Manipur Violence: जातीय जंजाल में उलझा मणिपुर

Manipur Violence
जातीय जंजाल में उलझा मणिपुर

Manipur Violence: आपसी वैमनस्य और जातीय हिंसा का जो दृश्य मणिपुर में दिखा है, उसने संपूर्ण मानवता को झकझोर देने का काम किया है। दो महिलाओं की निर्वस्त्र परेड और उनके अंगों के साथ बेशर्मी की हद तक खिलवाड़ ने साफ कर दिया है कि मनुष्य को यदि मनमानी करने की छूट मिलती रही तो उसे असभ्यता की चरम बर्बरता तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी? मनुष्य के अवचेतन में पैठ जमाए बैठी क्रूरता, निर्ममता और हिंसा की सभी सीमाएं लांघकर मानवीय गरिमा को तार-तार कर देंगी। 1979-80 में कश्मीर घाटी में जब हिंदुओं को आतंकवादी-अलगाववादियों ने कश्मीर से बाहर हो जाने की मुनादी पीटी थी, तब महिलाओं के साथ ऐसे ही या इनसे भी बदतर अत्याचार हुए थे।

तब प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मुंह पर ताला पड़ गया था और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला लंदन भाग गए थे। आज देर से ही सही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा है कि हैवानियत की यह घटना अक्षम्य है। घटना पर पीड़ा भी होती है और क्रोध भी आता है। दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। इस घटना के कारण 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ा है। आखिरकार इस मुद्दे पर भी विचार करना जरूरी है कि आजादी के बाद से ही यह भूखंड अस्थिर क्यों है? Manipur Violence

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़ा करने वाली मणिपुर की आग इतनी बेकाबू हो गई है कि वहां की आबादी में अब यह विभाजन करना नामुमकिन है कि कौन फरियादी है और कौन अपराधी ! क्योंकि दोनों पक्ष ही आगजनी और हिंसा में भागीदार हैं और दोनों ही पीड़ित? यह भी कहना मुश्किल है कि प्रशासन और पुलिस निष्पक्ष एवं निर्विवादित है? सच्चाई तो यह है कि पुलिस ने अपने कर्तव्य का पालन भी ठीक से नहीं किया। घटना चार मई 2023 की बताई जा रही है। इसके एक-दो दिन पहले ही मणिपुर में तीन विवादित कानूनों को लेकर मैतेई और नगा-कुकी समुदायों के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ना शुरू हो गई थी। Manipur Violence

शुरुआत में ही एक समुदाय के पुरुषों ने शत्रु समुदाय की स्त्रियों की अस्मिता से घिनौने खेल की शुरुआत कर दी थी। पीड़ित कुकी समुदाय की महिलाओं ने अब कार्रवाई आरंभ होने पर बयान दिया है कि करीब एक हजार हथियारबंद लोग उनके गांव में घूसे चले आए। घरों में आग और कत्ल-ए-आम का तांडव रच दिया। जब ये महिलाएं प्राण और आबरू  बचाने की कोशिश में सुरक्षित जगह तलाश रही थीं, तब पुलिस ने अपने वाहन में इन्हें शरण दे दी। पुलिस जब महिलाओं को थाने ले जाने लगी, तभी भीड़ वाहन के सामने खड़ी हो गई और बैठी महिलाओं को उनके हवाले करने की मांग करने लगी। आफत में पड़ी पुलिस को खुद की जान बचाने की चिंता हो गई और पुलिस ने लाचार महिलाओं को भीड़ के सुपुर्द कर दिया। फिर भीड़ ने जो किया वह वीडियो के जरिए दो माह बाद अब सामने आया है। Manipur Violence

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को इस घटना और ऐसी ही वीभत्स सैकड़ों घटनाओं की जानकारी पहले से ही थी, इसलिए उनसे जब घटना की प्रतिक्रिया ली गई तो उन्होंने सच्चाई उगल भी दी। कहा, ‘ऐसी हजारों घटनाएं घटित हो चुकी हैं। उन सबके बारे में जांच चल रही है। ‘मसलन राजनीति के कुटिल व चतुर खिलाड़ी बीरेन सिंह कतई संवेदनशील नहीं हैं। मुख्यमंत्री का बयान और निर्वस्त्र महिलाओं की सार्वजनिक परेड से जाहिर है कि मणिपुर के दंगाग्रस्त एक बड़े इलाके में कानून व्यवस्था ढाई माह से पूरी तरह ठप है। Manipur Violence

वैसे भी मणिपुर चीन और म्यांमार के सीमाई क्षेत्र से लगा होने के कारण संवेदनशील क्षेत्र है। स्थानीय उपद्रवियों, घुसपैठियों और नशा कारोबारियों की टोह लेने के लिए इस पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र में केंद्रीय व राज्य स्तरीय गुप्तचर संस्थाएं और उनके गुप्तचर बड़ी संख्या में तैनात हैं, आखिर ये क्या कर रहे थे ? इसे राज्य सरकार समेत तमाम शासकीय एजेंसियों की अक्षमता ही कहा जाएगा कि सरेआम घटना भी घट गई और कानों में लाचार स्त्रियों को पुकार भी नहीं गूंजी ?

