निंदा-चुगली और ईर्ष्या, नफरत छोड़ें : Saint Dr. MSG

बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने अपने यूट्यूब चैनल पर हार्ट टू हार्ट एमएसजी-13 में आमजन से ईर्ष्या नफरत, चुगली-निंदा जैसी बुराइयों को छोड़कर राम-नाम जपते हुए अपने जीवन को सुखमय बनाने का आह्वान किया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि ‘‘लकड़ी जल कोयला भई कोयला जल भई राख, ईष्या-नफरत में इन्सान ऐसा जलो, कोयला भयो ना राख’’ आज के समय में ईर्ष्या, नफरत, चुगली, निंदा खूब जोरों पर चल रही है। दुनियावी नशे बहुत बुरे हैं। लेकिन नशा क्यों करता है इन्सान? कुछ देर के लिए उसे उत्तेजना आती है, हालांकि ये नरक का घर है नशे। पर चुगली, निंदा, ईर्ष्या, नफरत ये कौन सा नशा है? इसमें क्या मिल जाता है इन्सान को?

आपजी ने फरमाया कि एक बार हम एक स्कूल में बैठे थे। बातें चलीं तो वो कहने लगे कि गुरु जी हमारी कोई आदत छुड़वा दो, तो हमने उनको बोला, बेटा! चुगली ना किया करो। तो एक बच्चा उठकर कहने लगा, गुरु जी अगर चुगली नहीं करेंगे तो फिर करेंगे क्या? आप भी जरा सोचकर देखिए, अगर चुगली-निंदा आप छोड़ देंगे तो कौन सी बातें हैं, जो आप करते हैं रेगुलर, ध्यान देकर देखिए। दूसरी बात, ईर्ष्या, नफरत। इन्सान दूसरे को सुखी देकर सुखी नहीं होता बल्कि दुखी होता है। दूसरे शब्दों में आज इन्सान ज्यादातर जो दुखी हैं वो अपनी वजह से नहीं बल्कि दूसरों को सुखी देखकर दुखी है। अपने दु:ख की वजह से दु:खी नहीं है बल्कि दूसरों का सुख देखकर दुखी है। इसलिए ईर्ष्या-नफरत ना करो।

किसी का बुरा ना सोचो। किसी का भी बुरा सोचने से इन्सान के अंदर नफरत ही पैदा होती है। इन्सान अंदर जलता रहता है। इन्सान अंदर तड़फता रहता है और उसे अपने अंदर की खुशियां कम हो जाती हैं। इसलिए ईर्ष्या, नफरत कभी ना करें। पर आज के दौर में हर जगह इसी का बोलबाला है। चुगली-निंदा का बोलबाला है। इसे रोका जा सकता है तो सिर्फ और सिर्फ राम के नाम से, प्रभु के नाम से, और कोई तरीका नहीं है, और कोई भी ऐसी चीज नहीं, जिससे आदमी के अंदर की ये बुरी आदत खत्म हो जाए। बस एक ही तरीका है कि अपने अंदर आत्मबल पैदा करो। अगर आपके अन्दर आत्मबल होगा तो आप अपनी इन बुराइयों पर जीत हासिल कर सकते हैं।

बीमारियों और परेशानी को न्यौता देती है चुगली निंदा

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि बहुत बार देखा है कि दूसरों की निंदा करने से, दूसरों की चुगली करने से आपको खुशी मिलती है। लेकिन आप अन्जान हैं, असल में आप दु:ख का कारण बनते जा रहे हैं अपने लिए। ईर्ष्या करने से बहुत सारी बीमारियां भी आपको हो जाती हैं। मैंटली डिस्टर्ब हो जाते हैं आप, दिमाग पर बोझ सा बना रहता है। क्यों? क्योंकि सामने वाला आपकी सोच के अकोर्डिंग (अनुसार) दुखी क्यों नहीं होता? सामने वाला परेशान क्यों नहीं होता? इसलिए ईर्ष्या, नफरत को त्यागिए। जैसे हमने दोहा बोला कि लकड़ी जलकर कोयला बन जाती है और जो कोयला है वो जलकर राख बन जाता है और ईर्ष्या-नफरत में इन्सान ऐसा जलता है, ऐसा जलता है, ना वो कोयला बनता है, ना वो राख बनता है। बल्कि गीली लकड़ी के मानिंद सुलगता रहता है। तो ये बुरी आदतें अगर समाज में से हट जाएं, ये बुरी आदतें अगर समाज से दूर हो जाएं तो हमें लगता है बहुत सारी लड़ाइयां खत्म हो जाएं।

किसी की कही बात पर एकदम से न लें एक्शन

आपजी ने फरमाया कि और एक बात का ध्यान दिया करें, अगर कोई आपको आकर ये कहता है कि फलां आदमी आपको बुरा बोल रहा था। तो एकदम गरम मत होइये। एकदम आप ये मत सोचिये कि भई मैं उससे जाकर बहस करनी है। एक दिन दीजिये अपने आप को, कुछ समय दीजिये अपने आप को। फिर जाकर पता कीजिये कि वाकयी उसने कुछ कहा है या कोई निंदा-चुगली करके आपको लड़ाना चाहता है। कई बार आप वन साइड की सुनकर झट से दूसरे के साथ लड़ना शुरू कर देते हैं। उसमें बहुत बड़ा नुक्सान हो जाता है।

दूसरों के अच्छे गुणों को देखें

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि तो आज का हमारा यही कहना है आप लोगों से कि ईर्ष्या, नफरत, चुगली और निंदा मत किया करें। हमारे धर्मों में साफ लिखा है कि पर निंदा सौ गऊ घात समाना। ये हमारे पवित्र रामायण में शायद दोहा है, कि दूसरों की निंदा करना सौ गऊ के घात करने के समान है। तो इसलिए कभी किसी की निंदा ना गाओ। कभी किसी को बुरा ना कहो। क्योंकि जो आप दूसरों को कहते हैं, दूसरे शब्दों में जो आप दूसरों में देखते हैं, दूसरों के बारे में बोलते हैं वो आपके अंदर आ जाता है और जो आप अपने बारे में बोलते हैं वो चला जाता है।

अगर आप खुद की मान-बड़ाई करते हैं कि मैं ये हूँ, मैं वो हूँ, मैं अच्छा हूँ तो आपके अंदर से वो चीजें धीरे-धीरे जाने लगेंगी। क्या आप किसी को कहते हैं कि मेरे अंदर कमियां हैं? मेरे अंदर ईष्या है, मेरे अंदर नफरत है, कभी नहीं कहते। तो चलो आप अपना नहीं गाता कोई बात नहीं, दूसरों का वो गाएं जो उनमें गुण हैं ताकि वो चीज आपके अंदर आ जाए। क्योंकि दूसरों की चीज आप देखते, गाते हैं वो आपके अंदर आती है और जो खुद की गाते हैं वो चली जाती है। इसलिए वो कहते हैं ना, कहावत है खुद के मुँह मियाँ मिठू बनना तो वो छोड़ दीजिये बल्कि राम का नाम लें। ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब को याद करें, जिससे आत्मबल आएगा और आप इन सब बुराइयों से, इन सब बीमारियों से बच पाएंगे। ईर्ष्या, नफरत, दुई-द्वेष खत्म हो जाएगा, चुगली-निंदा पर कंट्रोल हो जाएगा और आप सुखी जीवन व्यतीत कर पाएंगे।

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