मानसून प्रकृति का वरदान या आपदा!

Monsoon, Weather Department, Forecasting, Atmosphere, Punjab

मानसून की शुरूआत से ही इस साल देश के कई हिस्सों में मूसलाधार बारिश, बाढ़, बादल फटने, बिजली गिरने और भू-स्खलन से तबाही का सिलसिला अनवरत जारी है। पहाड़ों पर आसमानी आफत टूट रही है तो देश के कई इलाके बाढ़ के कहर से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। असम के बाद गुजरात तथा महाराष्ट्र भी अब बाढ़ के प्रकोप से त्रस्त हैं, जहां अब तक बाढ़ के शिकार होकर सैंकड़ों लोग मौत के आगोश में समा चुके हैं। देशभर के अनेक इलाकों में नदियां और जलाशय उफान पर हैं। कई इलाके मानसूनी बारिश के लिए अब तक तरस रहे हैं। कमोवेश हर साल मानसून के दौरान विभिन्न राज्यों में अब इसी प्रकार का नजारा देखा जाने लगा है। नि:संदेह यह सब पर्यावरण असंतुलन का ही दुष्परिणाम है, जिसके कारण मानूसन से होती तबाही की तीव्रता साल दर साल बढ़ रही है।

मानसून का मिजाज इस कदर बदल रहा है कि जहां मानसून के दौरान महीने के अधिकांश दिन अब सूखे निकल जाते हैं, वहीं कुछेक दिनों में ही इतनी बारिश हो जाती है कि लोगों की मुसीबतें कई गुना बढ़ जाती हैं। दरअसल वर्षा के पैटर्न में अब ऐसा बदलाव नजर आने लगा है कि बहुत कम समय में ही बहुत ज्यादा पानी बरस रहा है, जो प्राय: भारी तबाही का कारण बनता है। दरअसल हमारी फितरत कुछ ऐसी हो गई है कि हम मानसून का भरपूर आनंद तो लेना चाहते हैं किन्तु इस मौसम में किसी भी छोटी-बड़ी आपदा के उत्पन्न होने की प्रबल आशंकाओं के बावजूद उससे निपटने की तैयारियां ही नहीं करते। दरअसल हमारी व्यवस्था का काला सच यही है कि न कहीं कोई जवाबदेह नजर आता है और न ही कहीं कोई जवाबदेही तय करने वाला तंत्र दिखता है। हर प्राकृतिक आपदा के समक्ष उससे बचाव की हमारी समस्त व्यवस्था ताश के पत्तों की भांति ढह जाती है।

ऐसी आपदाओं से बचाव तो दूर की कौड़ी है, हम तो मानसून में सामान्य वर्षा होने पर भी बारिश के पानी की निकासी के मामले में साल दर साल फेल साबित हो रहे हैं। बारिश के कारण बाढ़, भू-स्खलन जैसी आपदाओं को लेकर हम जी भरकर प्रकृति को तो कोसते हैं किन्तु यह समझने का प्रयास नहीं करते कि मानसून की जो बारिश हमारे लिए प्रकृति का वरदान होनी चाहिए, वही बारिश अब हर साल बड़ी आपदा के रूप में तबाही बनकर क्यों सामने आती है? अति वर्षा और बाढ़ की स्थिति के लिए जलवायु परिवर्तन के अलावा विकास की विभिन्न परियोजनाओं के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई, नदियों में होता अवैध खनन इत्यादि भी प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं, जिससे मानसून प्रभावित होने के साथ-साथ भू-क्षरण और नदियों द्वारा कटाव की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते तबाही के मामले बढ़ने लगे हैं।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।