महिला खिलाड़ियों ने बढ़ाया देश का मान

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फिनलैंड के टैम्पेयर शहर में 18 साल की हिमा दास ने इतिहास रचते हुए आईएएएफ विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में पहला स्थान प्राप्त किया। हिमा विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की ट्रैक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं। असम के नौगांव जिले की रहने वाली हिमा दास की इस अंतर्राष्ट्रीय कामयाबी के बाद फिनलैंड से लेकर पूरे हिंदुस्तान तक चर्चा है।हिमा को मिली इस कामयाबी के बाद पूरा देश उन्हें बधाइयां दे रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने उन्हें इस ऐतिहासिक कामयाबी के लिए ट्वीट कर बधाई दी है। हिमा ने भी सभी का धन्यवाद दिया है कि और कहा है कि वे देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर बेहद खुश हैं, वे आगे भी और अधिक मेडल जीतने की कोशिश करेंगी।

गत अप्रैल में गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में हिमा दास छठे स्थान पर रही थीं। इसके अलावा हाल ही में गुवाहाटी में हुई अंतरराज्यीय चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। विश्व स्तर पर ट्रैक स्पर्धा में स्वर्णिम इतिहास रचने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। हिमा को फुटबॉल खेलने का शौक था। फुटबॉल में खूब दौड़ना पड़ता था। इसी वजह से हिमा का स्टैमिना अच्छा बनता रहा, जिस वजह से वह ट्रैक पर भी बेहतर करने में कामयाब रहीं। हिमा 16 सदस्यों वाले एक संयुक्त परिवार से हैं। उनके पिता किसान हैं, खेती-बाड़ी करते हैं, जबकि मां घर संभालती हैं। कुछ माह पूर्व आॅस्ट्रेलिया में संपन्न हुए 21वें कॉमनवेल्थ खेलों में 26 स्वर्ण सहित 66 पदकों के साथ भारत पदक तालिका में तीसरे स्थान पर रहा था। इस बार महिला खिलाड़ियों ने कॉमनवेल्थ में अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए, कुल 66 पदकों में से 31 पदक हासिल किये।

यह कुल पदकों का 47 प्रतिशत है। खेल विशेषज्ञों का मानना है कि खेलों में महिला खिलाड़ियों द्वारा पदक हासिल करना, पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले ज्यादा अहम है। हमारे देश में सरकारी उपेक्षा तो एक ऐसी समस्या है जिसका सामना तो सभी खिलाड़ियों को करना ही पड़ता है। लेकिन लड़कियों के सामने इससे अलग भी और कई तरह की चुनौतियां होती हैं।पिछले वर्षों में भारतीय खेल जगत में महिला खिलाड़ियों की एक नई खेप सामने आई है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी चमक बिखेरी है। गोल्ड कोस्ट के कॉमनवेल्थ खेलों में भाग लेने गए भारतीय दल में शामिल युवा महिला खिलाडियों का दबदबा रहा और इन्होंने अपना पूरा दमखम दिखाया। महिला स्वर्ण विजेताओं में बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल, मुक्केबाका एम सी मैरीकॉम, निशानेबाज मनु भाकर, हीना सिद्धू, तेजस्विनी सावंत और श्रेयसी सिंह, टेबल टेनिस खिलाड़ी मणिका बत्रा और महिला टीम, भारोत्तोलक मीराबाई चानू, संजीता चानू और पूनम यादव तथा पहलवान विनेश फोगाट शामिल थी।

शूटिंग में ही स्वर्ण पदक पर निशाना लगाने वाली मनु भाकर केवल 16 साल की हैं। हाल ही में चेक रिपब्लिक की पिल्सन सिटी मे सम्पन्न हुयी वर्ल्ड कप मीटिंग आॅफ शूटिंग होप्स गेम्स में मनु भाकर ने प्रतिद्वंदी खिलाड़ियों को पछाड़ते हुए पहले स्थान पर रह कर स्वर्ण पदक जीता है। मनु ने कुछ दिनो पूर्व जर्मनी में आयोजित जूनियर शूटिंग वर्ल्ड कप चैंपियनशिप में भी पदक हासिल किया था। मनु भाकर ने एक साल के अंदर विश्व स्तर पर यह 9वां पदक हासिल किया था। इंटरनेशनल शूटिंग में अपना लोहा मनवा चुकीं मनु हरियाणा के झज्जर जिले के गौरैया गांव के यूनिवर्सल सीनियर सेकंडरी स्कूल में 11वीं क्लास की स्टूडेंट हैं।कॉमनवेल्थ खेलों में 22 साल की मणिका बत्रा ने टेबल टेनिस के अलग-अलग इवेंट में चार पदक जीतकर इतिहास रचा। कॉमनवेल्थ खेलों में ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला टेबल टेनिस खिलाड़ी बनीं। मणिका ने टेबल टेनिस के महिला सिंगल्स में तो गोल्ड जीता ही, महिलाओं की टीम इवेंट में भी गोल्ड, महिला डबल्स मुकाबले में सिल्वर और मिक्स्ड डबल्स में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश को गौरवान्वित किया।

