‘यहां पर रंग लग जाएंगे, जंगल में मंगल हो जाएगा’

shah mastana ji sach kahoon

1 जनवरी 1958 पूजनीय बेपरवाह साईं शहनशाह मस्ताना जी महाराज जब नेजिया खेड़ा से शाह मस्ताना जी धाम जाने लगे तो सुबह ही एक सेवादार के द्वारा परस राम गांव बेगू के पास संदेश भेज दिया कि वह जल्दी से जल्दी हमें मिले। थोड़ी देर बाद पूजनीय बेपरवाह जी  साध-संगत को आशीर्वाद देते हुए पैदल ही शाह मस्ताना जी धाम सरसा की ओर चल पड़े। कुछ सत्संगी सेवादार शहनशाह जी के साथ थे। सुबह करीब साढे आठ बजे का समय था। थोड़ा सा चलकर बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, ‘‘परस राम के खेत में जाना है, उसका वादा पूरा करना है।’’ सतगुरू जी चलते-चलते उस पेड़ के नीचे आ गए जो शाह सतनाम जी धाम के 50 नंबर कमरे के पास है। शहनशाह जी उस पेड़ की छांव में बैठ गए। सभी सेवादार भी शहनशाह जी के पास ही बैठ गए। प्यारे सतगुरू जी ने वचन फरमाया, ‘‘वेखो वरी, संगत ही संगत आ रही है।’’ सत् ब्रह्मचारी सेवादार दादू बागड़ी खड़ा होकर बोला कि साईं जी, यहां तो हम गिनती के ही आदमी हैं लाखों नहीं।

कुल मालिक सतगुरू जी ने वचन फरमाया, ‘‘थोड़े समय में तुम्हारे सामने सतगुरू का बहुत बड़ा कारखाना बनेगा। पुत्तर, यहां रूहानी कॉलेज बनाएंगे।’’ इतने में परस राम बेगू वाला भी आ गया। परस राम ने आते ही शहनशाह जी के पावन चरण कमलों में ‘धन-धन सतगुरू तेरा ही आसरा’ नारा लगाया। दयालु सतगुरू जी ने परस राम से पूछा, ‘‘ पुत्तर! असीं इह जमीन मोल लेनी है, क्या भाव मिलेगी?’’ परस राम ने कहा साईं जी! मेरी तो यहां बीस बीघे जमीन है, ऐसे ही ले लो। दयालु सतगुरू जी ने वचन फरमाया, ‘‘पुत्तर! असीं ऐसे नहीं लेंगे, मोल लेंगे।’’ सतगुरू जी ने अपनी डंगोरी ऊपर उठाकर इशारे से चारों तरफ घुमाते हुए वचन फरमाया, ‘‘ पुत्तर! इतनी-इतनी जमीन लेंगे और पैसे देकर ही लेंगे।’’

उस दिन बेपरवाह जी पैदल चलकर ही शाह मस्ताना जी धाम तक आए थे। आश्रम के पहले वाले दरवाजे के पास खड़े होकर वचन फरमाया, ‘‘आज असीं दरबार में नया नमूना मंजूर करके आए हैं।’’ इतने वचन फरमाकर सतगुरू जी आश्रम के अंदर चले गए। चलते-चलते बेपरवाह जी घंटाघर के पास ठहर गए। उस समय साईं जी के साथ 10-15 सेवादार थे। सच्चे सतगुरू जी ने घंटे की तरफ इशारा करते हुए वचन फरमाया, ‘‘जैसे घंटा चलता है, ऐसे ही अपनी उम्र घटती जा रही है। इसलिए दो घंटे रोजाना भजन सुमिरन करना चाहिए।’’ फिर बेपरवाह जी सचखंड हॉल पर बने चौबारे पर चढ़ते समय सीढ़ियों में रूक गए और नीचे खड़े सत् ब्रह्मचारी सेवादार दादू बागड़ी और अन्य सेवादारों पर अपनी दया-मेहर भरी दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘‘जब हम फिर नई बॉडी धार करके आएंगे तो दादू, फिर तुम्हें पता चलेगा कि उस जगह लाखों लोग आया करेंगे, जो आज हम मंजूर करके आए हैं।’’

दस-पन्द्रह दिन बाद बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज सतलोकपुर धाम, नेजियाखेड़ा से शाह मस्ताना जी धाम के लिए चल पड़े। उस दिन सच्चे सतगुुरू जी के साथ काफी सत्संगी थे। सतगुरू जी चलते-चलते उस पेड़ के पास आ गए जो शाह सतनाम जी धाम में आरे के पास है। सच्चे पातशाह जी वहां पर रूक गए और अपने पावन मुख से ये वचन फरमाए, ‘‘जगह तो काबिल है।’’ इतना कहकर सतगुरू जी आगे की ओर चल पडे। इसी प्रकार एक बार फिर शहनशाह जी नेजिया खेड़ा गांव की ओर जा रहे थे। जब सतगुरू जी उस टिब्बे के पास पहुंचे (जहां पर अब शाह सतनाम जी धाम की तेरावास बनी हुई है) तो प्यारे सतगुरू जी ने वचन फरमाए, ‘‘यहां पर रंग लग जाएंगे। जंगल में मंगल हो जाएगा।’’

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