उजड़ते जंगलों की व्यथा कौन सुनेगा?

Deforested Forests

मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बक्सवाहा के घने जंगलों के गर्भ में हीरा दबे होने के प्रमाण मिलने के बाद 382 हेक्टेयर में फैले इस जंगल के उजड़ने का खतरा मंडराने लगा है। हालांकि यह पहली मर्तबा नहीं है, जब जंगलों की महत्ता पर पर्याप्त मंथन किये बिना ही इतने बड़े पैमाने पर हरियाली की बलि दी जानी है। रेलमार्गों, सड़कों, भवनों और उद्योगों जैसी आधारभूत संरचनाओं के निर्माण तथा अनेक धात्विक-अधात्विक खनिजों के उत्खनन के लिए अक्सर जंगलों को उजाड़ा जाता रहा है। कितनी विडंबना की बात है कि जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर दुनिया का नेतृत्व करने वाले इस देश में बड़ी निर्ममता से पेड़-पौधों का सफाया कर जीव-जंतुओं को भी बेघर कर दिया जाता है। सुंदर लाल बहुगुणा को आदर्श मानने वाले देश में जंगलों की यह तबाही कई सवाल खड़े करती है।

एक-एक पेड़ बचाने की प्रेरणा देने वाले सुंदरलाल बहगुणा को क्या हमारा समाज इस रूप में श्रद्धांजलि अर्पित करेगा? बक्सवाहा के जंगल में 46 प्रजाति के दो लाख से अधिक पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की अनेक प्रजातियां निवास करती हैं। लेकिन इसके नष्ट होने से पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन और जैव-विविधता के ह्रास होने का डर सताने लगा है। जंगल धरती के फेफड़े की तरह कार्य करते हैं। जंगल उजाड़ने की मानवीय भूल धरती के फेफड़े को खराब कर देगी। जंगल आॅक्सीजन के प्रमुख स्रोत होते हैं। कोरोना काल ने हमें यह अहसास भलीभांति दिलाया है कि आॅक्सीजन की अहमियत कितनी है। एक अनुमान के मुताबिक एक परिपक्व पेड़ एक साल में औसतन सौ किलोग्राम आॅक्सीजन प्रदान करता है। इस हिसाब से देखें तो बक्सवाहा के जंगल सालभर में औसतन दो करोड़, सोलह लाख किलोग्राम से भी अधिक आॅक्सीजन जारी करते हैं। पेड़ों की महत्ता इस रूप में भी समझी जा सकती है कि एक व्यक्ति एक साल में उतना आॅक्सीजन ग्रहण करता है, जितना सात से आठ पेड़ एक साल में उत्सर्जित करते हैं।

शोध बताते हैं कि एक वर्ष में एक एकड़ के दरमियान लगे पेड़ उतना कार्बन डाई-आॅक्साइड सोख लेते हैं, जितना एक कार औसतन 2600 मील की दूरी तय कर उत्पन्न करती है। जंगल पर्यावरण से प्रदूषक गैसों जैसे नाइट्रोजन आॅक्साइड, अमोनिया, सल्फर डाइआॅक्साइड तथा ओजोन को अपने अंदर समाहित कर वातावरण में प्राणवायु छोड़ते हैं। दो प्राथमिक कार्य के अलावे जंगल वर्षा कराने, तापमान को नियंत्रित रखने, मृदा अपरदन को रोकने, जैव विविधता का पालन-पोषण करने में भी सहायक हैं। जंगलों से उपलब्ध होने वाले दर्जनों उपदानों का उपभोग हमसबों ने किसी न किसी रूप में किया है। जंगल से न जाने कितने ही लोगों की आजीविका जुड़ी होती हैं। विश्वभर के जंगलों पर वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार सीधे तौर पर वन आधारित उद्योगों से 13 लाख लोगों को रोजगार मिलता है, जबकि अनौपचारिक रूप से दुनिया भर में 41 लाख लोगों को यह जीविका प्रदान करता है। दरअसल प्रकृति के निकट रहने वाले कई समुदायों के लिए जंगल जीवन की तरह है।सवाल यह है कि इतने ज्ञात फायदों को जानने के बाद भी जंगल हमारी प्राथमिकता क्यों नहीं हैं? आखिर उजड़ते जंगलों की व्यथा कौन सुनेगा?

