बेरोजगारी हटाने के लिए बनें प्रभावी नीतियां

Employment crisis in Punjab, unemployment rate 7.4%

बिहार में रेलवे भर्ती की परीक्षा के परिणामों में देरी और अन्य गड़बड़ियों के खिलाफ परीक्षार्थियों का गुस्सा फूट रहा है। इन बेरोजगारों को विद्यार्थी संघ भी अपना समर्थन दे रहा है। पांच राज्यों की विधानसभा चुनावों के नजदीक होने के कारण यह मुद्दा काफी चर्चा में है, फिर भी यह मामला अभी राजनीति से प्रेरित बताया जा रहा है। भले ही बेरोजगार भी यह समझते हैं कि चुनावों के समय मांगें उठाना बेहतर होता है लेकिन हाल-फिलहाल किसी राजनीतिक पार्टी ने इस आंदोलन का फायदा उठाने से दूरी बनाई है। असल में यह मुद्दा रोजगार का मुद्दा है। तत्कालीन कारण भले रेलवे परीक्षा हो, लेकिन इसकी वास्तविक जड़ें बेरोजगारी प्रति सरकारों की नीतियों संबंधी पढ़े-लिखे बेरोजगारों की अंसतुष्टि है। यह मामला महज बिहार तक ही सीमित नहीं बल्कि पूरे देश में बेरोजगारी की मार है, जो अलग-अलग रूप में प्रकट हो रही है।

पंजाब में इस बेरोजगारी ने जहां नशा तस्करी को बढ़ाया है वहीं ‘ब्रेन ड्रेन’ भी इसी बेरोजगारी का परिणाम है। अमीर घरों और मध्य वर्ग के नौजवान नौकरियों और स्व रोजगार की उम्मीद छोड़कर आईलैट्स सैटरों में भीड़ के रूप में देखे जाते हैं। जम्मू-कश्मीर में भी विदेशी आतंकवादी संगठन बेरोजगार कश्मीरियों को रूपयों का लालच देकर हिंसक कार्रवाईयों में शामिल करते रहे हैं। देश के विकास और अमन-शांति के लिए रोजगारमुखी विकास बहुत ही आवश्यक है। यह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक तथ्य हैं कि बेरोजगारी अपराधों को जन्म देती है। विकास का फायदा आम लोगों को होना चाहिए। भले ही सबके लिए नौकरी संभव नहीं लेकिन स्व रोजगार के साथ बड़े प्रोजैक्ट विकास मुखी होने चाहिए। अभी कोरोना महामारी के कारण लगाई गई पाबंदियों के बावजूद कार्पोरेट घरानों की आमदन में भारी वृद्धि हुई है, जबकि आम आदमी की आय में गिरावट आई है।

सभी सरकारें अपने आप को आम आदमी की सरकारें तो कह रही हैं लेकिन आम आदमी के मसले हल होते नजर नहीं आ रहे। कार्पोरेट घरानों के बढ़ने-फूलने के दरमियान छोटे उद्योगपति, व्यापारी, दुकानदार कमजोर हो रहे हैं। बिहार का बेरोजगार भड़क रहा है, लेकिन पंजाब का बेरोजगार विदेशों की तरफ जा रहा है, मामला दोनों का ही एक सा है, परंतु नजरिया अलग-अलग है। लेकिन दोनों का साझा सूत्र बेरोजगारी है। बेरोजगारी को वर्तमान समस्या मानने की बजाय इसे बड़ी समस्या समझा जाए। भविष्य के संदर्भ में इसे लेकर प्रभावी नीतियां बनाने की आवश्यकता है।

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