कट्टरवाद, आतंकवाद, अलगाववाद से धर्मों को बचाना होगा

Religion

हमारे देश के लिए जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, माओवाद और नक्सलवाद से भी बड़ा खतरा है कट्टरवाद, चरमपंथ, पाखंड और मजहबी उन्माद लेकिन इसके मूल कारण और स्थाई समाधान पर संसद-विधानसभा में सार्थक बहस नहीं हो रही है। कट्टरवाद, चरमपंथ, पाखंड और मजहबी उन्माद किसी भी मजहब में हों, वह मानवता के लिए हमेशा खतरा ही होते हैं।

यूं तो कट्टरवाद सभी धर्मों में बढ़ा है लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले कई दशकों से इस्लाम के मानने वालों की हिंसक गतिविधियां पूरी दुनिया के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. पीटर हैमंड ने 2005 में विस्तृत शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी थी जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। डॉ. पीटर हैमंड के अतिरिक्त ‘द हज’ के लेखक लियोन यूरिस ने भी कट्टरवाद, चरमपंथ, पाखंड और मजहबी उन्माद पर अपनी पुस्तक में विस्तार से लिखा है और जो तथ्य सामने आए हैं वे चौंकाने वाले ही नहीं बल्कि चिंताजनक भी हैं।

जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश प्रदेश या क्षेत्र में 5 से 10% होती है तब वे अन्य धर्मावलंबियों पर अनैतिक दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं। जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 20 प्रतिशत या अधिक हो जाती है तब इनके संगठन जेहाद का नारा ही नहीं लगाते हैं बल्कि असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर भी शुरू हो जाता है, जैसा भारत और इथियोपिया में अक्सर देखा जाता है। किसी देश में जब मुसलमान 50 प्रतिशत हो जाते हैं तब उस देश में पहले सत्ता प्राप्त करते हैं और अन्य धर्मों की शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के लोगों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। कई तरह के हथकंडे अपनाकर मुस्लिम जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है।

ये ऐसे कड़वे तथ्य हैं जिन्हें मजहबी चश्मे से नहीं बल्कि ठंडे दिमाग से प्रत्येक नागरिक को देखना और समझना चाहिए, चाहे वे हिंदू हों, मुसलमान, पारसी हों या ईसाई। यूं भी सामाजिक सद्भाव सबकी जिम्मेदारी है लेकिन ज्यादा जिम्मेदारी उन लोगों की है जो वास्तव में धर्मनिरपेक्ष हैं। उन्हें संगठित होकर आगे आना चाहिए और इस्लाम धर्म के साथ जुड़ने वाले आतंकवाद, कट्टरवाद, अलगाववाद और मजहबी उन्माद जैसे विश्लेषणों से इस्लाम को मुक्त कराएं अन्यथा न तो इस्लाम के मानने वालों का भला होगा और न ही दुनिया का।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।