पावन स्मृति पर विशेष : इन्सानियत के सच्चे रहबर

Holy Tribute Special True Spiritual Master of Humanity
संत इन्सानियत का खजाना होते हैं। उनका पूरा जीवन इन्सानियत को मानवता से जोड़ने के लिए समर्पित होता है। सच्चे संत इन्सान को सामाजिक व आत्मिक सुख प्रदान करने के साथ-साथ मोक्ष मुक्ति के काबिल बनाते हैं। डेरा सच्चा सौदा के संस्थापक पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज के मानवता पर किए गए परोपकारों का वर्णन करने के लिए हर शब्द छोटा पड़ जाता है। परम पूजनीय परमपिता बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज गाँव कोटड़ा तहसील गंधेय रियासत कुलैत (बिलोचिस्तान) के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी का शुभ नाम श्री पिल्ला मल जी व पूज्य माता जी का शुभ नाम तुलसां बाई जी था।
पूज्य पिता श्री पिल्लामल जी के घर चार लड़कियां ही थीं, पुत्र प्राप्ति की उन्हें बड़ी अभिलाषा थी। इसलिए पिता श्री पिल्लामल जी ने अनेक साधु-संतोें के समक्ष पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। एक बार पूज्य माता जी की भेंट परमपिता परमात्मा के एक सच्चे साधु, फकीर से हुई। पूज्य माता जी की पुत्र प्राप्ति की इच्छा को देखते हुए उस फकीर ने कहा कि ‘पुत्र तो आपके यहां जन्म ले लेगा, लेकिन वह आपके काम नहीं आएगा, अगर यह शर्त मंजूर है तो देख लो।’ पूज्य माता जी ने कहा कि हमें यह मंजूर है। तो इस तरह रूहानी संतों, पीर-फकीरों की दुआ से पिता श्री पिल्लामल जी के घर पूज्य माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज ने संवत विक्रमी 1948 (सन् 1891) में अवतार धारण किया। पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज का पहला (बचपन का) नाम पूज्य श्री खेमामल जी था। (हजूर बाबा सावण सिंह जी ने अपनी शरण में आने के बाद आपजी का नाम बदलकर ‘शाह मस्ताना जी महाराज’ रख दिया)। आप जी के पूज्य पिता जी गांव में ही हलवाई की दुकान किया करते थे। जिस समय पूज्य पिताजी दुकान पर नहीं होते तो आपजी दुकान पर रखी सारी मिठाई साधु-फकीरों को बांट दिया करते। इस तरह आप जी को बचपन से ही मालिक की भक्ति का बहुत शौक था। पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी तो ‘सच’ यानि परमात्मा की ही खोज में लगे हुए थे।
इस प्रकार आप ने अनेक साधुओं से भेंट की, परंतु कहीं से भी आप जी को परमात्मा की प्राप्ति का सही मार्ग नहीं मिल पाया। अंत में आप जी डेरा ब्यास (पंजाब) में आ गए और पूज्य हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम-शब्द की प्राप्ति की। पूज्य बाबा जी ने आप जी की सच्ची तड़प व आप जी में मालिक के सच्चे प्यार को देखकर बेशुमार बख्शिशें की। गुरू यश करने के लिए पहले आप जी की ड्यूटी बिलोचिस्तान में और बाद में पश्चिमी पंजाब के गोजरा, मिंटगुमरी, मुलतान व सिन्ध प्रांत में लगा दी गई। आप जी ने बिलोचिस्तान, सिंध व पंजाब आदि प्रांतों के अनेक शहरों के अंदर भी अपने सतगुरु की बेअंत महिमा की और वहां से अनेक जीवों को अपने साथ ब्यास लाकर पूज्य बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम-शब्द दिलाया। आखिर में आप अपना घर-बार आदि छोड़कर ब्यास आ गए। यहां से पूज्य बाबा सावण सिंह जी महाराज ने आप जी को अपनी पूरी उच्च रूहानी ताकत जीवों को नाम-दान प्रदान कर भव से पार लंघाने की जिम्मेवारी देकर अपनी सभी इलाही बख्शिशों से नवाज कर आप जी को सरसा में भेज दिया कि ‘जा मस्ताना शाह! तुम्हें बागड़ का बादशाह बनाया और सत्संग लगाकर दुनिया को मालिक का नाम जपा, हम हर समय तुम्हारे साथ हैं।’ इस पर आपजी ने अपने मुर्शिद-ए-कामिल से ‘‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’’ नारा मंजूर करवाया तथा और भी अनेक बख्शिशें हासिल की।
पहले तो कुछ समय आपजी सरसा शहर में रहे, फिर आपजी ने अपने मुर्शिद-ए-कामिल के वचनानुसार सन् 1948 में शहर से बाहर भादरा मार्ग जिसे अब शाह सतनाम जी मार्ग पुकारा जाता है पर ‘डेरा सच्चा सौदा’ स्थापित किया। आपजी ने 12 वर्ष तक खूब सोना, चांदी, नोट, कपड़े, कम्बल आदि बांटकर हजारों लोगों को बिना किसी पाखंड व बिना किसी प्रकार के दान-चढ़ावे आदि के मालिक का सच्चा नाम जपाया। आपजी ने धर्म-जाति, अमीर-गरीब आदि के भेदभाव को मिटाकर सबको एक जगह पर बिठाया तथा उनमें ईर्ष्या, नफरत, दुई-द्वैष को दूर कर सबको प्रेम का पाठ पढ़ाया व अंदर वाले जिंदा राम, ओम, हरि, अल्लाह, राम, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब का सच्चा नाम-दान दे कर उन्हें जन्म मरण के चक्कर से मुक्त कराया। अपना नूरी चोला बदलने से दो-अढ़ाई वर्ष पहले ही पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने कठीन परीक्षा के बाद परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को गुरगद्दी की बख्शिश की। आप जी ने पूजनीय परमपिता जी की बहुत ही कठिन परीक्षा ली तथा अपनी दया-मेहर, रहमत द्वारा हर तरह से भरपूर करके दिनांक 28 फरवरी 1960 को नोटों के हार पहनाकर तथा जीप में सवार करके मौजूद समस्त साध-संगत सहित पूरे शानो-शौकत से जलूस की शक्ल में सरसा शहर में घुमाया। आपजी ने वचन फरमाया कि स. सतनाम सिंह जी को आज आत्मा से परमात्मा कर दिया है तथा अनामी गुफा में सुशोभित करके फिर से फरमाया कि ‘दुनिया की कोई भी ताकत इन्हें हिला नहीं सकेगी।’ इस तरह साध-संगत की सेवा व सच्चा सौदा दरबार की पूरी जिम्मेवारी पूजनीय परमपिता जी को सौंपकर आप जी स्वंय 18 अप्रैल 1960 को अनामी देश में ज्योति-जोत समा गए।
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