गर्मी के मौसम में दुधारू पशुओं का रखें विशेष ध्यान

टीकाकरण से दुग्ध उत्पादन पर नहीं पड़ता कोई स्थाई असर: डॉ. मनीष

ओढां, (राजू)। गर्मी इंसानों के साथ-साथ मवेशियों पर भी पूरा असर डालती है। (Milch Animals) देखने में आता है कि गर्मी के मौसम में पशु की दुग्ध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। अगर तापमान में बढ़ोत्तरी होती है तो पशु के दुग्ध उत्पादन में औसतन 3 से 10 प्रतिशत तक कमी आ जाती है। वहीं अधिक तापमान के कारण पशु हीट के लक्षण कम दिखाता है व उसकी गर्भधारण करने की क्षमता कम हो जाती है।

गर्मी के मौसम में पशुओं (Milch Animals) की किस तरह से देखभाल होनी चाहिए और क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए इसके लिए सच-कहूँ संवाददाता राजू ओढां ने पशुपालन विभाग कालांवाली के वेटनरी सर्जन डॉ. मनीष कुमार से बातचीत की। इसके अलावा उन्होंने टीकाकरण के बाद पशु के दुग्ध उत्पादन पर असर, बार-बार रिपीट होने की समस्या तथा प्रजनन संबंधी कई महत्वपूर्ण जानकारियां भी दीं।

डॉ. मनीष के अनुसार अक्सर देखने में आता है कि दुधारू पशु (Milch Animals) अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाते। जिसके चलते उनकी दुग्ध उत्पादन व प्रजनन क्षमता दोनों प्रभावित हो जाती है। जब तापमान 33 डिग्री से अधिक हो जाता है तो पशुओं के दुग्ध उत्पादन में 3 से 10 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। इसके अलावा गर्मी में पशुओं की प्रजनन क्षमता और गर्भधारण की दर भी कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण पशु गर्भधारण के लिए हीट के लक्षण कम दिखाता है। जिसके परिणामस्वरूप पशु समय पर गर्भधारण नहीं कर पाता।

दुग्ध काल के शुरू के दिनों में पशु नकारात्मक ऊर्जा में होता है | Milch Animals

भैंस में ये समस्या अधिक देखी जाती है। डॉ. मनीष बताते हैं कि ताप नियमन एक प्रमुख जैविक प्रक्रिया है। जिसके द्वारा पशु अपने शरीर का तापमान विभिन्न मौसम में सामान्य बनाए रखते हैं। पशु का शरीर चया-पचयन क्रिया तथा आसपास के वातावरण से ऊष्मा प्राप्त करता है। जब वातावरण का तापमान पशु के शरीर के तापमान से कम होता है तब उसके शरीर से विकिरण ऊष्मा निकलकर वातावरण में मिल जाती है। इसके विपरीत जब वातावरण का तापमान पशु के शरीर के तापमान से अधिक होता है तब पशु विकिरण द्वारा वातावरण में अपने शरीर की ऊष्मा नहीं निकाल पाता।

ऐसे में अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाए रखने के लिए पशु शरीर द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को कम करने की कोशिश करता है। जिससे पशु चारा खाना कम कर देता है और उसकी चयापचयन क्रिया कम हो जाती है। फलस्वरूप पशु की दुग्ध क्षमता घट जाती है। यदि उसके बाद भी पशु अपने शरीर के तापमान को बढ़ने से नहीं रोक पाता तो वह तापमान के दबाव (हीट स्ट्रेस) में आ जाता है। दुग्ध काल के शुरू के दिनों में पशु नकारात्मक ऊर्जा में होता है। तब ये दबाव और अधिक होता है।

ये है हीट स्ट्रेस के लक्षण :- | Milch Animals

अगर पशु कई दिनों तक हीट स्ट्रेस से ग्रस्त रहता है तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है। हीट स्ट्रेस में आने यानी तापमान बढ़ने पर पशु में उपरोक्त लक्षण दिखाई देते हैं।
पशु में बेचैनी रहने के साथ-साथ मुंह खोलकर सांस लेने लग जाता है।
उसकी सक्रियता कम हो जाती है।
दुग्ध उत्पादन में कमी आ जाती है।
पशु पानी की तरफ जाने लगता है।
शरीर का तापमान बढ़ जाता है।
पशु अपना आहार कम कर देता है।

ये हैं बचाव के तरीके :-

पशु को सूर्य की सीधी किरणों से बचाएं।
छायादार वृक्षों के नीचे रखें।
दिन में 3 से 4 बार नहलाएं।
स्वच्छ पानी नियमित उपलब्ध रहे।
पशु को आहार सुबह-शाम को ही डालें।
जिस जगह पशु रखें वहां हो सके तो फव्वारा सिस्टम लगाएं ताकि पशु के आसपास का तापमान ठंडा रहे।

पशु को उपयुक्त खनिज तत्व दें | Milch Animals

डॉ. मनीष बताते हैं कि विभाग द्वारा पशुओं को मुंहखुर व गलघोटू से बचाने के लिए एक वर्ष में 2 बार संयुक्त टीकाकरण किया जाता है। अक्सर देखा जाता है कि पशुपालक दुधारू पशुओं को दुग्ध उत्पादन पर असर पड़ने के चलते टीकाकरण से दूर रखते हैं। डॉ. मनीष ने बताया कि टीकाकरण से पशु के दुग्ध उत्पादन पर कोई स्थाई असर नहीं पड़ता। टीकाकरण के उपरांत 2 से 3 दिन तक थोड़ा-बहुत असर पड़ता है वो भी गर्मी के दिनों में। पशु के खानपान पर उचित ध्यान देने तथा कैल्सियम व गुड़ खिलाने से दुग्ध उत्पादन सामान्य हो जाता है। डॉ. मनीष ने पशुपालकों से आह्वान किया कि अपने पशुओं का टीकाकरण जरूर करवाएं।

बार-बार रिपीट होना (फुरना) कोई स्थाई समस्या नहीं :-

देखा जाता है कि पशु में बार-बार रिपीट होने (फुरना) की समस्या आ जाती है। ऐसे में कई बार पशुपालक पशु को छोड़ देते हैं। लेकिन ये समस्या कोई स्थाई समस्या नहीं है। डॉ. मनीष के मुताबिक ये समस्या कई बार पशु का समय पर गर्भाधान न होने, खनिज तत्वों की कमी आने, बच्चेदानी के अंदर संक्रमण या हार्माेन का असंतुलन होने के कारण हो सकती है। पशु का इलाज करवाने से ये समस्या दूर हो जाती है।

जैर गिरने का इंतजार करें :-

कई बार पशु बयाने के तुरंत बाद जैर नहीं गिराता। इसके लिए करीब 24 घंटे का इंतजार जरूर करें। इसके अलावा 7-8 घंटे उपरांत जैर गिराने की दवा भी दी जा सकती है। डॉ. मनीष के मुताबिक हाथ से जैर निकलवाना अंतिम विकल्प होना चाहिए। क्योंकि हाथ से जैर निकालने से पशु की बच्चेदानी में संक्रमण हो जाता है। बाद में पशु नया गर्भधारण करने में लंबा समय ले लेता है। गर्भाधान के अंतिम चरण में अगर पशु का गर्भपात होता है तो पशुपालक को बड़ी ही सावधानी से मृत बच्चे एवं जैर को गड्ढा खोदकर दफना देना चाहिए। क्योंकि इससे पशुओं से मनुष्य में ब्रुसेलोसिस नामक बीमारी आने की संभावना उत्पन्न हो जाती है।