Youtube चैनल पर Saint Dr. MSG का जलवा, LIVE आकर साध-संगत को दिए दर्शन

saint MSG

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने यूटयूब चैनल पर लाइव आकर साध-संगत को दर्शन दिए। डेरा श्रद्धालुओं ने पूज्य गुरु जी के दर्श-दीदार पाकर खुशी से निहाल हो गई। आपको बता दें कि पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के बरनावा आश्रम में पधारने की खुशखबरी पाकर डेरा सच्चा सौदा की साध संगत झूमती, नाचती-गाती नजर आ रही है। इसके अलावा पूज्य गुरुजी की पावन प्रेरणाओं अनुसार खुशी इजहार करने का अनोखा तरीका अपनाकर पूज्य गुरुजी का सहृदय शुकराना कर रही है। आइयें, सुनते हैं पूज्य गुरु जी के रूहानी वचन….

पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा, जिला बागपत उत्तर प्रदेश से आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से रूहानी सत्संग में साध-संगत को अमृतमयी वचनों द्वारा अनंत खुशियों से सराबोर किया। इस अवसर पर देश-विदेश की साध-संगत ने पूज्य गुरू जी के आॅफिशियल यूट्यूब चैनल रं्रल्ल३ टरॠ पर भी सत्संग का लाभ उठाया। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ, दूर-दराज, पूरे वर्ल्ड में आप आज जुड़े हुए हैं, आप सबको उस परमपिता परमात्मा, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, खुदा, रब्ब से आपके लिए आशीर्वाद मांगते हैं, दुआएं मांगते हैं आप सबको बहुत आशीर्वाद। तो सच्चे, दाता रहबर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) का एक भजन ‘‘बड़ा किया कसूर, प्रभु समझा है दूर, मन माया ने तुझे किया मजबूर, मन देता सबको धोखा, ना बाहर किसी ने देखा, वो सबके अंदर बैठा नाम ध्याले, वो सबके अंदर बैठा दर्शन पा ले।’’

वो मालिक, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड, ओउम, हरि, राम, ईश्वर, श्याम, अरबों नाम हैं उसके, पर वो कण-कण में है। हमने, हमारे सभी धर्मों के पाक-पवित्र ग्रन्थों को पढ़ा, आपको रोज बोलते हैं कि नज़रिया अलग-अलग होता है पढ़ने का। हमारा नज़रिया बेपरवाह जी ने ऐसा बना दिया, शाह सतनाम, शाह मस्तान दाता रहबर ने, पढ़े कम, लेकिन जितना पढ़े, नॉन मेडिकल के स्टूडेंट थे, सार्इंस में भी बड़ी रूचि थी, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू से तो 5 साल के ही जुड़ गए थे सतगुरू जी से। सो, उन्होंने बोला कि जो भी पढ़ना है एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पढ़ना। तो हमने पाक-पवित्र वेदों को पढ़ा, पाक पवित्र कुरान शरीफ को पढ़ा, पाक पवित्र गुरबाणी को पढ़ा यानि बहुत सारे संत-महापुरुषों की पवित्र रचना को पढ़ा, लगभग सब कुछ कॉमन है। सब कुछ समान है। कहने का अंदाज अलग है। पानी को जल कहने से, वाटर, वॉशर, आब, नीलू, नीरू कितने भी नाम हैं, क्या पानी का स्वाद, रंग बदलेगा, कभी नहीं बदलता। उसी तरह अलग-अलग भाषाओं में उस शक्ति के नाम अलग-अलग हैं, पर वो ना कभी बदला था, ना बदला है और ना कभी बदलेगा। वो एक था, एक है और एक ही रहेगा। उस जैसा ना कोई हुआ था, ना हुआ है, ना कोई होगा। तो कण-कण, जर्रे-जर्रे में मौजूद है वो, हर जगह में है। अगर वो कण-कण में है, जर्रे-जर्रे में है तो आपका शरीर तो बहुत बड़ा कण है, बहुत बड़ा जर्रा है, इसका मतलब वो अंदर रहता है, अजी! रोम-रोम में रहता है वो, पर आपकी निगाह ही नहीं पड़ती, है ना हैरानीजनक बात।

