अपनी-अपनी नींद

Everyone has different shades of sleep
सर्दी का मौसम था। एक राजा अपने महल की खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहा था। शाम ढलने को थी। तभी एक साधु आया और महल के सामने एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसके बदन पर एक लंगोटी को छोड़कर और कोई कपड़ा नहीं था। राजा को उस पर दया आ गई। राजा ने तुरंत एक नौकर के हाथ कुछ गरम कपड़े साधु के पास भेज दिए। थोड़ी देर बाद राजा ने फिर बाहर झांका। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। साधु अब भी नंगे बदन बैठा था। राजा ने सोचा- साधु को अपने तप का घमंड है, इसलिए उसने कपड़ों का तिरस्कार किया। राजा को क्रोध आया पर उसने नियंत्रण रखा। तभी अंधेरा घिर आया। राजा ने खिड़की बंद कर दी। थोड़ी देर बाद वह सो गया। सुबह राजा घूमने निकला तो ठिठक गया। नंगे बदन साधु अब भी पेड़ के नीचे मौजूद था।
राजा ने पूछा- कहिए, रात कैसी कटी? साधु बोला-कुछ आप जैसी कटी और कुछ आप से अच्छी कटी। यह सुनकर राजा बोला-महाराज! आप की बात मेरी समझ में नहीं आई। साधु बोला- आपने समझा होगा कि मैंने आपकी भेंट का अपमान किया, पर ऐसी बात नहीं थी। एक गरीब आदमी सर्दी से कांपता हुआ जा रहा था। वे कपड़े मैंने उसे दे दिए। पर हित में जो सुख है, उसके आगे सर्दी का क्या भय! जब तक मैं जागता रहा, भगवान का भजन करता रहा। आपको उस समय भी दुनिया भर की चिंताए घेरे हुए थीं। इसलिए मेरा वह समय आप से अच्छा कटा। जब हम दोनों सो रहे थे, हम दोनों बराबर थे। राजा लज्जित होकर वापस लौट गया।
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