Online Gurukul : आज विनाश के कगार पर खड़ी दुनियां: पूज्य गुरु जी

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आनलाइन गुरुकुल के माध्यम से लाखों लोगों ने छोड़ा व बुराइयां

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शनिवार को बरनावा से आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से (Online Spiritual Discourse Saint Dr. MSG) रूहानी सत्संग में किए। इस अवसर पर पूज्य गुरू जी फरमाया कि जो भी लोग यहां पर सत्संग में चलकर आए हैं, सामने लाइव पर बहुत ज्यादा तादाद में साध-संगत बैठी हुई है। आप सबका ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू राम, परम पिता परमात्मा की चर्चा में आने का बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आयां नूं, खुशामदीद कहते हैं, मोस्ट वैलकम। और दूसरा आप लोग जानते हैं मस्ताना जी महाराज का पाक पवित्र जन्म महीना चल रहा है तो आप सबको उसके लिए बहुत-बहुत बधाइयां हो। भगवान आपको बहुत-बहुत खुशियां दे।

छाया: सुशील कुमार, सरसा

अगर कोई हवा में फैलने वाला बैक्टीरिया वायरस आ गया तो बचोंगे कैसे?

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि वरना जो परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने जो लिखा है कि ‘‘किनारे पे सब खड़े हैं पापों की किश्ती छोड़ कर, कब आएगा तूफान, ले जाएगा किश्ती रोड कर’’। आज किनारे पर खड़े हैं आप, बिल्कुल एटम, परमाणु, हाइड्रोजन, अणु पता नहीं कौन-कौन से बम बन रहे हैं। कुछेक तो निगाह में आ रहे हैं, कुछेक हो सकता है निगाह में ना आ रहे हों। चुपके-चुपके बनाए जा रहे हों, बैक्टीरिया, वायरस का अटैक हो रहा है। अब तो आप इस पर यकीन करेंगे ही करेंगे, बहुत भयानक हो चुका है।

छाया: रिंकू गोंदर, निंसिग/करनाल

हमारा मानना ये है कि आदमी की भूल भी हो सकती है और ये इनडायरेक्टली एक अटैक भी हो सकता है। कुछ भी हो सकता है। ये कलियुग की दुनिया है, क्या पता आजमाया गया हो कि ये कम भयानक है, इससे भी भयानक वायरस पैदा कर रखे हों, बैक्टीरिया पैदा कर रखे हों, संभव है। जब ये फैल सकता है तो हो सकता है वो और तेजी से फैल सकते हों। राम, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, गॉड ऐसा ना करे। कोई हवा में अगर फैलने वाला प्रदूषण, ऐसा कोई बैक्टीरिया वायरस आ गया तो कोई बचेगा कैसे? हवा तो सबको चाहिए।

अगर दुनिया खत्म हो गई तो राज किस पर करोगे

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि ये कोरोना नामक वायरस को ही ले लीजिये। इससे समाज में घात हुआ है। एक तरह का घात नहीं हुआ, बहुत तरह का घात हुआ है। सामाजिक घात हुआ है, मानसिक घात हुआ है और शारीरिक घात हुआ है। और जनसंख्या में अब लाले पड़ गए हैं खाने के, कहने का मतलब पूरे विश्व में अर्थव्यवस्था भी बहुत हद तक डाउन हो गई है। तो ये एक छोटे से वायरस ने क्या से क्या कर डाला। इसको बनाया तो गया था लैब में, अब लीक हुआ है या लीक किया गया है वो तो राम जाने। लेकिन बनाया तो इन्सान के द्वारा गया।