आपके अंदर है उस मालिक की आवाज

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि वो आपके अंदर आवाज दे रहा है कि मेरी आवाज सुन लो, तू जाकर बाहर आवाज दे रहा कि मेरी सुन ले। बड़ी ही अजीबोगरीब दशा हुआ पड़ी है इन्सान की। सर्वधर्म की बात कर रहे हैं हम। साफ लिखा है ‘‘मन मंदर तन बेस कलंदर, घट ही तीर्थ नावा, एक शब्द मेरे प्राण बसत है, बोहर जन्म ना आवा’’, दिमाग में, विचारों में है वो, दिल में है वो और शरीर रूपी मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा में वो बैठा हुआ है और एक शब्द उसे अलग-अलग आवाज दी गई, है तो वो मालिक की आवाज, हिन्दू धर्म में धुन, सिक्ख धर्म में अनहद बाणी या धुर की बाणी, इस्लाम धर्म में बांग-ए-इलाही, कलाम-ए-पाक और ईसाई धर्म में गॉड्स वॉइस एंड लाइट या लाइट एंड साउंड, भाषा बदलने से क्या फ़र्क पड़ता है, मतलब एक ही है कि उसने आपके अंदर एक आवाज छोड़ रखी है, अगर उसके अंदर फॉलो करोगे तो उस तक पहुँच जाओगे, पर आपके कानों में काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया, चुगली-निंदा, दूसरों की टांग खिंचाई, ठग्गी, बेईमानी इसकी मोहरें लगी हुई हैं उनकी, तो दूसरी तो आवाज सुनाई देती ही नहीं, जो खुद के अंदर चल रही है, उसकी तरफ तो निगाह जाती ही नहीं।

भगवान का नाम है ‘गुरूमंत्र’

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि कैसे उस (भगवान) तक निगाह को लेकर जाएं? ध्यान एकाग्र करना होगा, मैथड आॅफ मेडिटेशन, गुरूमंत्रा, कलमा, नाम शब्द उसका अभ्यास करना होगा। क्या है ये कलमा? क्या है ये नाम शब्द? क्या है ये मैथड आॅफ मेडिटेशन, गुरूमंत्रा? गुरूमंत्रा, क्योंकि पुरातन शब्द यही मिला हमें, कम से कम 12 हजार साल पुरानी पाक पवित्र वेद, उनमें हमने पढ़ा। पर उससे भी वो पुरातन है, इसलिए पहले पुरातन शब्द की व्याख्या करना चाहेंगे, बाकी की अपने आप आ जाएगी। गुरूमंत्रा, ‘गु’ का मतलब अंधकार और ‘रू’ का मतलब प्रकाश होता है। ‘गु’, ‘रू’ ये शब्द जुड़ने से बनता है, जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान का दीपक जला दे। मंत्रा, शब्द, युक्ति, मैथड यानि गुरू जो मालिक के शब्दों का खुद अभ्यास करता है, उससे उसे जो अनुभव होता है, वो उसे दुनिया को दे, उसे कहा जाता है गुरूमंत्रा, कलमा, मैथड आॅफ मेडिटेशन, नाम शब्द। पर वो गुरू का मंत्र नहीं होता, कहीं आपको भ्रम हो। वो मंत्र होता है उसी ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, परमात्मा का। अब आप लोग बैठे हैं, आपको आदमी-आदमी कहें, इन्सान-इन्सान कहें, क्या आपमें से कोई उठेगा? किसी का भी नाम ले दें झट से खड़े हो जाओगे। आज के युग में, आज के दौर में देवताओं को, फरिश्तों को भी लोग मालिक मानने लग जाते हैं, भगवान कहने लग जाते हैं। तो इसलिए उस ओउम, ला-इला-इल्ललाह, अल्लाह ताअला, द सुप्रीम पावर गॉड, एकोंकार, ओउम यानि ये सारे एक ही नाम हैं, अलग-अलग लगते जरूर हैं, यानि वो एक शक्ति का नाम क्या है? उसका बाइनेम पुकारना ही गुरूमंत्रा है, कलमा है। तो संत पहले अभ्यास करते हैं।

