खाने की बर्बादी रोकनी होगी

Food wastage has to be stopped

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में 931 मिलियन टन यानी की 93 करोड़ 10 लाख टन खाना बर्बाद हुआ है। जो कुल उपलब्ध भोजन का 17 फीसदी है। रिपोर्ट के मुताबिक जो खाना बर्बाद हुआ है वह घरों, खुदरा दुकानदारों, रेस्त्रांओं समेत खाने की अन्य जगहों से मिला है।

एक अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के मुताबिक बर्बाद हुए खाने का वजन भारत में साल 2019-20 में अनाज, तिलहन, गन्ना और बागबानी के कुल उत्पादन के बराबर है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा खाना घरों में बर्बाद होता है, उसके बाद होटल और रेस्त्राओं में देखा गया है। वैश्विक स्तर पर सालाना प्रति व्यक्ति 121 किलो खाना बर्बाद हो जाता है। जबकि घरों में 74 किलो होता है।  रिपोर्ट में दक्षिण एशियाई देशों का डेटा साझा किया है।

बता दें कि भारत में घरों में बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थ की मात्रा प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति 50 किलो होने का अनुमान है। हालांकि, इस सूची में अफगानिस्तान 82 किलो के साथ टॉप पर है। जबकि नेपाल 79 किलो के साथ दूसरे स्थान पर है। वहीं, श्रीलंका में 76 किलो, पाकिस्तान में 74 किलो, बांग्लादेश में 65 किलो खाने की बर्बादी हो रही है। इस सारे परिदृश्य में भारत के भुखमरी और गरीबी सूचकांक के आंकड़ों की बात ना भी करें तो गरीबी और भुखमरी को समझा जा सकता है। किसी भी देश विशेष रूप से लोकतंत्र में सरकारों की जिम्मेदारी लोक कल्याण है। इसके बावजूद यदि लोग भूख और गरीबी की मार झेल रहे हैं तो सरकारों की नीतियों व नियत पर सवाल उठने तो लाजिम हैं।

गरीबी और भुखमरी से निपटने के लिए भारत में अनेक प्रकार की योजनाएं बनाई गई हैं। आंगनवाड़ियों में नन्हें बच्चों और गर्भवती महिलाओं के पोषण के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करने की योजना है। स्कूलों में पहली से आठवीं तक पढ़ रहे बच्चों के लिए मिड-डे-मील योजना चलाई गई है। कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के समय में जब लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे, ऐसे में अध्यापकों व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने बच्चों के घरों में जाकर खाद्य सामग्री व दूध के पैकेट और कोरोना योद्धा की भूमिका का निर्वहन किया।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लोगों को अनाज, दालें व अन्य खाद्य सामग्री प्रदान की जाती है। लेकिन यह भी सच है कि लॉकडाउन में रोजगार छिन जाने और खाद्य सामग्री खत्म हो जाने के बाद अपने ही देश में प्रवासी बने कितने ही लोगों को दरबदर होना पड़ा।  किसानों-मजदूरों की कड़ी मेहनत से उगाई गई फसलों के कारण अनाज से देश के भंडार भरे हुए हैं। ऐसी प्रचुरता के बीच में अभाव और ज्यादा परेशान करने वाला है। समस्या सिर्फ खाना फेंकने की ही नहीं है, शादियों के भोजन में कैलोरी भी जरूरत से ज्यादा होती है।

लैंगिक व जातीय भेदभाव भी भूख का बड़ा कारण है। सम्पन्न परिवारों की महिलाएं भी खून की कमी की शिकार देखी जाती हैं। लड़कियों को दूध पीने से इसलिए मना किया जाता है, क्योंकि वे लड़कियां हैं। चाहे जो भी हर हाथ को काम और हर व्यक्ति को पर्याप्त पौष्टिक भोजन अवश्य मिलना चाहिए। अगर इन हालातों में सरकार को 2030 तक भारत को भूखमुक्त करने का सपना साकार करना है तो दीर्घकालीन योजनाओं को और भी सख्ती से लागू करना होगा व क्रियान्वयन के लिए एक पारदर्शी मशीनरी बनाने पर ध्यान देना होगा। गरीबों की सब्सिडी यथावत रखते हुए किसानों के लिए सस्ते और टिकाऊ संसाधन विकसित करने होंगे। साथ ही सरकार को भोजन की बर्बादी को अपराध घोषित कर जुमार्ना लगाना शुरू करना होगा एवं अनाज वितरण प्रणाली व प्रबंधन को लेकर सावधानी बरतनी होगी।

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