किसान व सरकार समस्या के हल पर पहुंचे

Farmer--Protest

केंद्र सरकार द्वारा बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने 26 मार्च को बंद का न्यौता दिया था, जिसका पंजाब-हरियाणा में व्यापक असर देखने को मिला, दूसरे राज्यों में भी बंद का असर दिखा। मीडिया में इस बात की चर्चा ज्यादा रही है कि आंदोलन पहले की तरह है या नहीं? मीडिया का एक हिस्सा इस बात को उछाल रहा है कि किसान आंदोलन में पहले जैसा जोश नहीं दिख रहा, आंदोलन कमजोर पड़ता जा रहा है दूसरी तरफ किसान कह रहे हैं कि आंदोलन को खत्म करने के लिए नई-नई चालें चली जा रही हैं। मीडिया के एक हिस्से की भूमिका भी नकारात्मक हो रही है, जो किसानों या सरकार में से एक को चुन रहा है जबकि मीडिया के लिए मुद्दा यह होना चाहिए कि समस्या के समाधान में इतनी देरी क्यों हो रही है? देश में बुद्धिजीवियों, कृषि विशेषज्ञों, अर्थ शास्त्रियों की कमी नहीं है।

दरअसल किसी भी राष्ट्रीय मुद्दे पर संतुलित व वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। वास्तव में किसानों व सरकार दोनों पक्षों को कृषि व देश हित में पूरी जिम्मेदारी से काम करने की आवश्यकता है। अभी तक किसान व सरकार अपने-अपने फैसलों पर अटल हैं। किसानों द्वारा पहले भी भारत बंद के फैसले लिए जा चुके हैं। किसानों के आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि सभी आंदोलन के प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे हैं। यहां जरूरत इस बात की है कि किसान व सरकार समस्या के समाधान के लिए बातचीत का कोई रास्ता निकालें। हैरानी की बात है कि किसान नेता भी कह रहे हैं कि वे बातचीत के लिए तैयार हैं और सरकार भी बातचीत करने को तैयार है।

फिर भी दोनों के बीच बातचीत दोबारा शुरू नहीं हो रही है। किसान अपने घरों से सैकड़ों मील दूर काम-धंधे छोड़कर दिल्ली में धरने लगाकर बैठे हैं। दूसरी तरफ परिवहन सेवाएं बंद होने से देश का भारी आर्थिक नुक्सान हो रहा है। यह तर्क सही है कि देश में और विशेष तौर पर लोकतांत्रिक प्रणाली में आंदोलन लंबे समय तक नहीं चलने चाहिएं और समस्या का समाधान जल्द निकलना चाहिए। किसानों ने भारत बंद सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक रखा। इसके बावजूद सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

 

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।