मुर्शिद प्यारे ने प्रत्यक्ष नूरी-दीदार देकर साध-संगत को किया निहाल

Param Pita ji sachkahoon

13 दिसंबर 1978 आश्रम की कुछ जमीन सिरसा-बेगू मुख्य सड़क पर मिल्क-प्लांट के पास भी है। यह जमीन ‘भट्ठे वाले खेत’ के नाम से जानी जाती है। उन दिनों इस खेत में नरमा चुनने की सेवा चल रही थी। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज उस दिन सेवादारों को अपना अलौकिक प्रेम प्रदान करने के लिए अचानक उस खेत में चले गए। सभी सेवादार बहन-भाई, जो नरमा चुनने की सेवा कर रहे थे, अपने प्रीतम प्यारे के इस प्रकार दर्शन करके खुशी से झूम उठे। पूजनीय परम पिता जी सभी सेवादारों को अपना ईलाही प्रेम बख्शते हुए मोटर वाले कमरे के पास रखी हुई एक साधारण सी चारपाई पर जाकर विराजमान हो गए।

कुछ ही समय बाद दोपहर के लंगर का समय हो गया। पूजनीय परम पिता जी ने सभी सेवादारों को वहीं अपने पास बुला लिया और लांगरी भाइयों को लंगर बांटने का हुक्म फरमाया। इधर तो लांगरी भाई लंगर खिलाने में व्यस्त हो गए और उधर रहमतों के दाता जी ने कुछ मूलियां मंगवा लीं और स्वयं अपने पवित्र कर-कमलों से काट-काटकर थाली भर ली व सभी सेवादारों में बांटने के लिए लांगरियों को दे दी।

सेवादारों ने बताया कि उस दिन लंगर खाने में जो आनंद, लज्जत और सतगुरू का सच्चा प्यार प्राप्त हुआ हम उसका लिख बोलकर बयान नहीं कर सकते क्योंकि एक तरफ तो अपने मुर्शिद प्यारे के पवित्र कर-कमलों द्वारा दिया गया मूलियों का रसदायक प्रसाद और दूसरी तरफ स्वयं प्यारे सतगुरू जी के प्रत्यक्ष नूरी-दीदार और उनके हास्य-रस से भरपूर मीठे शिक्षादायक वचन थे। इस तरह सभी सेवादारों में रहमतें व अलौकिक खुशियां बांटते हुए पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज वहां से पैदल ही वापिस आश्रम में आ गए।

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