जंगल धरती का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। एक समय धरती का अधिकांश हिस्सा वनों से आच्छादित था, किंतु आज इसका आकार दिन-ब-दिन सिमटता जा रहा है। मॉनसून-चक्र को बनाए रखने, मृदा के कटाव को रोकने, जैव-विविधता को संजोये रखने और दैनिक उपभोग की दर्जनाधिक उपदानों की सुलभ प्राप्ति के लिए जंगलों का होना बेहद जरूरी है। आलम यह है कि औद्योगीकरण और नगरीकरण के नाम पर बड़े पैमाने पर जंगलों का सफाया किया जा रहा है। यह प्रकृति और मानव दोनों के लिए गंभीर चिंता की बात है। आंकड़े बताते हैं कि 1990 के बाद विश्व में वर्षा वनों की संख्या आधा घट चुकी है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में दुनिया के आधे से ज्यादा जंगल गायब हो चुके हैं। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वनोन्मूलन के कारण पृथ्वी पर से प्रतिदिन 137 पौधे, जंतु व कीड़ों की प्रजातियां समाप्त हो रही हैं। यह आंकड़ा 8000 प्रजाति प्रतिवर्ष के बराबर है। याद करें, जैव विविधता के धनी इसी देश में एक समय असंख्य मासूम जीव-जंतु थे, जो प्रकृति में एक प्रकार का संतुलन बनाए रखते थे। दुर्भाग्यवश, ऐसे अनेक जीव आज विलुप्त हो गये या होने के कगार पर हैं। कई पेड़-पौधे महज कहानियों-किस्सों के हिस्सा बनकर रह गये हैं।

आज हमारी पृथ्वी अनेक समस्याओं से जूझ रही है। यह स्थिति अनियंत्रित व अंधाधुंध विकास के चलते उत्पन्न हुई है। पृथ्वी की रक्षा हेतु विकास के सतत्पोषणीय रूप को व्यवहृत करने की जरूरत है। पृथ्वी पर जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि पृथ्वी को तंदुरुस्त रखा जाय। पृथ्वी की सेहत का राज है-पौधरोपण। नाना प्रकार के पेड़-पौधे हमारी पृथ्वी का श्रृंगार करते हैं। पौधरोपण कई मर्ज की दवा भी है। पौधरोपण को प्रोत्साहित करने के मामले में हम फिलीपींस से सीख सकते हैं, जहां ‘ग्रेजुएशन लीगेसी फॉर द इन्वायरन्मेंट एक्ट’ के तहत हर छात्र को अपने स्नातक की डिग्री पाने के लिए कम से कम 10 पौधे लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। पीपुल्स रिपब्लिक आॅफ चाइना में, जहां बड़े पैमाने पर वनों का विनाश हो चुका है, वहां प्रतिवर्ष 12 मार्च को ‘नेशनल प्लांटिंग हॉलीडे’ के रूप में मनाकर अधिकाधिक पौधे लगाने के प्रयास किये जाते हैं। बहरहाल हमारा कम से कम एक पौधा लगाने का संकल्प भी कई मायनों में खास हो सकता है। घर के बड़े-बुजुर्ग सहित छोटे बच्चों को भी पौधरोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के लिए पौधे लगाना एक संस्कार की तरह होना चाहिए। जन्मदिन, सफलता प्राप्ति तथा अन्य खास अवसरों पर पौधे लगाकर सुखमय जीवन की ओर सार्थक कदम बढ़ाया जा सकता है।

– सुधीर कुमार

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।