खांसते व छींकते समय मुंह क्यों ढांपना चाहिए, पूज्य गुरु जी ने दिया जवाब

msg

सवाल: गुरु जी, कुछ लोग खांसते व छींकते समय मुंह नहीं ढांपते, जिससे इंफे क्शन फैलता है, ऐसे लोगों को कैसे समझाये?
जवाब: ऐसे लोगों को जो मुंह नहीं ढांपते, उनके सामने नकली छींक मारकर, हाथ मुंह पर रख लो, ताकि उन्हें कम से कम समझ आए कि छींक कैसे मारनी है। वैसे ये हमारे कल्चर का हिस्सा है। ब्रह्मचर्य में ये भी सिखाया जाता था, कि आपको जब कभी थूकना भी पड़ जाए तो, असल में तो निगल जाओ क्योंकि वो टॉयलेट के रास्ते निकल जाना है। फिर भी अगर आपको थूकना भी पड़ जाए तो, ऐसी जगह जहां कचरे का स्थान हो, उसपर ही थूकें , तो हमें नहीं लगता लोग ऐसा करते हैं। दूसरा छींकना, जम्हाई लेना, अब कई तो मुंह फाड़-फाड़कर लेते रहते हैं, न हाथ रखते हैं, चाहे अंदर बैठकर दांत गिन लो। उनको पता ही नहीं होता, क्योंकि नींद में होते हैं, कोई लेना देना नहीं। तो ये जरूरी है। हमने कई बार देखा है कि पीने वाले पानी में हाथ डूबोकर धोते रहेंगे, पेशाब करके आएं हैं, पानी एक जगह है वहां से अंजुली भरेंगे और हाथ धोएंगे। अरे भाई! तू पेशाब करके आया है, सबको क्यों पिला रहा है, क्यों उसमें हाथ डूबो दिया, वहां बर्तन भी पड़े रहते हैं फिर भी नहीं, ऐसा करते हैं तो ये ठीक नहीं है। हमारे कल्चर में, हमारी सभ्यता में, पवित्र वेदों में साफ लिखा है कि ये सारी शिक्षा ब्रह्मचर्य में सिखाई जाती थी, आज कोई ये सिखाता ही नहीं। तो मां बाप को चाहिये कि वो अपने बच्चों को सिखाया करें। छींक आती है तो बेटा हाथ आगे किया करो और जम्हाई आती है तो भी हाथ किया करो, खाज-खुजली करनी है तो साइड में हो सकते हैं और नेचर कॉल आती है तो साइड पर जा सकते हो, समझदार को इशारा काफी है। सबके बीच में अच्छा नहीं होता, तो ज्यादा न बोलें तो ठीक है। ये हमारी संस्कृति की देन है, सभ्यता है हमारी, इसलिए हमारी संस्कृति पूरे वर्ल्ड में नंबर-वन है।

अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और TwitterInstagramLinkedIn , YouTube  पर फॉलो करें।