इसी प्रकार मीराबाई चानू, संजीता चानू, हीना सिद्धू, पूनम यादव, श्रेयसी सिंह, विनेश फोगाट तेजस्विनी सावंत आदि ने अपने शानदार खेल से भारत की झोली पदकों से भरकर आने वाले समय में खेल की दुनिया में स्त्रीशक्ति के हावी रहने का अहसास करा दिया है। युवा शक्ति के शानदार प्रदर्शन के साथ ही अनुभवी मैरी कॉम और साइना नेहवाल ने भी स्वर्ण पदक जीतकर ये दर्शा दिया कि अनुभव की भी अहमियत कम नहीं होती। भारतीय दल को जिन खेलों में उम्मीद थी, करीब—करीब सभी में अच्छा प्रदर्शन रहा।भारोत्तोलन खिलाड़ी संजीत चानू ने ग्लासगो में हुए 2014 राष्ट्रमण्डल खेलों में भारोत्तोलन स्पर्धा के 48 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उन्होंने आॅस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित 2018 राष्ट्रमण्डल खेलों में महिला 53 किग्रा श्रेणी में स्वर्ण जीतकर लगातार दूसरा स्वर्ण जीता।

गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में बनारस की पूनम यादव ने 69 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीता। महिलाओं की 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन स्पर्धा में कोल्हापुर की तेजस्विनी सावंत ने रेकॉर्ड बनाते हुए गोल्ड मेडल जीता। उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स का रेकॉर्ड बनाया। कॉमनवेल्थ गेम्स में पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी श्रेयसी ने महिला डबल ट्रैप स्पर्धा में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया। श्रेयसी सिंह के पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह भारतीय राइफल संघ के अध्यक्ष भी रहे थे।भारतीय महिला क्रिकेट टीम के खिलाड़ी भी अपना जलवा दिखा रही हैं। वनडे मैचों की कप्तान मिताली राज ने वर्ल्ड क्रिकेट में सबसे ज्यादा वनडे इंटरनेशनल मैच खेलने वाली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। मिताली महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली खिलाड़ी भी हैं। मिताली ने अब तक कुल 192 मैच में 6200 से ज्यादा रन बना चुकी हैं। भारत की तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी ने अपने वन डे इंटरनेशनल करियर के वन डे मैच में 200 विकेट पूरे कर लिए। ऐसा करने वाली वो दुनिया की पहली महिला क्रिकेटर हैं। महिला क्रिकेट टीम की स्टार प्लेयर स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर को बीसीसीआई का बेस्ट क्रिकेटर अवॉर्ड मिला है।

भारत की दिव्यांग खिलाड़ी दीपा मलिक ने 2016 में रियो में सम्पन्न हुयी पैराओलम्पिक में गोला फेंक एफ-53 प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर पैराओलम्पिक में पदक हासिल करने वाले देश की पहली महिला खिलाड़ी बनी थी। दीपा के कमर से नीचे का हिस्सा लकवा ग्रस्त है। वह दो बच्चों की मां दीपा का 19 साल पहले रीढ़ में ट्यूमर होने के कारण चलना असंभव हो गया था। उस दौरान दीपा के 31 आॅपरेशन किए गये जिसके लिए उनकी कमर और पांव के बीच 183 टांके लगे थे।तमाम दिक्कतो के बावजूद महिलाओं ने पुरुषों के साथ मिलकर कॉमनवेल्थ खेलों में जो बड़ी उपलब्धि हासिल की है, उसने खेलों में और ज्यादा संख्या में लड़कियों के आने के लिये रास्ता तैयार कर दिया है। ये महिला खिलाड़ी बहुत सारी लड़कियों के लिये रोल मॉडल बनेंगी। महिला खिलाड़ियों की यह सफलता निश्चित तौर पर समाज की सोच भी बदलने में सहयोग करेगी। जिसका सकारात्मक असर आने वाली नई महिला खिलाड़ियों पर पड़ेगा।

विगत कुछ वर्षों में अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिला खिलाड़ी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। इससे स्पष्ट है कि हमारे समाज में खेल को लेकर धारणा बदल रही है। सरकार भी जागरूक हुई है। मगर अभी भी खेलों को प्रोत्साहन देने के प्रयासों में और गति लाने की जरूरत है। सरकार को पूरे देश के गांवों तक खेलों के लिए जरूरी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी। देश के विभिन्न क्षेत्रों में और अधिक स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, स्पोर्ट्स सेन्टर स्थपित करने होंगें। खिलाड़ियों को देश में ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ ही विदेशी धरती पर अभ्यास के भरपूर मौके देने होंगे तभी उनका प्रदर्शन निखरेगा और वे एशियाड व ओलम्पिक जैसी शीर्ष खेल प्रतियोगिता में भी देश के लिए पदक जीतकर ला सकेंगे।

रमेश सर्राफ धमोरा

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