मालिक का भेद बताते हैं संत, पीर-फकीर

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि कोई भी गेम है उसका कोच चाहिए, कोई भी पढ़ाई स्कूलों में, कॉलेजों में करवाई जाती है, उसके लिए टीचर, मास्टर, लैक्चरार चाहिए। क्या आपने कोई स्कूल देखा है, कॉलेज देखा है, जहां टीचर-मास्टर नहीं है, किताबें पड़ी हैं लोग जाते हैं, पढ़ लेते हैं और पढ़कर डिग्रियां हासिल कर रहे हैं, क्या है कोई ऐसा? नहीं है ना, अरे ये तो दुनियावी पढ़ाई है, जो लिखा है या तो वो इतिहास है या प्रैक्टिकली लाइफ में दिखता है, लेकिन अल्लाह, वाहेगुरू, राम, गॉड, खुदा, रब्ब, उस तक जाने का मार्ग तो दिखता ही नहीं। वो ख़ुद भी सामने होते हुए भी नज़र आता ही नहीं, क्योंकि आँखों के आगे पर्दे आए हुए हैं आपके, जैसे मोतियाबिंद हो जाता है, एक झिल्ली सी होती है सफद रंग की, वो आँखों का जो बिल्कुल सैंटर है, जिसे स्टार बोलो, तारा बोलो, कुछ भी बोलो, उसके आगे आ जाती है, दिखना धुंधला हो जाता है, वो जितनी मोटी होती जाती है परत, दिखना उतना की कम हो जाता है, तो जरा सा कट लगाते हैं और उसका निकालकर बाहर कर देते हैं, मोतिये का आॅपरेशन हो गया। तो संतों ने लिखा है कि आज की दुनिया को मोतियाबिंद हुआ पड़ा है, ‘‘है घट में दिखे नहीं, लाहनत ऐसी जिंद, तुलसी इस संसार को भयो मोतियाबिंद’’, कि अंदर होते हुए भी नहीं दिखता, अंदर उसकी आवाज चलते हुए भी नहीं सुनती, तो मोतियाबिंद हुआ पड़ा है, आॅपरेशन तो करना पड़ेगा। कोई तो टीचर-लैक्चरार चाहिए, जो संत, पीर-पैगम्बर के नाम से मशहूर हैं, जिन्हें फकीर कह लो, संत कह लो, पीर कह लो। जो सही रास्ता दिखाए।

प्रभु-परमात्मा दाता है, मंगता नहीं

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि पीर, संत, फकीर का मतलब ये नहीं होता कि आपको सुनाकर और बदले में झोली फैला लें कि मुझे भी डाल। अरे भगवान, अल्लाह, वाहेगुरू, राम दाता था, दाता है और दाता रहेगा। अगर वो दाता है तो उसका फकीर मंगता कैसे हो सकता है? सवाल ही पैदा नहीं होता। अगर आप कर्म करके खा सकते हैं तो हाथ, पैर हमारे भी हैं, हम क्यों नहीं कर सकते भाई, किसने रोका है कर्म करने से। कर्म करके खाओ, मेहनत की, हक-हलाल की। हम संत दूसरों को शिक्षा दें और खुद बैठे-बैठे रगड़ते रहें ये कहां लिखा है? किस ग्रंथ में लिखा है? चलो, हम आपसे मांगें, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू के नाम पर, 100 रूपया आप हमें दे दें। 20 हम ले लें 80 उस (भगवान)तक पहुंचा दें, फिर तो थोड़ा सा जायज बात लगती है, मगर यहां तो 100 का 100 ख़ुद रगड़ जाना है, क्या ये सच्चाई नहीं? कड़वी लगेंगी बातें आपको, लेकिन सच तो सच रहता है। अरे वो तो दाता है दाता, मंगता नहीं है, सारे धर्मों में पुकार-पुकार के कहा है कि मालिक के मंगते बनो, अगर आप मालिक को ही देने चले जाते हो तो वो सोचता है कि इसके पास तो पहले ही फालतू है जो मुझे देने आ रहा है, इसको ओर देने की क्या जरूरत है? इसलिए ना तो संत लेते हैं और ओउम, अल्लाह, वाहेगुरू ने तो लेना ही क्या है, वो तो दाता है रे, जो हमें बना सकता है, क्या हमारे बनाए कागज के टुकड़े रूपए को नहीं बना सकता, सोचिए जरा। तो कहने का मतलब आपके अंदर होते हुए भी उसे (भगवान) आप बहुत दूर समझते हैं। ये आपकी नादानी है या यूं कहिये काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन माया के पर्दे हैं या यूं कहिए कि आपकी अज्ञानता है। उस अज्ञानता को दूर करने के लिए ही संत, पीर-पैगम्बर इस धरती पर आते थे, आ रहे हैं और आते ही रहेंगे। ये थोड़ी ना है कि एक मास्टर आया था वो स्कूल में पढ़ा गया और बाद में अपने आप ही किताब में पढ़कर पास हो रहे हैं, हो रहे हैं क्या? नहीं हो रहे ना, तो ये कैसे पॉसीबल है।

