अंधविश्वास का कहर

Superstition

दिल्ली की लोधी कॉलोनी में दो व्यक्तियों द्वारा एक छह माह के बच्चे की हत्या करने की दुखद घटना घटित हुई है। आरोपियों ने पुलिस के सामने स्वीकार किया है कि उन्होंने बलि देने के लिए बच्चे की हत्या की है। दिल्ली जैसे महानगर व देश की राजधानी में ऐसा होना बेहद चिंताजनक है। इस घटना के दो पहलू हैं। एक तो यह है कि बच्चों पर हिंसा की घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही। बच्चे निर्बल व मासूम होते हैं, जो हत्या से बचने में नाकाम रहते हैं व अपराधी उन्हें आसानी से निशाना बना लेते हैं। रोजाना ही कहीं न कहीं बच्चों की हत्या करने की खबरें चर्चा में आती हैं। कहीं फिरौती के लिए, कहीं पड़ोसी से झगड़े का बदला लेने के लिए बच्चों को अगवा कर मौत के घाट उतार दिया जाता है।

प्रत्येक वर्ष बच्चों के गुम होने के पीछे भी अधिकतर मामलों को अपराधियों द्वारा ही अंजाम दिया जाता है। विगत वर्ष दस हजार से ज्यादा बच्चे गुम होने की चर्चा है। बच्चों के साथ हैवानियत इस कद्र हो रही है कि अपराधियों के दिलों में कानून का जैसे भय ही न हो। यदि दोषियों को सजा के अंजाम तक पहुंचाया जाए तो कानून का कोई डर-भय पैदा हो सकता है। वास्तव में गरीब व साधारण परिवार के बच्चे गुम होने या हत्या के बाद बहुत कम कार्रवाई होती है और दोषी बच निकलते हैं। जिस कारण अपराधी ऐसे गुनाहों को आगे भी अंजाम देते रहते हैं। गरीब के पास कहां वक्त है कि अपनी सुनवाई करवाने के लिए धरने देता रहे।

धरनों के बिना सुनवाई भी नहीं होती। लोधी कॉलोनी की घटना का यह पहलू भी चिंताजनक है कि 21वीं सदी में भी बलि जैसी कुप्रथाएं व अंधविश्वास का कुछ हिस्सा आज भी बलि जैसी कुरीतियों में विश्वास रखता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि न तो आधुनिक शिक्षा का प्रसार पूरी तरह से हो सका व न ही आधुनिक शिक्षा नागरिकों का बहुपक्षीय विकास कर सकी। आधुनिक शिक्षा समाज-सुधार के समर्थ नहीं हुई, जिस कारण शिक्षित लोग भी जड़-पूजा व धर्म के नाम पर कुरीतियों में उलझे हुए हैं। हालांकि वास्तविक्ता यह है कि सभी धर्म अंधविश्वास का खंडन करते हैं। शिक्षा का प्रसार हो रहा है लेकिन गति बहुत धीमी व प्रभावशाली भी नहीं है। समाज को बुराइयों से मुक्त करने के लिए जहां कानून व्यवस्था को यकीनी बनाने की आवश्यकता है वहीं शिक्षा के माध्यम से ज्ञान-विज्ञान का प्रसार भी किया जाए।

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