पूजनीय बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज के ईलाही वचन

Shah Mastana Ji

(सच कहूँ न्यूज) मन को जंगल में आवारा फिरने वाले जानवरों की तरह दुनिया के जंगल में दौड़ने-भागने की आदत है। एक जंगली जानवर को हम मुश्किल से पकड़ते हैं। पकड़ने व बांधने पर भी वह बहुुत तंग करता रहता है। जब हम उसको घास वगैरह डालते हैं तो भी वह हमें मारने की कोशिश करता रहता है। अगर हम उससे डर कर उसे छोड़ दें तो हम उससे कोई काम नहीं ले सकते। अगर उसके साथ मुकाबला करें तो वह धीरे-धीरे हमारा हुक्म मानना और काम करना शुरू कर देगा। यही हाल मन का है। हमें मन की चालों से निराश और दु:खी नहीं होना चाहिए और कभी भी मन से हार नहीं माननी चाहिए। हर हालत में मन के विरूद्ध संघर्ष जारी रखना चाहिए लेकिन देखा जाता है कि कुछ समय मुकाबला करने के बाद इन्सान थक कर बैठ जाता है।

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सतगुरू मृत्युलोक में भी अपने सेवकों की दया-मेहर द्वारा पूरी संभाल करता है और अगले जहान में भी। यदि तेरे अंदर परमेश्वर का नाम बस गया तो तू यकीन रख कि दिन-रात सतगुरू तेरा मददगार रहेगा।

सतगुरू से नाम और दर्श-दीदार के बगैर और कुछ न मांगो। दु:ख-सुख सब मालिक की दात समझो।

सूफी वह होता है जिसका हृदय साफ होता है। जिस हृदय में नाम बस जाता है, वहां परमात्मा आकर विराजता है।

मालिक तो तेरी सच्चाई और पवित्रता देखता है। तुम भजन-बंदगी करके अपने हृदय को पाक-साफ करो और अपनी आंखों को उसे देखने के लायक बनाओ तो तुम उस परम पिता परमात्मा को देख सकते हो। एक बार उस मालिक को प्रकट कर लो तो हृदय और आंखों में वो मस्ती छा जाएगी जो हर गम को खुशी में बदल देगी।

सतगुरू हर वक्त हर जीव की रखवाली करता है पर मन यकीन नहीं करता। तुम हमेशा चलते-फिरते भी सुमिरन करते रहो। वहां गरीब या अमीर की कोई लिहाज नहीं। वहां नाम जपने वाल्ंो की ही कद्र होगी। यदि कोई मालिक का बन जाए तो मालिक उस भक्त के सभी कार्य खुद करता है।

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