राजनीतिक हिंसा रोकी जाए

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सांकेतिक फोटो

बीते दिनों पश्चिमी बंगाल में हुई दिल दहला देने वाली हिंसा में दस लोगों की मौत हो गई। मीडिया में चर्चा रही कि तृणमुल कांग्रेस के एक नेता की हत्या का बदला लेने के लिए हमलावरों द्वारा इस वारदात को अंजाम दिया गया। बंगाल विधानसभा चुनावों में तो पहले ही बड़े स्तर पर ऐसी घटनाएं हुई थी, जोकि पूरे देश में चर्चा का विषय बनी थी। दरअसल उत्तर प्रदेश के बाद बंगाल को देश का सबसे अहम राज्य माना जाता है। क्योंकि केन्द्र में सरकार बनाने के लिए बंगाल की भूमिका को कमतर नहीं आंका जा सकता है। यहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केन्द्रीय राजनीति में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सरगर्म नजर आ रही हैं तथा वे अलग-अलग राज्यों का दौरा करके पार्टियों के साथ गठबंधन की गोटियां बैठा रही हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर सियासी पार्टियां कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती।

सभी राजनीतिक दल जीतने के लिए तो अपनी पूरी ताकत झोंक ही रहे हैं, इसके साथ ही सियासी हथकंडों के चलते खून-खराबें की वारदातें बढ़ रही हैं। चुनावों में जीत-हार तो तय होती है लेकिन राजनीतिक शत्रुता और द्वेष भावना किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हो सकती। वास्तव में राजनेताओं के सियासी लाभ के लिए दिए जाने वाले भड़काऊ भाषण ही हिंसा की ऐसी घटनाओं का कारण बनते हैं। इसके साथ ही राजनीति को धार्मिक रंगत देने का भी हर संभव प्रयास किया जा रहा है। केरल में राजनीतिक बदले के कारण पहले ही भारी नुक्सान हो चुका है। राजनीतिक पार्टियों के वरिष्ठ नेताओं की यह नैतिक जिम्मेवारी है कि वे पार्टी कार्यकर्ताओं को संयम, शांति व भाइचारे की सीख दें। ऐसे में हिंसक घटनाओं की महज जांच की मांग से ही बात खत्म नहीं होती और न ही किसी को सजा मिलने मिलने से मसले का हल निकलता है।

वास्तव में राजनीति की तस्वीर बदलने की जरूरत है। राजनीति में सत्ता को अपनी बापौती मानने की अहंकारी व निम्न स्तरीय सोच भी इन खूनी झड़पों का भी वास्तविक कारण है। इन सियासी नेताओं को केवल जोश नहीं बल्कि होश में भी काम लेना पड़ेगा। सत्ता किसी की मलकियत नहीं है बल्कि लोगों का जनादेश है। जीत हार के लिए जनता ही निर्णायक है। जनता के फैसले के आगे सिर झुकाने से ही लोकतंत्र व राजनीतिक की परिभाषा पूरी होती है। ‘मैं ही विजेता’ की धारणा का त्याग करके लोकतंत्र का सपना सच हो सकता है। जीत जनता की सेवा से ही प्राप्त की जा सकती है, खून की नदियां बहाकर नहीं।

सच्चाई यह है कि गरीब से गरीब उम्मीदवार बड़े से बड़ा धनाढ्यों को भी हराकर जीत हासिल कर रहे हैं। जागरूक जनता धक्केशाही को बर्दाश्त नहीं करती बल्कि साफ-सुथरी व लोक सेवा को समर्पित राजनीति को ही तवज्जो देती है। देश के बड़े नेताओं को चुप रहने की आदत बदलकर केरल व बंगाल की खूनी झड़पों को रोकने के लिए आगे आना चाहिए। अमन-शांति व भाइचारा विकास की पहली शर्त है। विकास केवल सड़कों व इमारतों का नाम नहीं बल्कि सद्भावना, प्रेम व भाइचारा ही खुशहाली की असली तस्वीर है।

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