बुराइयों के लिए कोई स्कूल-कॉलेज हैं क्या

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि हर चीज आदमी इस दुनिया में अपने आप सीख रहा है। अब ठग्गी मारने के कितने स्कूल हैं जरा बताओ? चुगली करने के, निंदा करने के कितनेक स्कूल हैं, हैं कोई स्कूल कॉलेज? नहीं है ना। बुरे कर्म करने के कहीं स्कूल हों, कत्लोगारत मचाने के कहीं स्कूल हों, बहुत रेयर ये चीजें मिलेंगी आपको। अपने आप सीख रहा है इन्सान। बुराई का ये दौर चल रहा है, जिसे कलियुग कहते हैं, शैतान का युग कहते हैं, कि इसमें उसकी शक्तियां ज्यादा हावी हैं, ज्यादा छाई हुई हैं, इसमें उसकी बातें सीखना आसान है, उसकी बातें अपने आप सीख जाते हैं। बातें नहीं सीख पाते तो उस परमपिता परमात्मा की, उस मालिक की, उस राम की, इसलिए संत, पीर-फकीरों को आना ही पड़ता था, आ ही रहे हैं और आते ही रहेंगे। वो (संत) कोई ये नहीं होते कि अपनी अपनी मान-बड़ाई करते हैं, नहीं। संतों का कहना होता है, जैसे कबीर जी का कहना है कि ‘‘कबीरा सबते हम बुरे, हम तज भला सब कोय, जिन ऐसा कर मानेया, मीत हमारा सोय’’, अरे भाई संत तो हमेशा कहते हैं, कि हम भी आपको हमेशा कहते हैं कि हम तो आपके नौकरों के भी नौकर हैं, हम तो खाक हैं, चौकीदार हैं। आपका नौकर भी हमें अगर कहेगा, हुक्म देगा कि मालिक से दुआ करो, तो हो ही नहीं सकता कि हम उसके लिए दुआ ना करें, क्योंकि हमारी ड्यूटी है। आपका छोटा सा परिवार होता है, आप उसको पालने-पोसने में कितना समय लगाते हैं। आप उस घर के मुखिया हैं, घर के हैड हैं, आपकी जिम्मेवारी है। है ना जिम्मेवारी, है नाम फ़र्ज, उनका पेट भरना, पैदा आपने किए एक बार तो करना पड़ेगा ना। उनको, उनके पैरों पर खड़े करना। तो आप ये सब करते हैं। तो आप अपने दो, चार, पाँच, सात बच्चों के लिए, परिवार के लिए जिम्मेवार हैं। संत, फकीर, जितनी मालिक की औलाद है, उसको अपनी औलाद मानकर उसकी सेवा करता है। चाहे कोई उसको बुरा कहे, वो उसके लिए आशीर्वाद ही देता है। बात पे बात ख्याल में आ गई, कई बार आपको सुनाई भी है। एक संत थे, एक पीर-फकीर थे, वो जंगलात में रहा करते थे, उन्होंने देखा नहीं था लोगों को रहते हुए, देखे नहीं थे शहर-कस्बे, पर उनकी आदत थी वो ओउम, हरि, अल्लाह, मालिक की रज़ा को बड़ा मानते थे। कोई बात होती बड़ी तारीफ करते थे वाह मालिक। पेड़ देखते एक पेड़े दूसरे से मिलता ही नहीं, आप भी कभी ध्यान देना इस बात पर, आदमी आदी हो जाता है, यानि आपके घर में गुलाब के फूल लगे हैं, पाँच-सात दिन तो आपको खुशबू आएगी, क्योंकि गेट के आगे लगे हुए हैं, 10-15 दिन मे कम आने लग जाएगी और दो महीने बाद आपको याद नहीं रहेगा कि आपके घर के आगे फूल भी लगे हुए हैं। आते-जाते कभी नज़र पड़ गई तो पड़ गई, नहीं तो नहीं। पर ध्यान देकर देखो कि ये डिजाइन किया किसने है? अलग-अलग पेड़, अलग-अलग सांचा है, अलग-अलग खुशबू है, अलग-अलग गुण-अवगुण हैं। पेड़-पौधे देख लो, वनस्पति देख लो और छोड़ो दो सगे भाई, और छोड़ो दो जुड़वा भाई के हाथों के निशान नहीं मिलते, ये डिजाइन करने वाला है कौन? खून एक, माँ एक, पिता एक, एक ही टाइम में पैदा हुए, नसीब अलग-अलग, है ना गज़ब। कोई तो होगा जिसके पास से सांचा है कि एक जैसा नहीं बनाना, कमाल है।

