धार्मिक ग्रंथों का सम्मान जरूरी

कुछ राजनेताओं द्वारा देश के पवित्र धार्मिक ग्रंथों के प्रति आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई हैं। टिप्पणियां करने वालों में एक राज्य का मंत्री भी शामिल हैं। ऐसी टिप्पणियों से न केवल लोगों की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची है बल्कि हमारे देश की विचार शक्ति एवं संस्कृति को लेकर बिना वजह के विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसी बयानबाजी से समाज में टकराव पैदा होता है। वास्तव में धर्म व पवित्र धार्मिक ग्रंथ हमारे देश की संस्कृति का आधार व गौरव हैं। वे हमारी बहुमूल्य विरासत हैं। धार्मिक ग्रंथों व धर्मों की शिक्षा से अनजान होने के कारण व कुछ नेता केवल मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए विवाद खड़े करते हैं। वास्तव में धर्मों को केवल धार्मिक नजरिये से ही समझा जा सकता है।

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इसे केवल वैज्ञानिक फार्मूले की तरह समझना उचित नहीं, हालांकि धर्म अपने आप में महाविज्ञान भी हैं। धर्म का संबंध मनुष्य की मानसिकता से लेकर सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक मामलों तक है। विज्ञान मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति करता है लेकिन धर्म इच्छाओं की सार्थकता तय करता है। फालतू की इच्छाएं मनुष्य के जीवन को नुक्सान पहुंचाती हैं। विज्ञान भौतिक विकास को बढ़ावा देता है। यह विकास अच्छा व बुरा दोनों प्रारुपों में हो सकता है लेकिन धर्म इस विकास का सही मार्गदर्शन करते हैं। धर्म समाज की खुशहाली की बात करते हैं। धर्म सद्भाव, धैर्य रखना सिखाते हैं और विश्व भाईचारा कायम करना का पाठ पढ़ाते हैं।

सभी धार्मिक ग्रंथ भेदभाव नहीं करने की शिक्षा देते हैं। धर्म किसी एक वर्ग, क्षेत्र, भाषा के लोगों की बेहतरी की बात नहीं करते। धर्म में केवल मनुष्य है और फिर मनुष्य को आगे पहचान दे दी गई। पवित्र ग्रंथों का सार तत्व समझ नहीं सकने के कारण अनजान लोग अपने स्वार्थों के लिए गलत बयानबाजी करते हैं। नि:संदेह धर्मों की गलत व्याख्या भी होती रही है लेकिन इससे धर्म गलत नहीं हो सकते। सबसे रोचक बात तो यह है कि हमारे धर्मों का महत्व विदेशों में रहने वाले विद्वान भी समझते हैं, जिनका नजरिया पूरी तरह से वैज्ञानिक है। विज्ञान में प्रसिद्ध विदेशी हमारे धर्मों की प्रशंसा करते हैं व धर्मों को समाज के लिए वरदान बताते हैं, लेकिन हमारे देश में कुछ लोगों की बिना सिर-पैर की बातें ना केवल उनकी अनजानता बल्कि गलत मंशा पर भी सवाल खड़े करती हैं।

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