हालांकि थाउबल जिले में घटी इस घटना की जो अब जानकारियां छनकर सामने आ रही हैं, उससे साफ हुआ है कि 4 मई की इस घटना की रिपोर्ट 13 मई को कांग्पोक्पी जिले के साइकुल थाने में शून्य पर दर्ज कर ली गई थी। बाद में 21 जून को प्राथमिकी साईकुल थाने से थाउबल थाने में दर्ज हुई। लेकिन मुख्य आरोपी हेरादास सिंह व तीन अन्य की गिरफ्तारियां 19 जुलाई को वीडियो वायरल होने के 24 घंटे बाद हुईं। तब तक पुलिस इस मामले को दबाए रखने के लिहाज से हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। Manipur Violence

एक लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में इस तरह की समाज को जलील करने वाली घटना केंद्र व राज्य सरकार के मातहत एजेंसियां महीनों तक छुपाए रखें, तो इसे कानून की असफलता ही माना जाएगा? सड़क से संसद तक हंगामा खड़ा करने वालों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर वे कैसा समाज गढ़ रहे हैं या गढ़ना चाहते हैं? क्योंकि मानवता को कलंकित करने वाली यह इकलौती घटना नहीं है। इसी कालखंड में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में महिलाओं के साथ दुष्कर्म और नृशंस हत्या की घटनाएं सामने आई हैं।

महिलाओं को हिंसा के साधन के रूप में इस्तेमाल करना नामंजूर है। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने भी कह दिया कि आपको ग्राउंड पर जाकर रियलिटी देखनी चाहिए। राज्य में ऐसे हजारों मामले दर्ज हैं। इसीलिए तो इंटरनेट बंद किया है !

सरकार गंभीर है, दोषियों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाया जाएगा।ह्य इस घटना के ट्वीट वीडियो से भी यह पता चलता है कि मुख्यधारा का मीडिया चाहे प्रिंट हो या टीवी समाचार चैनल मणिपुर में हिंसक व स्त्रीजन्य निर्लज्जता की खबरों तक पहुंच ही नहीं पाया। वैसे भी स्वतंत्रता के बाद से पूर्वोत्तर के राज्य शेष भारत से लगभग अलग-थलग रहे हैं, इसलिए वहां न केवल उग्रवाद को पनपने के नए-नए अवसर मिलते रहे, बल्कि बांग्लादेशी मुस्लिम और म्यांमार के रोहिंग्या घुसपैठिए आग में घी डालने का काम करते रहे हैं। Manipur Violence

ईसाई मतांतरण के चलते यहां जनसंख्यात्मक घनत्व का संतुलन बिगड़ जाना भी उपद्रव का एक प्रमुख कारण है। चीनी दखल इस उपद्रव को उकसा कर जीवंत बनाए रखने का काम करता है। चीन और म्यांमार यहां अलगाव वादियों को चारा डालते रहे हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पूर्वोत्तर के सातों राज्यों पर विशेष ध्यान देना शुरू हुआ है। ढ़ांचागत विकास के साथ-साथ आवागमन के साधन बढ़े हैं। पर्यटन के रूप में भी इलाका जाने जाना लगा है। नशे के कारोबार पर लगाम लगी है और आतंकी समूहों को जमींदोज किया है।

मैतेई और कुकी समुदायों के बीच अब यह विरोध वैमनस्यता में बदलकर इतना गहरा हो गया है कि समुदायों से जुड़े आम लोग ही नहीं सरकारी नौकरी-पेशा भी जातिगत समूहों में बंट गए हैं। इनमें प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों से लेकर वे बुद्धिजीवी भी हैं, जो समरसता की थोथी बातें करते रहे हैं। अत: अब मणिपुर को गंभीरता से लेते हुए समस्या का समाधान युद्धस्तर पर निकालने की जरूरत है। Manipur Violence

प्रमोद भार्गव, वरिष्ठ लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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