देश की स्थिति अच्छी नहीं है। पिछले बुधवार को देश के तीन शहरों से मानव अधिकार (Democracy Affected) कार्यकतार्ओं और वकीलों की गिरफ्तारी से एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या भारत अपने जीवन्त लोकतंत्र के बारे में शेखी बघार सकता है। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता में उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ भी इस बारे में चिन्तित है कि केन्द्र पुलिसकर्मियों द्वारा पूणे, हैदराबाद और दिल्ली में नौ सामाजिक कार्यकतार्ओं के घरों पर छापा डालने के माध्यम से लोगों के मन में भय पैदा कर रहा है और इसका कारण यह बताया कि इन लोगों के माओवादी संगठनों से संपर्क हैं और उन्होंने 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव हिंसा से पूर्व पूणे में एल्गार परिषद के साथ बैठक की। पुलिस द्वारा इन लोगों के घरों पर आठ माह बाद छापा मारने से सरकार द्वारा इस संबंध में षडयंत्र रचने की बू आती है। क्या सरकार घबराई हुई है?
आम लोग इसके कारणों के बारे में कई अटकलें लगाएंगे किंतु उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में सही टिप्पणी की। इनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने के बाद न्यायालय ने टिप्पणी की यह चिंताजनक बात है कि सरकार विरोध को दबा रही है। विरोध लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है और यदि इसकी अनुमति नहीं दी गई तो प्रेशर कुकर फट जाएगा। इस मामले में सरकार चाहे कुछ कहे किंतु वह असहिष्णु नहीं बन सकती है। न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद पुलिस इन लोगों को अगली सुनवाई अर्थात 6 सितंबर तक नजरबंद रखेगी। यह इन लोगों के लिए राहत की बात है किंतु लोगों में इन गिरफ्तारियों को लेकर आक्रोश बढ़ रहा है क्योंकि यह लोगों के भाषण और अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर हमला है। विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी मोदी के इस आपातकाल के बारे में प्रश्न उठाए जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में विपक्षी एकता में दरार | Democracy Affected
उत्तर प्रदेश में विपक्ष एकजुट होने का प्रयास कर रहा था किंतु उन्हें मोदी विरोधी महत्वाकांक्षी गठबंधन को बनाने से पूर्व अपने घर को दुरूस्त करना पड़ेगा। समाजवादी पार्टी में शांति भंग हो गयी है। बुधवार को पार्टी के बागी नेता शिवपाल सिंह यादव ने 2019 के चुनावों का बिगुल बजा दिया है और उन्होंने समाजवादी सेकुलर फ्रंट की स्थापना की है। उनका दावा है कि उन्हें अपने बडेÞ भाई मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद प्राप्त है और उन्होंने अपनी पार्टी के सभी नाराज और उपेक्षित सदस्यों से कहा है कि वे उनके फं्रट में शामिल हों। सपा अध्यक्ष और उनके भतीजे अखिलेश यादव को इस षडयंत्र की बू आ रही है। उनका कहना है कि चुनाव नजदीक आते ही ऐसे कई घटनाक्रम देखने को मिलेंगे। उन्हांने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह पार्टयों को तोड़ने और नेताओं को अपने पक्ष में करने के लिए षडयंत्र कर रही है। उन्होंने कहा है कि पार्टी भाजपा को चुनौती देगी जैसा कि उसने हाल के उपचुनावों में किया था। इस तथ्य से इंकार नहंी किया जा सकता है कि सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा की नींद हराम हुई थी। किंतु अब इस झटके से अखिलेश और उनके अन्य सहयोगियों को महागठबंधन के बारे में सजग रहना होगा।
बंगाल कभी सबक नहीं लेता | Democracy Affected
