मासूम बच्चों पर अपराध का बढ़ता दायरा

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े के अनुसार देश में बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में 2019 की तुलना में 2020 में चार सौ फीसद की बढ़ोतरी हुई। बच्चों को भगवान का स्वरूप मानने वाले देश में बच्चों पर बढ़ते अपराध गंभीर चिन्ता का विषय है, बच्चों पर अपराध भारत के मौलिक विचारों एवं सांस्कृतिक मूल्यों की भी असफलता है। यह देश के नैतिक विवेक का क्षरण है। बच्चे आमतौर पर सभी समाजों या समुदायों के सबसे ज्यादा संरक्षित और संवेदनशील हिस्से माने जाने के बावजूद उन पर अपराधों का बढ़ता साया देश के अभिन्न सिद्धांतों एवं नयी बन रही समाज-व्यवस्था पर जहां गंभीर सवाल खड़े करता है, वही सरकार की लापरवाही को भी दशार्ता है।

कोरोना महामारी के असर ने हमारी जीवनशैली में व्यापक बदलाव किए हैं, उसमें तकनीक की बड़ी भूमिका रही है। विडंबना यह है कि तकनीक का हर स्तर पर इस्तेमाल बढ़ा, आनलाइन शिक्षा, आनलाइन भुगतान, आनलाइन खरीददारी एवं वर्क फ्रोम हॉम की पांव पसार रही संस्कृति एवं अनिवार्यता ने हर घर एवं व्यक्ति को इंटरनेट का गुलाम बना दिया है, इंटरनेट पर जिस कदर निर्भरता बढ़ी, उसमें साइबर अपराध ने भी अपने पांव फैलाए। क्योंकि इंटरनेट की जरूरत को जिस तरह प्रोत्साहित किया गया, उसी अनुपात में उससे जुड़ी जरूरी समझ, सावधानी और प्रशिक्षण पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। नतीजतन, समाज का जो हिस्सा तकनीकों के उपयोग के दायरे में है, उसे इसके कुछ फायदे जरूर मिल रहे हैं, लेकिन उनमें से एक हिस्सा इंटरनेट पर अपराध करने वालों के निशाने पर भी है।

बच्चे के हाथों में मोबाइल, कंप्यूटर और एवं लेपटॉप थमा दिये गये हैं, यह हमारी विवशता भी है। बच्चों कों इंटरनेट के दायरे में लाने से परेशानी नहीं है, परेशानी है उनके भीतर अपेक्षित जागरूकता और सावधानी का बोध नहीं पनपा पाने की। इंटरनेट पर बच्चों के खिलाफ अपराधों के जो स्वरूप सामने आए हैं, उसमें तकनीक के उचित प्रशिक्षण से लेकर हमारा सामाजिक बर्ताव भी जिम्मेदार है, विशेषत: अभिभावकों की लापरवाही। जिसमें बच्चों पर या तो जरूरत से ज्यादा दबाव डाला जाता है या फिर उनकी गतिविधियों के प्रति उदासीनता होती है।

विडंबना यह भी है कि हमारे समाज एवं पारिवारिक परिवेश में बच्चों की देखभाल और उनका भविष्य संवारने के नाम पर जिस तरह के दबाव बना दिया जाता है, उसमें कई बार बच्चे गैरजरूरी दबाव में आकर अभिभावकों से जरूरी संवाद करना भी अपेक्षित नहीं समझते और वे अपराध के शिकार होते जाते हैं या अपराध की अंधी सुरंगों में धंसते चले जाते हैं। इसका नतीजा इस खतरे के रूप में आता है कि अक्सर वे अवांछित गतिविधियां चलाने वालों के निशाने पर या उसकी जद में आ जाते हैं। नया भारत – सशक्त भारत निर्मित करते हुए समाज के रूपांतरण के साथ बाल अधिकारों के प्रति सम्मान और उनके संरक्षण के लिए एक नूतन दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है। सामाजिक संगठनों के साथ-साथ राजनेताओं को भी जागरूक होना होगा। राजनीति के सभी जिम्मेदार तत्व अपनी पार्टियों के हित-संरक्षण एवं वोटों के स्वार्थ के लिये समय को संघर्ष में ही नहीं बितायें, बल्कि बच्चों के अपराधमुक्त जीवन को सुनिश्चित करने में भी लगाये।

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