तो वो संत, इसलिए मालिक जो कोई भी चीज देखते थे, कहते थे वाह मालिक! तूने कमाल कर रखा है। तो एक बार वो शहर की तरफ आ गए। अब आए जैसे ही शहर के अंदर तो देखा बिल्डिंगें बनी हुई हैं, बड़े अच्छे-अच्छे मकान हैं, बड़ी अच्छी-अच्छी हवेलियां बनी हुई हैं, तो वो कहता वाह मालिक! तेरा बंदा कमाल है, गज़ब कर रखा है, मालिक क्या बनाया है तूने बंदे को। यूं तारीफ करते-करते हर चीज की, साइकिल मिला या उस समय घोड़ा गाड़ी मिली, जो भी दिखा, यार कमाल है मालिक तेरा, गज़ब कर रखा है तूने। इतने में क्या देखा, एक बहन, एक बेटी छत पर बाल सुखा रही थी। तो इस तरह देखते-देखते हुए उसने निगाह मारी, तो उधर से उस बिटियां को सिर झटकाना हुआ, अब बाल, केश पीछे चले गए और चेहरा सामने आया, कहने लगा वाह मालिक! सुना करते थे हूरे जो हैं, परियां जो हैं वो स्वर्ग में रहती हैं, पर तूने तो यहां भी उतार रखी हैं, वाह मालिक! कमाल कर रखा है तूने। अब उस बिटिया ने, उस औरत ने शोर मचा दिया, ये संत सौदाई हो गया, मेरे पे गलत निगाह डाल रहा है, गलत बोल रहा है, लोग इकट्ठे हो गए। तो लोगों ने उसको (संत) को घेर लिया, कहने लगे कि भई तूं क्यों गलत बोला। (संत) कहने लगा सुनो भाई, मैंने कुछ नहीं बोला, मैं तो अपने मालिक की उपमा कर रहा हूँ कि वाह मालिक तेरा कमाल है, तूने जो परियां सुना करते थे, हूरे सुना करते थे तूने तो धरती पे उतार रखी हैं, गज़ब है तेरा। लोग शांत हुए कि वाकयी में कुछ गलत तो बोला ही नहीं (संत)ये। इतने में एक आदमी आता है और दाड़-दाड़ दो-तीन उसके थप्पड़ मार देता है। संत कहते, वाह मालिक! ये भी तेरा कमाल है। पर फिर कहने लगे कि अरे भाई तू है कौन? ये सारे तो खड़े हैं, मेरी बात सुनी, तूने तो मेरी बात ही नहीं सुनी, आकर सीधे ही धर दिए। (वो आदमी) कहने लगा कि मैं उस औरत का मालिक हूँ, कहता अच्छा-अच्छा, वाह मालिक! देख लो ये उसका मालिक है, इतना कहकर संत चुप हो गए। अब वो आदमी वापिस हुआ, बाहर सीढ़ी लगी हुई थी, (सीढ़ियों पर) चढ़ा अपनी घरवाली के पास जाने के लिए, अब दूसरी मंजिल थी, या जो भी कुछ था, लास्ट सीढ़ी पर चढ़ा, पैर फिसल गया और घूमता हुआ नीचे आया और आते ही गर्दन टूट गई।

