मृत्यु के समय इंसान को कितना कष्ट होता है?

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पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सन् 1960 से 1991 तक बहुत से सत्संग फरमाए और इस बीच सत्संगियों ने समय समय पर पूजनीय परम पिता जी से अनेक प्रश्न पूछे। जो कुछ प्रश्न विभिन्न स्त्रोतों से हमें प्राप्त हुए, उन्हें आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं:-

सवाल: मृत्यु के समय इंसान को कितना कष्ट होता है?

उत्तर: मालिक की भक्ति करने वाली रूह तो मृत्यु के समय शरीर को ऐसे छोड़ देती है जैसे कोई इन्सान अपने शरीर से कपड़ा उतार देता है। लेकिन निगुरे इन्सान को मृत्यु के समय असहनीय पीड़ा होती है। जैसे एक रेशमी तिल्लेदार कपड़े को कांटेदार झाड़ी पर रखकर खींचे तो वह कपड़ा तार-तार हो जाता है, उसी प्रकार शरीर छोड़ते समय उसकी आत्मा तार तार हो जाती है। हिन्दु धर्म के अनुसार यदि हजार बिच्छू एक साथ मिलकर डंक मारें। इसी तरह ही इस्लाम धर्म के अनुसार यदि किसी कांटेदार झाड़ी को इंसान के मुंह में डालकर गुदा के रास्ते खींची जाए तथा सिख धर्म के अनुसार यदि किसी जीवित मनुष्य की सारी हड्डियों का चूरा कर दिया जाए लेकिन उसके प्राण न निकलें, तब इसके जितनी पीड़ा उस जीवात्मा को होगी उतनी ही मृत्यु के समय आत्मा को होती है।

सवाल: जब मनुष्य सामूहिक रूप में किसी संकट में फंस जाता है, तो उसे अपना भला सोचना चाहिए या दूसरे का भी?

उत्तर : इंसान कैसी भी स्थिति में क्यों न फंस जाए लेकिन उसे परमार्थ करना नहीं छोड़ना चाहिए। जो इन्सान परमात्मा की बनाई हुई खलकत से बेगर्ज प्रेम करता है तो परमात्मा भी उससे खुश रहता है तथा उसकी सहायता करता है।

सवाल: नाम देते समय कौन-कौन से तीन परहेज बताए जाते हैं?

उत्तर : डेरा सच्चा सौदा में जब नाम-दान प्राप्त करते हैं तो पहले तीन वचन-तीन वायदे या इकरार अथवा प्रण करवाते हैं:-
1. अंडा-मांस नहीं खाना
2. शराब नहीं पीना
3. पुरूषों ने पर-स्त्री को माता-बहन तथा बेटी समझना है और इसी तरह माता-बहनों ने पर-पुरूष को आयु के अनुसार पिता, भाई व पुत्र समझना है।

सवाल: क्या मालिक की याद में रोने पर ही सतगुरू-मालिक के दर्श-दीदार जल्दी होते हैं?

उत्तर : मुसलमान सूफी फकीरों का फरमान है कि तरी के रास्ते इंसान शीघ्र काबे में पहुुंचता है अर्थात् मालिक-सतगुरू के दर्श-दीदार के लिए दिल में इतनी जबरदस्त तड़प पैदा हो जाए, जितनी कि इन्सान के अंदर अपने बच्चे के लिए उस समय बन जाती है, जब वह मौत से जूझ रहा होता है। अगर उस तड़प की 10 प्रतिशत तड़प भी मालिक के लिए पैदा हो जाए तो मालिक को अंदर से दर्श-दीदार देने की पड़ते हैं।

सवाल: दो प्रेमी आपस में मालिक की चर्चा करें, क्या वह समय सुमिरन में गिना जाता है?

उत्तर : मालिक की चर्चा, नामचर्चा अथवा प्रभु-भक्ति की बात, जिसमें अपना कोई स्वार्थ न हो वह एक तरह का सुमिरन ही है क्योंकि जहां मालिक की चर्चा में इन्सान का दिन गुजरता है, वहीं रात्रि को एकांतवास में जब मालिक की याद (सुमिरन) में बैठता है तो बहुत ही जल्दी ध्यान जमता है और सूरत (रू ह) शरीर के नौ द्वारों में से सिमटकर बहुत जल्दी एकाग्र होकर दसवें द्वार में पहुंचती है, जहां सतगुरू-मालिक के दर्श-दीदार होते हैं।

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