क्योंकि हमने वहां एक खबर में सुना था, रशिया के एक बहुत बड़े साइंटिस्ट थे, उन्होंने बोला था कि इसको दस साल तक बनाया गया है, दवाइयां दे देकर और स्ट्रॉन्ग, और स्ट्रॉन्ग, थोड़ी से मर गया तो आगे वाला और स्ट्रॉन्ग किया गया। वो किस लिए बनाए जा रहे थे, क्या मानवता भलाई के लिए, क्या उससे पानी बचाया जाएगा आने वाले टाइम में, जी नहीं, इसलिए बनाए जाते हैं, ताकि नाश कर दिया जाए, विनाश कर दिया जाए। हम पहले भी कहते थे, अगर सारी दुनिया खत्म हो गई तो राज किस पर करोगे? आपको राजा कौन कहेगा? ये तो बताइए। ध्यान ही नहीं है उधर, ख्याल ही नहीं है उधर। लगे हुए हैं मारोमार, इगो अड़ी हुई है।

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इगो, अहंकार करना गलत

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि घरों से ले लो आप। पहले घरों में शुरू होती है, फिर गाँवों में, फिर कस्बों में, फिर शहरों में, फिर देश में, फिर देशों में और ये इगो, अहंकार, मैं नहीं झुकना, मैं नहीं झुकना और बच्चों को इस तरह की चीजें सिखाई जाती हैं कि झुकना नहीं है। पता नहीं एक-दो बच्चों को देखा कि झुकना नहीं, टेढ़ा सा मुंह करके। पता नहीं क्यों नहीं झुकनेका भाई। अब राम के आगे क्यों नहीं झुकनेका, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू के आगे क्यों नहीं झुकनेका, किसने रोका है? ये तो बड़ी अज़ीब शिक्षा है, किसलिए नहीं झुकनेका, क्योंकि हमारे धर्मों में तो दीनता, नम्रता का पाठ पढ़ाया गया है, क्या कहा गया है? कि जितना पेड़ ज्यादा झुकता है, उतना ही फल ज्यादा लगता है। पानी टीलों पर नहीं रूकता वो नीची जगह पर आकर रूकता है, ‘‘ऊंचा भया तो क्या भया जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागै अति दूर’’, धर्म तो ये सिखाते हैं। लेकिन आज अपना कल्चर पेश कर रहे हैं कि झुकनेका नहीं, कमाल है। क्यों नहीं झुकनेका भाई?

हमारी संस्कृति दुनिया में सर्वोत्तम

पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि हो सकता है कि ‘झुकनेका नहीं’ का अर्थ कोई और हो, पर आज बच्चे तो उसे हर जगह पर लगा रहे हैं। बोलने वाले ने तो हो सकता है कि अपना कोई मिनिंग (अर्थ) निकाला हो, अपनी जगह पर हो सकता है वो डायलॉग सही हो, जहां से इन्होंने पकड़ा है। लेकिन ये तो हर जगह कहने लगे। अपने बाप को भी झुकनेका नहीं, पैरों के हाथ नहीं लगाना। पैसा नहीं देता तो झुकनेका नहीं, अकड़ गए सामने खड़े हो गए। ये क्या है? कल्चर किधर जा रहा है हमारा? क्या ये संस्कृति है हमारी? जी नहीं, हमारी संस्कृति सर्वोत्तम संस्कृति है, बड़ों के सामने झुकना और बड़ों का हाथ अपने आप सिर पर आ जाए आशीर्वाद के लिए, ये है हमारी भावना।

बचपन में हमें माँ-बाप पालते हैं और जब बुजुर्ग हो जाते हैं, हिल नहीं पाते, तो आपका नौ महीने नहीं दो साल तक हो सकता है माँ-बाप ने टट्टी-पेशाब साफ किया हो, तो लास्ट में जाकर अगर माँ-बाप का दो-चार महीने अगर साफ करना पड़ गया तो कौन सी आफत आ गई भाई। ये हमारी संस्कृति है, कि पहले बच्चों का बुजुर्ग साथ देते हैं और फिर बच्चे बुजुर्गों का साथ देते हैं। विदेशों में ये नहीं पाया जाता, पता नहीं किसका बुजुर्ग कहां बैठा है। 8-10 शादियां हो जाती हैं, ना माँ का पता चले ना बाप का। सब जगह ऐसा नहीं है, पर हम जहां गए बहुत जगहों पर ऐसा देखा।

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