Saint Dr. MSG ने लाइव दर्शन देकर शाह सतनाम जी धाम सरसा में बरसाई रहमतें

Shah Satnam ji Dham SIRSA

पूज्य गुरु जी ने ‘‘पाप छुपाके, पुण्य दिखाके करे बंदा तेरा शैतान…’’ भजन भी बोला

बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने  (Shah Satnam ji Dham SIRSA) रविवार को शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा (यूपी) से साध-संगत से आॅनलाइन रूबरू होकर पावन दर्श-दीदार दिए और दीपावली के पर्व की बधाई दी। इस अवसर पर पूज्य गुरू जी डेरा सच्चा सौदा परमपिता शाह सतनाम जी धाम (सरसा), शाह सतनाम जी राम-ए-खुशबू आश्रम कैथल, शाह सतनाम जी रूहानी धाम, राजगढ़-सलाबतपुरा भटिंडा, शाह सतनाम जी नूरानी धाम (पटियाला), नामचर्चा घर सहारनपुर (यूपी) और कंझावला नामचर्चा घर दिल्ली में लोगों के नशे और बुराइयां छुड़वाई। इसके साथ ही देश भर और विदेशों के नामचर्चाघरों में भी भारी तादाद में साध-संगत ने पूज्य गुरू जी के आॅनलाइन वचन श्रद्धापूर्वक श्रवण किए।

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इस अवसर पर पूज्य गुरु जी ने ‘‘पाप छुपाके, पुण्य दिखाके करे बंदा तेरा शैतान…’’ भजन भी बोला। जिस पर व्याख्या करते हुए पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज का समय ऐसा है कि अगर कोई इन्सान कोई पुण्य का कार्य करता है तो उसे उसकी पब्लिसिटी चाहिए। लेकिन पाप वह छुपाके करना चाहता है। इन्सान समझता है कि जब वह पाप करता है तो उसे कोई देखता नहीं। लेकिन भगवान कण-कण में विद्यमान है। उससे कोई जगह खाली नहीं है।

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नशे के दानव को समाज से खत्म करना ही हमारा मकसद : पूज्य गुरू जी | Shah Satnam ji Dham SIRSA

आपजी ने समाज में भयावह रूप धारण करती नशे की प्रवृत्ति पर फरमाया कि हम 1992-93 से कहते आ रहे हैं कि समाज में बढ़ते नशे युवाओं की बर्बादी का अघोषित युद्ध है। हमारे जीवन का एक ही मकसद था, है और हमेशा रहेगा कि समाज से नशे के दानव और बुराइयों को खत्म करना और सुख समृद्धि लाना है। देश में बढ़ती विदेशी संस्कृति पर चिंता जताते हुए आपजी ने फरमाया कि हमारी संस्कृति महान थी, माँ जन्म से ही बच्चे की संभाल करती थी। बच्चा बिस्तर पर पेशाब कर देता था तो स्वयं उस गीली जगह पर माँ सो जाती और बच्चे को बिस्तर पर सूखी जगह में सुलाती थी।

आपजी ने फरमाया कि माता-पिता के बुजुर्ग होने पर बच्चे उनकी संभाल करते थे। लेकिन अब विदेशी संस्कृति ने बुरा प्रभाव डाला है और लोग अपनी संस्कृति से दूृर हो गए। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि हमारे बुजुर्ग बिल्कुल सही थे, क्योंकि उन्होंने जो रीति-रिवाज चलाए वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बिल्कुल सही थे। उन पर चलकर परिवार सुखी रहते थे और तलाक जैसे शब्द सुनने को भी नहीं मिलते थे। लेकिन आज हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। लोग खुद के स्वार्थ तक ही सीमित रहते हैं। अगर किसी को आपसे गर्ज (स्वार्थ) है तो आपसे हाथ मिलाएगा और नजदीकी बढ़ाएगा। इस मतलबी युग में इन्सान गर्ज (स्वार्थ) है तो गधे को भी बाप कहने को तैयार हो जाता है और अगर गर्ज (स्वार्थ) नहीं तो अपने बाप को बाप कहने को तैयार नहीं होता।

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