सरसा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि पानी का स्रोत संभालना अति जरूरी है। हमने आश्रम में एक डिग्गी बनाई थी बहुत बड़ी, खर्चा नहीं किया था बहुत ज्यादा, नीचे दोमट मिट्टी बिछाई थी, साइडों में दीवार वगैरह की थी और पूरे आश्रम का पानी उस दो या डेढ़ एकड़ की डिग्गी में भर जाया करता था और वहीं से फिल्टरिंग करके, हम लोगों ने एक टंकी बना दी और फव्वारा पद्धति से वो पानी देते थे और वहां जाकर देख लीजिए, यहां भी देख लीजिए, ज्यादातर बाग हम लोगों ने कामयाब कर दिये थे और कर रखें है।
तो इस तरह थोड़ा-थोड़ा पानी बचाया। पुराने समय में क्या था राजस्थान में पानी की बड़ी कमी हुआ करती थी। बुजुर्गवार जब नहाते तो थे तो एक काम नहीं करते थे, नहाते हुए कपड़े भी धो लेते थे, नहा भी लेते थे और नीचे खड्ढा खोदकर, उस खड्ढे में वह मिट्टी होती थी जो दीवारों पर लीपा पोती करते थे। नहा भी लिए और तब ये साबुनें नहीं होती थी पुराने टाइमों में, लस्सी वगैरह से रगड़ लिया या देसी सामान से सिर धो लिया, आजकल भी कई माता-बहनें, भाई ऐसा करते होंगे। तो वो प्राकृतिक चीजें होती थी, उन्हीं का प्रयोग करके, और वो पानी से मिट्टी भीग जाती थी और मिट्टी फिर दीवारों पर लग जाती और दीवारों की उम्र बढ़ जाती। तो एक नहाने के पानी से कितना काम लिया जाता था।
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