काला रंग

Poem of Black Colour

फिर क्या हुआ मैं काला हूं?
बाकी रंगों से खुशनसीब वाला हूं!
काले रंग के बोर्ड पर सफेद अक्षर को बिखेरने वाला हूं,
कल तुम्हारा भविष्य में ही निहारने वाला हूं!
फिर क्या हुआ मैं काला हूं बाकी रंगों से अधिक खुश नसीब वाला हूं!
तुम्हारी फसलों को मैं बचाने आया हूं,
काले-काले मेघा से बरस कर तुम्हें इस तपिश से बचाने आया हूं,
फिर क्या हुआ मैं काला हूं बाकी रंगों से अधिक खुशनसीब वाला हूं!
दुनिया की अभद्र आवज से तुम्हें छुटकारा दिलाने आया हूं,
काले रंग की कोयल का रूप लेकर तुम्हें मीठा रसपान कराने आया हूं!
फिर क्या हुआ मैं काला हूं बाकी रंगों से अधिक खुश नसीब वाला हूं!
काले रंग को तुम अपनी कलाई पर हो बांधते, उसी काले रंग के धागे का रूप में लेकर, तुम्हें दुनिया की नजरों से बचाने आया हूं! फिर क्या हुआ मैं काला हूं!
अभिमान नहीं हुआ है, मुझे अपने ऊपर, परंतु, मेरे ऊपर हो रहे भेदभाव को मिटाने आया हूं!
फिर क्या हुआ मैं काला हूं, बाकी रंगों से अधिक खुशनसीब वाला हूं!

                                                                                                -राजेन्द्र गोरीवाला (सरसा)