यही वजह है कि यहाँ हो रहे सर्च और अपडेट्स का रुख कहीं ना कहीं मानवीय व्यवहार में भी परिलक्षित होता है। लॉकडाउन के शुरूआती 11 दिनों में चाइल्ड इंडिया हेल्पलाइन पर अब्यूज और प्रताड़ना की 92 हजार से ज्यादा शिकायतें आईं थी।
अधिकतर लोकप्रिय ऑनलाइन गेम हिंसा पर आधारित हैं और वे युवाओं-किशोरों को एक आभासी दुनिया में ले जाते हैं। बच्चों से लेकर वयस्कों तक मोबाइल-इंटरनेट का अतिशय प्रयोग आज समाज में एक बड़ी चुनौती बन रहा है। इसे देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली को इंटरनेट के नशे की लतवालों का इलाज करने के लिए एक केंद्र खोलना पड़ा है। बच्चों में बढ़ रही उग्रता और उदंडता के ऐसे मामले गांवों-कस्बों से लेकर महानगरों तक, हर जगह हो रहे हैं। मामूली अनबन और छोटी-छोटी बातों पर बच्चों में बढ़ रही अनुशासनहीनता और आक्रोश अध्यापकों के लिए ही नहीं अभिभावकों के लिए भी बड़ी दुविधा पैदा कर रही है। नाबालिग अपराधियों की तेजी से बढ़ रही संख्या कानून और प्रशासन के लिए भी चिंता का विषय है। एनसीआरबी के मुताबिक 16-18 आयु वर्ग के नाबालिगों अपराधियों की संख्या साल 2003 से 2013 के बीच बढ़कर 60 प्रतिशत हो चुकी है।
इन 10 सालों में केवल दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किए गए नाबालिगों में 288 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। समझना मुश्किल नहीं कि बीते 7 वर्षों में दूसरे अपराधों के साथ ही डिजिटल दुनिया के विस्तार से साइबर अपराधों में भी बच्चों की भागीदारी बढ़ी ही है। ऐसे में संक्रमण से बचने के लिए घरों में बीत रहा समय बच्चों की सुरक्षा के लिए समस्या बना गया है। बच्चे ऑनलाइन दुनिया से जुड़कर बहुत कुछ सार्थक भी कर रहे हैं। सूचनाओं और समाचारों तक उनकी पहुँच बढ़ी है। अफसोस कि उसी अनुपात में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से अपवाद बढ़ रहा है। ऐसे में बच्चों को इंटरनेट के संसार में सुरक्षित और सीखने-समझने की इस दुनिया को सकारात्मक बनाए रखने के लिए साझे प्रयास जरूरी हैं।
कोरोना काल में ऐसा देखा गया था कि कभी-कभार परिवार में इक्ट्ठे होने वाले लोग कई-कई महीनों तक इक्ट्ठे रहे।परिवारों में संवाद बढ़ने से वैचारिक मतभेद तो दूर हुए ही, साथ ही एक-दूसरे के प्रति सहयोग की भी भावना बढ़ी। बच्चों को पुरात्तन गौरवमई इतिहास, साहित्य, नैतिक शिक्षा व मूल्यों और अच्छे संस्कारों के प्रति सजग करना होगा। आज की डिजिटल दुनिया में नई पीढ़ी की वर्चुअल मौजूदगी को सुरक्षा देने के लिए सरकार, परिवार और समाज के साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी सहयोगी बनना होगा।
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