औरत ने शोर मचा दिया कि संत जादूगर है, मेरे पति को मार दिया, नीचे आ गई भागकर, गालियां देने लग गई। लोगों ने रोका, खबरदार, हम पास खड़े हैं, संत ने कुछ नहीं किया, ये तो बेचारा जाने को तैयार था। तो वो कहने लगी, क्यों आपने कुछ नहीं किया। (संत) कहता हे बेटी! सुनो मेरी बात, कहते हाँ, ये कौन था जो गुजर गया, कहती मेरा मालिक। तो (संत कहते) इसने आकर मेरे थप्पड़ जड़ दिए। (औरत कहती) हाँ। तो (संत) कहता फिर मेरा भी कोई मालिक था, उसने कर दिया। कहता ये तो मालिकों-मालिकों का झगड़ा है, मैंने तो कुछ कहा ही नहीं। तो भाई अगर सच में आप उसको पा लें, सच में अंदर से महसूस कर लें, अरे जो दुनिया को बनाने वाला है, क्या तेरे घर में कमी छोड़ देगा, बताइये तो सही। क्या तुझे कुछ करने की जरूरत पड़ेगी। इसलिए तो हम कहते हैं कि जो भगत हो आप सारे, चुगली-निंदा ना किया करो, किसी को बुरा ना किया करो, किसी को बुरा मत बोला करो, उस पर छोड़ा करो, कि मालिक तू जान तेरा काम जाने, हम तो तेरी प्रजा हैं, हम तो तेरी रियाया हैं। बस इतना मांग लिया करो कि सबको सद्बुद्धि बख्श, सबको नेक अक्ल बख्श, फिर वो जाने, उसकी मर्जी, क्या करता है, क्या ना करे, वो तो उसकी रज़ा है, उसको तो कौन रोके। तो इसलिए भाई एक तो ये कसूर है आपका आप अपने अंदर वाले को बाहर ढूंढ रहे हैं तो इसको अंदर महसूस कीजिए, यकीन मानिये वो मिलेगा और दूसरा कि आप जो लम्पट हुए पड़े हैं दुनियावी चीजों में, अगर उसको (भगवान) को अपना बना लोगे तो ये चीजें आपके आगे पीछे घूमेंगी, बात ही कुछ नहीं। बनाने वाला आपका हो गया, अगर राजा आपका हो गया तो उसका साजो सामान क्या पीछे रह जाएगा, विचार तो कीजिये।

और फिर एक है मन, नफ्ज, शैतान, नेगेटिव पावर। मन, दिमाग में जो गंदे, गलत, नेगेटिव, बुरे विचार देता है, उसे हमारे हिन्दू और सिक्ख धर्म में कहते हैं मन की आवाज, इस्लाम धर्म में कहते हैं नफ्श, शैतान और इंग्लिश फकीरों में हमें थोड़ा अजीब लगा, ग्रंथों में माइंड लिखा हुआ है, हमें नहीं लगा कि वो चीज सही है, लेकिन क्या कर सकते हैं, पर दिखने में ये आया। तो माइंड नहीं है, मन एक अलग पावर है, एक अलग ताकत है। जो दिमाग को अच्छे, नेक, भले विचार, परमात्मा, अल्लाह, वाहेगुरू, राम, गॉड के विचार देता है उसे हमारे हिन्दू और सिक्ख धर्म में कहते हैं आत्मा की आवाज और इसाई धर्म में कहते हैं रूह की आवाज, जमीर की आवाज और उसे इंग्लिश फकीर कहते हैं वॉइस आॅफ सोल या सॉल्स वाइस, कुछ भी कह लीजिये, कैसे भी बोल लीजिये, आत्मा की आवाज, रूह की आवाज। तो दिमाग में दो आवाजें आ रही हैं। पर आज के दौर में एक आवाज दबी हुई है और एक बुलंदियों पर है। मन, नफ्श शैतान की आवाज सुनते जा रहे हैं आप और जो आत्मा की आवाज आ रही है, उसकी आवाज को आप दबाते जा रहे हैं, यकीन मानिए, अगर आदमी मालिक से जुड़ जाए और फिर वो बुरा कर्म लगे, हम लिखकर गारंटी दे सकते हैं कि उसके अंदर से जरूर आवाज आएगी कि मत कर ये गुनाह है, मत कर ये पाप है, फिर भी आप कर जाओ तो मालिक क्या करे। वो आवाज आत्मा की होती है, वो आवाज रूह की होती है।

