प्रकृति का कहर और हमारी जिम्मेवारी

Nature

अरब सागर से उठे ताऊते चक्रवाती तूफान से 26 मौतें हो गई और 49 लोग अभी भी लापता हैं। जल सेना की बहादुरी को सलाम है, जिन्होंने 186 लोगों की जानें बचा ली। समय से पूर्व चेतावनी मिलने के कारण भारी जानी नुक्सान से बचाव हो गया, लेकिन बड़े स्तर पर माली नुक्सान होने से जनजीवन प्रभावित हुआ है। यह समस्या केवल भारत के लिए नहीं बल्कि प्रकृति के भयानक रूप का सामना पूरे विश्व को अलग-अलग तूफानों के रूप में करना पड़ रहा है। तकनीकी रूप से विकसित देश अमेरिका भी प्रकृतिक आपदाओं की मार से बच नहीं सके। दरअसल विश्व में विशेष तौर पर विकसित देशों को इस मामले में अपनी जिम्मेदारी निभाने की आवश्यकता है। प्रकृति से छेड़छाड़ व जलवायु में परिवर्तन ही प्राकृतिक आपदाओं की जड़ है। लंबे समय तक अमेरिका जैसे देशों ने इस मामले में दादागिरी से अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय गरीबी, अशिक्षा और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए प्रयास कर रहे देशों को प्रदूषण का कारण बताया है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उस समय हद ही कर दी जब अमेरिका पैरिस समझौते से ही बाहर हो गया। अमेरिका की दादागिरी का भारी विरोध हुआ और वातावरण प्रेमियों ने उसकी आलोचना की। विकासशील देशों का उद्योगों के बिना गुजारा नहीं विकसित देश ज्यादा कमाई के लालच में अनावश्यक उद्योगों को बंद करने को तैयार नहीं। ऐसे में प्रदूषण कम करने के लिए तकनीक पर भारी निवेश भी कोई देश नहीं करना चाहता। विकासशील देश अनुदान की कमी के कारण तकनीक खरीदने में असमर्थ हैं, इसीलिए यह आवश्यक बन गया है कि संयुक्त राष्ट्र जहां विकसित देशों को वातावरण संबंधी जिम्मेवारियां निभाने के कहे वहीं विकासशील देशों को वित्तीय मदद भी उपलब्ध करवाई जाए। जिस प्रकार आपदाएं आ रही हैं इनके मद्देनजर जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए विश्व भर में मुहिम चलानी होगी। धरती दिवस, विश्व जल दिवस, ओजोन दिवस जैसे दिन मनाने का फिर ही फायदा है यदि सब देश ईमानदारी से ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन रोकने के लिए अपनी भूमिका निभाएं।

 

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