सतगुरू जी ने अपने सच्चे शिष्य के फैसले को किया सही साबित

Satguru ji sachkahoon

बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘‘अपना छोरा ले जाओ, हमें कोई जरूरत नहीं है। असीं कोई इत्थे नहीं रखा है।’’

सरसा शहर के सुखी राम को छोटी आयु में ही मुर्शिद जी ने अंदर से प्रेम-प्यार व भक्ति बख्शी। उसे परमात्मा को पाने की तड़प लग गई। रोज डेरा सच्चा सौदा सरसा में आकर मालिक के दर्श-दीदार करता व साथ-साथ सेवा करता। दिल वापिस दुनियावी बंधनों में जाने को न करता। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह आश्रम में सत् ब्रह्मचारी सेवादार बनेगा और डेरा सच्चा सौदा में रहकर सेवा-सुमिरन करेगा। उसने सत् ब्रह्मचारी सेवादार बनने की इच्छा पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज के सामने प्रकट की परंतु शहनशाह जी ने फरमाया, ‘‘अच्छी तरह सोच ले।’’ लड़के ने कहा कि सार्इं जी, मैंने अच्छी तरह सोच लिया है।

सुखी राम के घर-परिवार वाले अनजाने में पूजनीय शाह मस्ताना जी महाराज को आम दुनियावी फकीर ही समझते थे।उनको अपने लड़के को सत् ब्रह्मचारी सेवादार बनने की इच्छा ठीक न लगी। अपने ढ़ंग से लड़के को समझाने-बुझाने एवं धमकाने का कोई असर नहीं हुआ। लड़के का हृदय तो सतगुरू के प्रेम में मस्त हो चुका था। वह मुर्शिद का दर न छोड़ने का अटल फैसला कर चुका था। उसे सतगुरू पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास था। घर-परिवार वालों ने बात न बनती देख इक्ट्ठे होकर साई जी के पास शिकायत की। इस पर बेपरवाह जी ने फरमाया, ‘‘अपना छोरा ले जाओ, हमें कोई जरूरत नहीं है।

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असीं कोई इत्थे नहीं रखा है।’’ एक सत् ब्रह्मचारी सेवादार को भेजकर उस लड़के को बुलवाया गया। लड़का घर वालों से बोला कि आप जो मर्जी कर लो, मैं डेरे से नहीं जाऊंगा। इस पर आप जी ने फरमाया, ‘‘बताओ असीं क्या करें? असीं तो उसे कहते हैं कि वरी जाओ लेकिन यह जाता ही नहीं।’’ घरवाले निराश होकर लौट आए। लड़के का बड़ा भाई जोशीले स्वभाव का था और उसे जवानी का गर्व भी था। उसने कहा कि अब मैं जाता हूं और लेकर ही आऊंगा।

वह अपने मित्रों के पास गया और बताया कि वे तैयार रहें। अगर कहीं लड़ाई हो गई तो उन्हें चलना पड़ेगा। इतना कहकर वह बड़े जोश के साथ हर हालत में अपने छोटे भाई को साथ घर लाने के लिए डेरे की तरफ चल पड़ा। अहंकार का सिर हमेशा नीचा होता है और जिसके सिर पर सतगुरू की कृपा हो उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। डेरे पहुंचने से कुछ समय पहले उसे अंदर से बैचेनी अनुभव होने लगी। उसे लगा कि उसे बहुत तेज ज्वर ने आ घेरा है। उसका सारा जोश ठंडा पड़ गया। गलती का अहसास हुआ और तड़पता हुआ अर्द्ध बेहोशी की हालत में आश्रम के मुख्य गेट के पास आ लेटा। जान के लाले पड़ गए। हाय-हाय की आवाज सुनकर एक सत् ब्रह्मचारी सेवादार उसके पास सहायता के लिए आया व पता करने लगा कि कौन है? आश्रम में इस घटना का पता चलने पर सत् ब्रह्मचारी सेवादार सुखी राम (छोटा भाई) भी आ पहुंचा।

उसने अपने भाई से कहा कि यहां डेरा सच्चा सौदा में आने पर सभी के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं परंतु तुझे बुखार हो गया। अवश्य ही तू कोई दिल में बुरा भाव लेकर आया होगा। बड़े भाई ने उत्तर दिया कि तेरा कहना ठीक है। मुझे मेरे बुरे ख्यालोें का फल मिला है। मैंने गलत फैसला कर लिया था कि तुम्हें घर लेकर ही जाऊंगा चाहे लड़ाई ही क्यों न करनी पड़े और किसी खास ताकत ने मुझे रोक दिया। यह मेरे गलत विचारों की सजा है। बाद में वह पश्चाताप करने लगा और शहनशाह जी से माफी मांगने लगा। इसके बाद परिवार के सभी सदस्य आप जी के पास आए, माफी मांगी व नाम की दात प्राप्त करके सत्संगी बन गए।

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