मीठे व्यवसाय पर मंदी की मार, नहीं मिल रहा कोई खरीददार

मधुमक्खी पालन व्यवसायी मंदी से परेशान, सरकार से लगा रहे मदद की गुहार, मायूस व्यवसायी बोले: इतनी मंदी पहले कभी नहीं देखी

  • घर छोड़कर सैकड़ों किलोमीटर दूर कर रहे कार्य, फिर भी नजर नहीं आ रही बचत

ओढां। (सच कहूँ/राजू) किसानों ने खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन को विकल्प के रूप में चुना था। लेकिन इस समय इस मीठे व्यवसाय पर फिकाई की ऐसी मार पड़ी है कि व्यवसायियों को कुछ भी नहीं सूझ रहा। परेशान व्यवसायी सरकार से मांग मदद की गुहार लगा रहे हैं। देखा जाए तो पिछले कुछ समय से किसानों का मधुमक्खी पालन व्यवसाय की ओर रुझान काफी बढ़ा था। किसान इस व्यवसाय में अच्छा लाभ उठा रहे थे। लेकिन इस समय उनके इस मीठे व्यवसाय पर मंदी की ऐसी मार पड़ी है कि कोई खरीदार तक नहीं मिल रहा।

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भाव व खरीदारों के इंतजार में व्यवसायियों ने शहद का स्टॉक कर रखा है, लेकिन आर्थिक स्थिति के चलते अधिक समय तक स्टॉक कर पाना भी उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है। इस बारे जब कुछ व्यवसासियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस बार मंदी की मार इस कदर है कि इस व्यवसाय को जारी रखना मुश्किल साबित हो रहा है। सरकार को चाहिए कि शहद व्यवसाय को अन्य फसलों की भांति भावंतर योजना के अंतर्गत लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सरकार इस कार्य पर अनुदान देने के अलावा प्रशिक्षण भी दे रही है। लेकिन जब शहद की खरीदारी ही पर्याप्त रेट पर नहीं होगी तो ये व्यवसाय शुरू करने का क्या फायदा। वहीं व्यवसायियों की मांगें हैं कि शहद का मूल्य लागत से अधिक 200 रुपये प्रति किलो हो, मिलावटी शहद पर रोक लगाई जाए, चाइना से आयतित सिरप या भारत में तैयार होने वाली सिरप पर प्रतिबंध लगाया जाए, शहद को भावांतर भरपाई योजना के अंतर्गत लाया जाए, सरसों के शहद को मिड-डे-मिल योजना में शामिल किया जाए व मधुमक्खी पालकों को क्रेडिट कार्ड सुविधा दी जाए।

मैंने खेती के साथ-साथ करीब 6 वर्ष पूर्व मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुरू किया था। इसके लिए मैंने बाकायदा प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। जिस समय मैंने इस व्यवसाय को शुरू किया, उस समय शहद के दाम अच्छे थे। प्रथम वर्ष मैंने अच्छा मुनाफा उठाया था। जिसके चलते मैंने इस व्यवसाय धीरे-धीरे कर और बढ़ाया। इस व्यवसाय में मेहनत भी ज्यादा है। क्योंकि आॅफ सीजन में मक्खियों को बचाने के लिए इन्हें दूसरे राज्यों में ले जाना पड़ता है। विगत वर्ष शहद के दाम कुछ ठीक थे, लेकिन इस बार तो दाम आध से भी कम रह गए हैं और खरीदार भी नहीं है। भाव के इंतजार में स्टॉक कर रखा है, लेकिन आर्थिक स्थिति की वजह से अधिक समय तक स्टॉक कर पाना भी कठिन है। इस व्यवसाय में मिलावटी शहद तैयार करने वालों शिकंजा कसते हुए उचित कदम उठाने चाहिए।
                                                                                                     – जोनी रोज (नुहियांवाली)।
मैंने करीब 3 वर्ष पूर्व खेती के साथ-साथ प्रशिक्षण प्राप्त कर मधुमक्खी पालन व्यवसाय शुुरू किया था। क्योंकि एक तो सरकार की ओर से इस व्यवसाय पर अनुदान था और उस समय शहद के रेट भी अच्छे थे। लेकिन इस बार इस व्यवसाय पर मंदी की मार है। शहद का स्टॉक पड़ा है, लेकिन न तो उचित दाम है और न ही बिक्री। समझ नहीं आ रहा ऐसे में कैसे काम चलेगा। खर्च रोज हो रहा है, लेकिन आमदन है ही नहीं। अगर दाम अच्छे मिल जाएं तो कुछ काम चल जाएगा। अन्यथा इस व्यवसाय को मजबूरन छोड़ना पड़ेगा। सोच तो ये रहे थे कि आगे इस कार्य को और बढ़ाएंगे, लेकिन इस बार तो लागत खर्च भी पूरा होता प्रतीत नहीं हो रहा।
                                                                                                                            – सुभाष कटारिया (नुहियांवाली)।

मैंने करीब 15 वर्ष पूर्व मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया था। इस व्यवसाय में जितनी मेहनत है, उतने इस समय दाम नहीं मिल पा रहे। हां, इस कार्य में अच्छा मुनाफा है, लेकिन ये शहद के दाम पर निर्भर है। इस समय शहद के दाम विगत वर्ष की अपेक्षा आधे से भी कम रह गए हैं। वहीं इस समय शहद की बिक्री भी कम है। स्थिति ये है कि व्यवसायियों के लिए रोज का खर्च चलाना भी मुश्किल साबित हो रहा है। सरकार से यही मांग करते हैं इस व्यवसाय को बचाने के लिए कोई उचित कदम उठाए अन्यथा ये व्यवसाय दम तोड़ जाएगा।
                                                                                                                                                – धर्मवीर (नुहियांवाली)।

मुझे इस व्यवसाय में करीब 10 वर्ष का समय हो गया। हरियाणा में आॅफ सीजन होने के चलते मधुमक्खियों को बचाने के लिए डिब्बों को हिमाचल लाया हुआ है। पिछली बार कच्चे शहद के दाम 160 रुपये थे, लेकिन इस बार अभी तक खरीदार ही नहीं है। मैंने इस समय करीब 30 टन शहद का स्टॉक कर रखा है, लेकिन खरीदार ही नहीं है। अब स्थिति ये है कि इतनी दूर का खर्च भी नहीं पूरा हो रहा। पहली बार इस कारोबार में इतनी मंदी और विपरीत स्थिति आई है। सरसों के फूल के शहद का रंग सफेद होने के चलते इसकी बाहरी डिमांड अधिक थी। लेकिन भारत में सरसों के शहद में कॉर्न सिरप की मिलावट होने के चलते इसका बाहर तो अधिक निर्यात हो रहा है, लेकिन सही शहद मार्किट से नहीं उठ रहा। सरकार से मांग है कि मिलावटी शहद पर अंकुश लगाकर लैबों को अधिक बढ़ावा दिया जाए। सरकार को शहद को भावंतर योजना के अंतर्गत लेना चाहिए।
                               – जगसीर सिंह रुहल (चोरमार खेड़ा)।

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