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों में हिंसा और विवाद थमा भी नहीं था कि मंगलवार को उत्तरी 24 परगना जिले के आमदंगा के तीन क्षेत्रो में पंचायत बोर्डों के गठन को लेकर तृणमूल कांग्रेस और माकपा के कार्यकतार्ओं के बीच झड़प में तीन लोग मारे गए और 15 लोग घायल हुए। इस झड़प में देशी बम फेंके गए, गोलियां चलायी गयी, पार्टी कार्यालयों को जलाया गया, वाहनों को जलाया गया तथा लोगों के घरों को लूटा गया और उसके बाद दोनों दलो ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। तूणमूल कांग्रेस ने माकपा पर आरोप लगाया कि उसने उसके कार्यकतार्ओं को भड़काया तथा भाजपा की सहायता से हिंसा की रूपरेखा तैयार की। दूसरी ओर माकपा ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में लोकतंत्र की हत्या की है। इस हिंसा से इन तीन क्षेत्रों में पंचायत बोर्डों के गठन को स्थगित कर दिया गया है।
विकास कार्यों पर ध्यान नहीं | Democracy Affected
अनेक राज्यों में धन का उपयोग नहीं किया जा रहा है। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार अनेक राज्यों में संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के धन का उपयोग नहीं किया गया है। इस सूची में शीर्ष स्थान पर उत्तर प्रदेश है उसके बाद मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान का स्थान है। इस योजना के अंतर्गत 14वीं लोक सभा अर्थात 2004 से 12 हजार करोड़ रूपए का उपयोग नहीं किया गया है और इसका कारण यह बताया गया कि जिला एजेंसियां और प्राधिकारी इस कार्य में सहयोग नहीं कर रही हैं। केन्द्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है हालांकि उत्तर प्रदेश ने वायदा किया था कि इस राशि का उपयोग करने के लिए सांसदों के साथ समन्वय किया जाएगा। बिहार इस राशि का उपयोग न होेने के कारणों का अध्ययन कर रहा है और उसका कहना है कि अनेक परियोजनाएं भूमि के मुद्दे पर कानूनी अडचनों के कारण अटकी पड़ी हैं। महाराष्ट्र ने इसका कारण सांसदों को बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कार्यों का सुझाव नहीं दिया। उपयोगिता प्रमाण पत्र आदि के मामले में जिला प्राधिकारी विधायकों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वे उनके प्रति जवाबदेह हैं। कारण कुछ भी हो इस समस्या का निराकरण किया जाना चाहिए। सांसदों को भी अपने निजी खातों से परे जाकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनता के लिए दिए गए धन का उपयोग हो।
ओडिशा के राज्यपाल की फिजूलखर्ची | Democracy Affected
ओडिशा का राजभवन सुर्खियों में है। राज्यपाल गणेशीलाल के यात्रा व्यय को देखने से लगता है कि उनके पूर्ववर्ती मितव्ययी थे। इस वर्ष जून में उनके हरियाणा के दौरे पर 46 लाख रूपए खर्च हुए जबकि उनके पूर्ववर्ती जमीर के कार्यकाल में कुल यात्रा व्यय 32 लाख रूपए था। गणेशी लाल का यात्रा व्यय राज्यपाल के लिए प्रति वर्ष स्वीकृत 11 लाख रूपए के वार्षिक बजट से चार गुणा से अधिक है। वस्तुत: राज्यपाल भंडारे ने भी अपने पूरे कार्यकाल के दौरान यात्रा व्यय पर 51.21 लाख रूपए खर्च किए थे। गणेशी लाल मितव्ययता की नहंी सोचते है। इसलिए उन्होंने इस बारे में चार्टर्ड विमान और हेलीकाप्टर की सेवाएं ली। राज्य प्रशासन ने इस बारे मे प्रश्न उठाए थे किंतु फिर वह चुप हो गया। इसके लिए राष्ट्रपति भवन से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है। किंतु इस मामले में भी पटनायक सरकार ने उनकी सहायता की। संवैधानिक प्राधिकारी को इस मामले में सजग रहना चाहिए।
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