लक्ष्य अनुरूप हो तिलहन उत्पादन

Oilseed

जब तक देश में तिलहन उत्पादन में लक्ष्य के अनुरूप वृद्धि नहीं की जाएगी और तिलहन का लाभकारी मूल्य नहीं मिलेगा, तब तक न तो तिलहन उत्पादक किसानों के चेहरे पर मुस्कुराहट आएगी और न ही खाद्य तेल उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। इन दिनों महंगे खाद्य तेलों ने न केवल गरीब तबके बल्कि मध्यम वर्ग के परिवारों के रसोई बजट को भी बिगाड़ दिया है। देश में खाद्य तेलों के लिए प्रमुख रूप से पाम, सरसों और मूंगफली तेल का उपयोग किया जाता है। यदि हम पिछले एक वर्ष में खाद्य तेलों की खुदरा कीमतों को देखें तो पाते हैं कि पिछले एक वर्ष में सभी तेलों की कीमतों में औसतन करीब साठ फीसद से अधिक की वृद्धि हुई है। सरकार ने खाद्य तेलों की कीमत घटाने के लिए तात्कालिक उपायों के तहत आयातित खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में कमी सहित अन्य सभी करों में रियायतें दी हैं। यही कारण है कि वैश्विक बाजार में पामोलिन और सोयाबीन की कीमतों में भारी वृद्धि की तुलना में भारत में इनकी कीमतों में कम वृद्धि दर्ज की गई।

खाद्य तेलों की बढ़ती हुई कीमतें और अपर्याप्त तिलहन उत्पादन देश की पीड़ादायक आर्थिक चुनौती के रूप में उभर कर आई है। हालांकि इस वक्त भारत में अनाज भंडार भरे हुए हैं। देश गेहूं, चावल और चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भर है और इनका निर्यात भी बढ़ रहा है। लेकिन तिलहन के मामले में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने लायक उत्पादन भी नहीं कर पा रहे हैं। देश में पिछले तीन दशक से खाद्य तेलों की कमी पड़ रही है। इसे दूर करने के लिए घरेलू तिलहन पैदावार बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए गए। हालांकि तिलहन पैदावार बढ़ाने में पीली क्रांति ने अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई। हरित क्रांति के तहत जिस तरह से धान-गेहूं की बीजों पर काम हुआ, वैसा काम तिलहन के क्षेत्र में कम हुआ। परिणाम स्वरूप देश तिलहन पैदावार में पिछड़ता गया। इसका नतीजा यह हुआ कि देश में आवश्यकता के अनुरूप तिलहन पैदावार नहीं बढ़ने से खाद्य तेलों के उत्पादन पर असर पड़ा। वर्ष 1990 के आसपास देश खाद्य तेलों के मामले में लगभग आत्मनिर्भर था। फिर खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ती गई और इस समय यह चिंताजनक स्तर पर है।

इस समय भारत अपनी जरूरत का करीब साठ फीसद खाद्य तेलों का आयात करता है। परिणामस्वरूप खाद्य तेल का अंतरराष्ट्रीय बाजार देश में खाद्य तेल के दाम को प्रभावित करता है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि अब खाद्य तेल मिशन के तहत तिलहन उत्पादन में इजाफा करने के लिए उत्पादकों को जरूरी कच्चा माल, तकनीक और जानकारी सरलतापूर्वक उपलब्ध कराई जाएगी। इसी खरीफ सत्र में किसानों को मूंगफली और सोयाबीन समेत विभिन्न तिलहनी फसलों की अधिक पैदावार वाले और बीमारी व कीटाणुओं से बचाव की क्षमता रखने वाले बीजों के किट मुहैया कराएं जाएंगे। तिलहन फसलों की जैविक एवं अजैविक किस्मों के विकास और उपज में वृद्धि के लिए तिलहन फसलों में सार्वजनिक अनुसंधान खर्च बढ़ाने की जरूरत है। तिलहन फसलों के लिए महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्रों में उर्वरक, कीटनाशक, ऋण सुविधा, फसल बीमा और विस्तार सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी होगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपायों को अपनाया जाना होगा।

 

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