तो मन के पीछे मत चलो। मन देता सबको धोखा, ना बाहर किसी ने देखा, कि मन ही है जो ललचाता रहता है, वहां जा, यहां नहीं मिला तो वहां जा, वहां नहीं मिला तो वहां जा। अरे सारे धर्म सही हैं, सारे संत, पीर-पैगम्बर सही हैं, सारे पाक-पवित्र ग्रंथों का एक-एक शब्द सही है, फिर भी तुझे खुशियां नहीं मिल रही तो तेरे में कमी है, ढूंढता है तू परमात्मा में। यहां वाला सही नहीं, वहां वाला सही होगा, वहां वाला सही नहीं वहां वाला सही होगा। अरे अपने दिमाग को सही कर, अपने विचारों को शुद्ध कर, मन चंगा कठौती में गंगा। अगर विचार शुद्ध हैं, विचार पवित्र हैं, घर में बैठा भी वो मिल जाएगा हम गारंटी देते हैं। और अगर मन में पवित्रता नहीं है, विचारों में पवित्रता नहीं है, सारी दुनिया घूम लो, वो नहीं मिलेगा, नहीं मिलेगा, नहीं मिलेगा। विचारों से, विचारों का शुद्धिकरण करना है। वो सबके अंदर बैठा नाम ध्याले, उसके नाम, कलमा, मैथड आॅफ मेडिटेशन, गुरूमंत्र का जाप कर तो तेरे अंदर से वो महसूस होगा, तेरे अंदर से वो जरूर दिखेगा और तेरे अंदर जरूर ख्याल देगा वो। तो भाई मालिक की चर्चा जितनी करते जाएं, उतनी कम है।

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि कहीं भी मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा मिलता है सजदा करो, नमन करो। हम तो ये कहते हैं कि कोई इन्सान भी मिलता है तो अंदर से नमन तो कर ही लिया करो। बाहर से, मुँह से अगर राम-राम, सलाम नहीं बोल सकते, कम से कम अंदर से, क्यों? क्योंकि उसके अंदर भी तेरा अल्लाह वाहेगुरू, राम बैठा है। और जो मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा, उनमें उन संत, पीर-पैगम्बरों की पाक-पवित्र गुरबाणी, वचन लिखे हुए होते हैं, जिनका कोई मोल ही नहीं है, अनमोल हैं। तो वहां सजदा नमस्कार करने से आपका कुछ कम नहीं होगा, यकीन मानिए हो सकता है मालिक आपको और खुशियां बख्श दे और रहमत कर दे। पर दिल से करो, बाहरी दिखावा चाहे मत करो, दिल से कर लो। तौबा करनी है बुराइयों से तो दिल से करो। दिखावे कर लिए, सांग धार लिया, ये, वो उसको (मालिक) दिखावा पसंद नहीं है, उसको शुद्धिकरण पसंद है, विचारों में शुद्धिकरण लाओ। दिखावे से लोगों में इज्जत बढ़ जाती है, अरे यार ये तो वो है, ये तो मानी बात। दुनिया को बेवकूफ बनाया जा सकता है, पर उसको (भगवान) को कैसे बनाएगा, जो तेरे जैसे अरबों को दिमाग देने वाला है। इस दिमाग से उसको मूर्ख बनाने चला है, हो ही नहीं सकता, ये तेरा भ्रम है। तो इसलिए भाई, कहीं भी रहो, चलते, बैठके, लेटके, काम-धंधा करते हाथों-पैरों से काम-धंधा करते कर्मयोगी, मेहनत की कमाई, हक-हलाल की कमाई, कर्म करते रहो और जीभा ख्यालों से मालिक, अल्लाह, वाहेगुरू, राम का नाम लेते रहो, यकीन मानों घर में भी बरकतें आएंगी और इस घर (शरीर) में भी बरकतें आएंगी। पता ही नहीं चलेगा, बीमारियां दूर होती चली जाएंगी, शरीर मजबूत होता चला जाएगा।

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